सारणी
- चंद्रशेखर आजादजीका जन्म एवं स्वतंत्रता संग्राममें सहभाग
- चंद्रशेखर आजादजीका स्वतंत्रता संग्राममें क्रांतिकारी योगदान
- चंद्रशेखर आजादजीका बलिदान
चंद्रशेखर आजादका जन्म एवं स्वतंत्रता संग्राममें सहभाग
चंद्रशेखर आजादजीका स्वतंत्रता संग्राममें क्रांतिकारी योगदान
चंद्रशेखर आजादजीका अहिंसाके तत्त्वोंपर उनका विश्वास पूर्णरूपसे समाप्त हो गया । मनसे वे स्वतंत्रतासेनानी बन गए । काशीके श्री. प्रणवेश मुखर्जीद्वारा उन्हें क्रांतिकी दीक्षा प्रदान की गयी थी । सन १९२१ से १९३२ तक जो भी क्रांतिकारी आंदोलन, प्रयोग एवं योजनाएं क्रांतिकारी गुटद्वारा रची गई थीं, उनमें चंद्रशेखर आजाद अग्रणी थे ।
चंद्रशेखर आजाद सांडर्सकी हत्या कर भागे एवं भूमिगत स्थितिमें अनेकविध भेस बदलकर एक उदासी साधुके सेवक बन गए । साधुजीके पास ढेर सारी संपत्ति थी एवं आजाद संपत्तिके वारिस बननेवाले थे । परंतु वे मठके मनमाने व्यवहारसे असंतुष्ट थे । इसलिए उन्होंने यह नाटक करना छोड दिया । इसके पश्चात वे झांसीमें निवास करने लगे थे । यहां उन्होंने मोटर चलाना, पिस्तौलसे गोली मारना एवं अचूक लक्ष्यभेदकी शिक्षा ग्रहण की।
काकोरी कट-कारस्थानसे ही मृत्यु चंद्रशेखर आजादके सामने थी । यह होते हुए भी, अन्य स्वातंत्रसेनानियोंको अभियोगसे मुक्त करानेकी योजनामें वे व्यस्त थे । गहराईसे विचार न करनेवालोंके लिए उन्हें ऐसा लगता था मानो उन्होने क्रांतिकार्यसे संन्यास ले लिया हैं ।
चंद्रशेखर आजादने ‘आप अपने प्रभावका उपयोगकर भगतसिंह आदि स्वातंत्रसेनानियोंको मुक्त करवाएं । ऐसा करनेपर हिंदुस्थानकी राजनीतिको अलग दिशा प्राप्त होगी ।’ ऐसा संदेश गांधी-आयर्वीन समझौतेके समय गांधीजीको भेजा था । परंतु गांधीजीद्वारा इस संदेशको अस्वीकार किया गया । फिर भी आजादद्वारा स्वातंत्रसेनानियोंकी मुक्तिके लिए अथक प्रयास किए गए थे । ‘मैं जीवित होते हुए अंग्रेजोंके हाथ कदापि नहीं आउंगा’, यह उनकी प्रतिज्ञा थी ।
चंद्रशेखर आजादजीका बलिदान
चंद्रशेखर आजादजीने अपने अंतिमकालमें वे २७ फरवरी १९३१ को इलाहाबादके आल्फ्रेड उद्यानमें घुस गए । पो. अधीक्षक नाट बाबरद्वारा उन्हें यहां आते देख उनपर गोली चलायी गयी जो उनकी जांघपर लगी । परंतु उसी क्षण आजादने नाट बाबरपर गोली मारकर उसका एक हाथ निष्क्रिय कर दिया । फिर वे घिसटकर एक जामुनके पेडके पीछे छिप गए तथा वहांके हिंदुस्तानी सिपाहियोंकी ओर चिल्लाकर बोले, ‘अरे सिपाही भाइयो, तुम लोग मेरे ऊपर गोलियां क्यों बरसा रहे हो ? मैं तो तुम्हारी आजादी के लिए लड रहा हूं ! कुछ समझो तो सही !’ उन्होंने वहांके अन्य उपस्थित लोगोंसे कहा, ‘इधर मत आओ ! गोलियां चल रही हैं ! मारे जाओगे ! वंदे मातरम् ! वंदे मातरम् !’
जब अपनी पिस्तौलमें अंतिम गोली बची, तब उन्होंने पिस्तौल अपने माथेपर लगायी तथा पिस्तौलका घोडा दबाया ! उसी क्षण उनकी नश्वर प्राण पखेरू उड गए । नाट बाबरने कहा, ‘मैंने ऐसे पक्के लक्ष्यवेधी अल्प ही देखे हैं !’
पुलिस उनकी निष्प्राण देहमें संगिनी घुसेडकर उनकी मृत्युके प्रति आश्वस्त हुई (उनकी मृत्युकी निश्चिती कीयी गई ।)। आल्फ्रेड उद्यानमें एक आतंकी मारा गया, ऐसा अप्रचार कर, सरकारद्वारा उनका शव वहीं जलानेका प्रयत्न किया गया । परंतु पंडित मालवीय एवं श्रीमती कमला नेहरूद्वारा यह षडयंत्र रोककर उनकी आधी जली हुए देहकी चिता बुझाकर हिंदू परंपराके अनुसार पुनः अंतिमसंस्कार किया गया । २८ फरवरीको उनकी अंतिमयात्रा निकालकर एक विराट सभामें समस्त नेताओंद्वारा उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई ।