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आजाद हिंद सेनाके संस्थापक रास बिहारी बोस

सारिणी


लॉर्ड चार्लस हार्डिंगकी हत्याकी योजना बनानेमें रास बिहारी बोस प्रमुख आयोजक थे । रास बिहारी बोसने `गदर क्रांति’ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो ब्रिटिश सेनापर अंदरसे हमला करनेकी योजना थी । रास बिहारी बोस भारतीय राष्ट्रीय सेनाके (आजाद हिंद फौज) संस्थापक थे, आगे चलकर जिसका पंजीकरण सुमाषचंद्र बोसने किया ।

 

१. रास बिहारी बोसका बचपन

रास बिहारी बोसका जन्म २५ मई , १८८६ को पलरा-बिघाती (हुगली) देहातमें हुआ था ।  १८८९ में जब उनकी माताजीकी मृत्यु हुई, उस समय वे बहुत ही छोटे बच्चे थे । अत: उनकी मौसी वामा सुंदरीने उनका पालन पोषण किया ।

रास बिहारी बोसकी आरंभिक पढाई सुबालदाहमें उनके दादाजी, कालीचरणकी निगरानीमें तथा महाविद्यालयीन शिक्षा डुप्लेक्स महाविद्यालय, चंदननगरमें हुई । उस समय चंदननगर फ्रेंच आधिपत्यके अधीन था, इससे रास बिहारी ब्रिटिश तथा फ्रेंच दोनों संस्कृतियोंसे प्रभावित हुए । १७८९ की फ्रेंच राज्यक्रांतिने रास बिहारीपर गहरा प्रभाव छोडा । रास बिहारी एकाग्रतासे अध्ययन करनेवाले छात्र नहीं थे । वे दिनमें सपने देखते थे, क्रांतिके विचारोंसे उनका दिमाग व्यस्त रहता था । पढाईसे अधिक वे अपनी शारीरिक क्षमतामें रुचि रखते थे ।

 

२. रास बिहारी बोसमें देशभक्तिके बीज !

रास बिहारी बोसके हाथोंमें क्रांतिकारी उपन्यास, ‘आनंद मठ’ आया, जो बंगाली उपन्यासकार, कवि तथा विचारवंत बंकिम चंद्र चटर्जी ने लिखा था । रास बिहारीने प्रसिद्ध बंगाली कवि नवीन सेनकी ‘प्लासीर युद्ध’, नामक देशभक्ति का कवितासंग्रह भी पढा । उन्होंने समय-समयपर क्रांतिकी अन्य पुस्तकें भी पढीं । उन्होंने सुरेंद्रनाथ बॅनर्जी एवं स्वामी विवेकानंद इन वक्ता तथा क्रांतिकारियोंके राष्ट्रवादसे परिपूर्ण भाषण पढे । चंदननगरमें उनके विचारवंत गुरु चारुचंद मौलिक थे, जिन्होंने रास बिहारीको क्रांतिकारी विचारोंसे प्रेरित किया ।

रास बिहारी अपनी महाविद्यालयीन शिक्षा पूरी न कर सके, क्योंकि उनके चाचाने उनके लिए फोर्ट विलियममें एक नौकरी ढूंढ ली थी । वहांसे वे अपने पिताजीकी इच्छानुसार सिमलाके सरकारी प्रेसमें (छापाखानामें) स्थानांतरित होकर गए । वहां ‘कॉपी होल्डर’ के पदपर उनकी नियुक्ति की गई, तथा उन्होंने बहुत शीघ्र अंग्रेजी एवं टंकलेखन भी सीख लिया । कुछ दिनोंके पश्चात वे कसौलीकी पास्चर संस्थामें चले गए । किंतु देखा जाए तो, इनमेंसे किसी भी कार्यमें उनका मन नहीं लगा ।

अपने एक मित्रके सुझावपर रास बिहारी बोस प्रमंथा नाथ टैगोर के यहां ट्यूशन देने देहरादून गए । देहरादून फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूटमें उन्होंने मुन्शीकी नौकरी की, तथा अपनी कडी मेहनतसे शीघ्र ही वे बडा बाबू बन गए ।

 

३. क्रांतिकारी जीवनका आरंभ

१९०५ के बंगाल विभाजनके पश्चात जो घटनाएं घटीं, उनसे प्रभावित होकर रास बिहारी पूरी तरहसे क्रांतिकारी गतिविधियोंमें उलझ गए । वे इस निष्कर्षतक पहुंचे कि जबतक देशभक्तोंसे कुछ क्रांतिकारी कार्यवाही नहीं होती, सरकार झुकेगी नहीं । जतिन बनर्जीके मार्गदर्शनमें उनकी क्रांतिकारी गतिविधियां बढने लगीं ।

 

४. रास बिहारी बोस द्वारा लॉर्ड हार्डिंगपर बम हमला

२३ दिसंबर १९१२ के पश्चात रास बिहारी बोस अचानक प्रसिदि्धमें आए, जब भारतके वाइसराय लॉर्ड हार्डिंगपर बम फेंके गए । उसकी योजना बडी चतुराईसे बनाई गई थी । चंदननगरकी एक गुप्त बैठकमें रास बिहारी बोसके साहसी मित्र श्रीष घोषने हार्डिंगपर आक्रमणका सुझाव दिया । किंतु कुछ सदस्योंको वह अव्यावहारिक लगा । रासबिहारी बोले कि वे एकदम तैयार तथा दृढ थे, किंतु उन्होंने दो शर्तें रखीं- एक तो उन्हें शक्तिशाली बम दिए जाएं तथा दूसरा यह कि क्रांतिकारी विचारोंका एक दृढ युवक उनके साथ दिया जाए । उनकी दोनों बाते मानी गर्इ तथा पहला अभ्यास १९११ की दिवालीपर किया गया, जब चारों ओरसे पटाखोंकी आवाजें आ रही थी । बमविस्फोटसे रास बिहारीको संतोष हुआ । किंतु उन्हें एक साल और रुकना पडा, जिसका उपयोग उन्होंने २३ दिसंबरकी बडी घटनाका अभ्यास करके किया । वह युवक चंदननगरका बसंत बिस्वास नामका १६ सालका एक सुंदर लडका था । वह आरामसे लडकीकी पोशाक पहनकर लडकियोंमें सम्मिलित होकर चांदनी चौकके एक भवनकी छतपर बैठा करता था । सारे बडी उत्सुकतासे वाईसरायके जुलूसकी राह देख रहे थे । बसंतको लक्ष्यपर बम फेंकने थे । उसने राजा टैगोरके देहरादून स्थित बागीचेमें कई माहतक इसका अभ्यास किया था । रास बिहारी वहां ‘फॉरेस्ट रिसर्च इस्टीट्यूट’ में कार्य कर रहे थे, तथा बसंत उनका नौकर बनकर रह रहा था । सिगरेटके बक्सेमें पत्थरके टुकडे भरकर, हार्डिंगकी ऊंचाईकी/लम्बाईकी कल्पना कर उसपर फेंके जाते थे । एक दिन पूर्व रास बिहारी अपनी सखी को बग्घीमें बिठाकर चांदनी चौककी सैर करा लाए, जो दूसरे दिनके लिए निश्चित किया गया स्थान था ।

वह २३ दिसंबर १९१२ का दिन था । वाईसराय हाथीपर बैठे थे । महिलाएं बडी उत्सुकतासे जुलूसके आनेका इंतजार कर रही थी । बसंत (जो लडकी बना हुआ था) उनमेंसे एक था । पंजाब नैशनल बैंकके निकट चांदनी चौकमें ‘क्लॉक टॉवर’ मुख्य कार्यवाही हेतु चुना गया । हाथीके एकदम सामने आते ही बम फेंकना था । रास बिहारी आस-पास ही कहीं रुकनेवाले थे तथा अवध बिहारी ठीक सामने रुकेगा जो बसंतके असफल होनेपर बम फेकेगा ।

वातावरणमें जैसे बिजली कौंध गई जब रास बिहारीके ध्यानमें आया कि देहरादूनमें सिगरेटके डिब्बेमें बम फेंकनेका अभ्यास यहां काम नहीं आएगा । यहां जमीनसे हाथीपर बैठे लक्ष्यकी ऊंचाईकी कल्पना कर अपना काम करना था । वे झटसे अंदर आए, तथा बसंतको स्नानकक्षमें जाकर साडी हटाकर उनके पासके लडकेकी पोशाक पहननेको कहा । कुछ समय पश्चात एक खूबसूरत लडकीके स्थानपर एक सुंदर लडका बाहर आया । आसपास चल रहे उत्तेजनापूर्ण वातावरणमें तथा शोरगुलमें बंगालके एक लडकेका लिंगबदल किसीके ध्यानमें नहीं आया । वह नीचे आया और भीडमें मिल गया । किंतु बम उन्होंने नहीं अपितु अवध बिहारीने फेंके । वाईसराय गंभीर रूपसे घायल हो गए तथा उन्हें प्रसिद्ध डा. ए.सी.सेनके पास ले जाया गया । अवध बिहारीको फांसी दे दी गई किंतु रास बिहारी हाथ नहीं आए ।

रास बिहारी बोस रातकी ट्रेनसे देहरादून आए तथा अगले दिन सवेरे कार्यालय गए, जैसे कुछ हुआ ही न हो । इतना ही नहीं, उन्होंने देहरादूनके प्रतिष्ठित नागरिकोंकी बैठक बुलाकर वाईसरायपर हुए कायर हमलेका निषेध किया । यह वही व्यक्ति है, जिसने क्रांतिकारी कृत्यकी पूरी योजना बनाई तथा उसे कार्यान्वित किया, क्या कोई इस बातका विश्वास करता ? लॉर्ड हार्डिंगने अपनी `माई इंडियन ईयर्स’ में यह पूरी घटना बडे मनोरंजक पद्धतिसे कथन की है ।

 

५. रास बिहारी बोसकी गदर क्रांति

हार्डिंग भले ही मौतसे बच गया, किंतु रास बिहारीके अथक प्रयास आरंभ थे । वास्तवमें वह पूरे भारतवर्षमें फैला हुआ क्रांतिकारी गतिविधियोंका जाल था । इसे कुशल नेतृत्वकी आवश्यकता थी; जो भगवानने ऐसे स्थानसे भेजी, जिसकी कभी कल्पना भी नहीं की थी । १९१४ तक बहुतसे ‘विस्फोटक’ अमेरिका, कनाडा तथा पूरबसे भारत पहुंच गए । सच्चे अर्थोंमें वे गदर घटक थे । तब तक लगभग ४००० घटक भारत आ चुके थे । उनके साथ कुछ शस्त्र तथा धन था । किंतु उनमें एक बातका अभाव था और वह था एक नेताका ! हार्डिंगकी हत्याके प्रयासके पश्चात उनकी आंखें रास बिहारीपर पडीं ।

इस मोडपर विष्णु गणेश पिंगले, जो अमेरिकासे प्रशिक्षित गदर था, बोससे बनारसमें मिला तथा क्रांतिका नेतृत्व स्वीकार करनेकी विनती की । किंतु दायित्व संभालनेसे पूर्व उन्होंने सचिन सान्यालको स्थितिका अभ्यास करने पंजाब भेजा । सचिन बडी उम्मीदें लेकर लौटे । १९१५ में जनवरीके मध्यमें रास बिहारीने बनारसकी एक निजी बैठकमें आनेवाली क्रांतिके विषयमें एक समाचार घोषित किया । यूरोपमें युद्ध आरंभ हो चुका था । भारतकी अधिकतर सेना युद्ध भूमिपर भेजी गई थी । ३०,००० लोग , जो घरपर थे, ऐसे कई भारतीय थे, जिनकी निष्ठा आसानीसे जीती जा सकती थी । ऐसी स्थितिमें, विशेषकर हार्डिंग घटनाके पश्चात, एकमात्र नेताके रूपमें रास बिहारीको देखा गया । अलग अलग स्थानोंपर कई लोगोंकी नियुक्ति की गई । क्रांतिका संदेश दूर -दूरतक पहुंचाने हेतु लोग इधर उधर भेजे गए । कुछ विश्वासी गदरोंको छावनियोंमें घुसपैठ हेतु भेजा गया । रास बिहारी बोस आनेवाली क्रांतिके मस्तिष्क एवं मांसपेशी थे ।

ठंडे दिमागसे सुस्पष्ट विचार करना उनकी विशेषता थी, साथ ही उनमें प्रचुर शारीरिक शक्ति थी जिससे वे इतनी बडी क्रांतिका आयोजन करनेकी, जगह-जगहपर घूमना तथा चतुर पुलिससे बचना, आदि कृत्य कुशलतापूर्वक कर सकते थे । उन्होंने खैरों, फिरोजपुर तथा लाहौरमें अभ्यास करनेका आयोजन किया ।

२१ फरवरी १९१५ को क्रांतिका संकेत दिया जानेवाला था । आरंभमें ब्रिटिश अधिकारियोंको घेरकर पुलिस थानोंको नियंत्रणमें लेना था । जब यह सीमांत प्रांततक पहुंच जाएगा, आदिवासी शहरमें आकर सरकारी अधिष्ठानोंपर नियंत्रण करेंगे । सेनाधिकारीकी पोशाकमें रास बिहारी एक छावनीसे दूसरी छावनी जाएंगे ।

१५ फरवरीको एक सैनिक कृपाल सिंह तथा क्रांतिमें सहभागी एक नया सैनिक लाहौर स्टेशनके निकट उसे दी गई सूचनाओंके विरुद्ध संशयास्पद स्थितिमें घूमता हुआ पाया गया । उसे सेनाके लिए रास बिहारीका संदेश लेकर म्यान मीर होना चाहिए था । २१ की क्रांतिके लिए बनाई गई योजना पूरी तरहसे असफल हो गई ।

 

६. भारतकी स्वतंत्रता हेतु रास बिहारीका जापानसे संघर्ष

रास बिहारी बोसने १२ मई १९१५ को कोलकाता छोडा । वे राजा पी.एन.टी.टैगोर, रवींद्रनाथ टैगोरके दूरके रिश्तेदार बनकर जापान गए । कुछ इतिहासकारोंके अनुसार रवींद्रनाथ टैगोर इस छद्मरूपको जानते थे । रास बिहारी २२ मई, १९१५ को सिंगापुर तथा १९१५ से १९१८ के बीच जूनमें टोकियो पहुंचे । वे एक भगौडे के समान रहे, तथा अपना निवास १७ बार बदला । इसी कालावधिमें वे गदर पार्टीके हेरंबलाल गुप्ता एवं भगवान सिंहसे मिले । पहले महायुद्धमें जापान ब्रिटेनका मित्रराष्ट्र था, तथा उसने रास बिहारी एवं हेरंबलालको अपराधी घोषित करनेका प्रयास किया । हेरंबलाल अमेरिका भाग गए तथा रास बिहारीने जापानका नागरिक बनकर अपनी आंखमिचौली समाप्त की । उसने सोमा परिवारकी बेटी, टोसिकोसे विवाह किया । यह परिवार रास बिहारीके प्रयासोंको सहानुभूतिसे देखता था । इस दंपतिके दो बच्चे थे, लडका, मासाहिद एवं लडकी, तेताकू । मार्च १९२८ में २८ वर्षकी आयुमें टोसिकाकी मृत्यु हो गई ।

रास बिहारी बोसने जापानी भाषा सीख ली तथा वार्ताकार एवं लेखक बन गए । उन्होंने कई सांस्कृतिक गतिविधियोंमें हिस्सा लिया तथा भारतका दृष्टिकोण स्पष्ट करने हेतु जापानीमें कई पुस्तकें लिखीं । रास बिहारीके प्रयासोंके कारण टोकियोमें २८ से ३० मार्च १९४२ के बीच एक सम्मेलनका आयोजन किया गया जिसमें राजनैतिक विषयोंपर चर्चा हुई ।

 

७. रास बिहारी बोस द्वारा आजाद हिंद सेनाकी स्थापना

टोकियोमें २८ मार्च १९४२ को आयोजित सम्मेलनके पश्चात भारतीय स्वतंत्रता संगठन की स्थापना करनेका निश्चय किया गया । कुछ दिन पश्चात सुभाषचंद्र बोसको उसका अध्यक्ष बनाना निश्चित हुआ । जापानियों द्वारा मलाया एवं बर्मामें पकडे गए भारतीय कैदियोंको भारतीय स्वतंत्रता संगठनमें तथा भारतीय राष्ट्रीय सेनामें भरती होने हेतु प्रोत्साहित किया गया । रास बिहारी तथा कप्तान मोहन सिंह एवं सरदार प्रीतम सिंहके प्रयासोंके कारण १ सितंबर १९४२ को भारतीय राष्ट्रीय सेनाकी स्थापना हुई । वह आजाद हिंद फौजके नामसे भी जानी जाती थी ।

 

८. रास बिहारीकी मृत्यु तथा जापान सरकार द्वारा उनका सम्मान

दूसरा जागतिक महायुद्ध समाप्त होनेसे पूर्व, २१ जनवरी १९४५ को टोकियोमें रास बिहारी बोसकी मृत्यु हुई । जापानी सरकारने एक विदेशीको दी जानेवाली सर्वोच्च उपाधिसे उनका सम्मान किया – उगते सूरजकी योग्यताका दूसरा आदेश ( सेकंड ऑर्डर ऑफ मेरिट ऑफ दी राइजिंग सन ) जापानके सम्राटने उनके निधनपर उन्हें जो सम्मान दिया, वह बहुत ही भावुक था । इस दिग्गज भारतीय क्रांतिकारीका मृत शरीर ले जाने हेतु शाही गाडी भेजी गई थी । किंतु स्वतंत्र भारतमें हम इस महान देशभक्तकी राखतक वापिस मातृभूमि न ला सके । कितनी लज्जाकी बात है !

 

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