सारिणी
- १. बाल्यावस्थासे सांसारिक जीवन तक
- २. परमार्थकी ओर मार्गक्रमण
- ३. विरक्त संत तुकाराम महाराज
- ४. राष्ट्ररचनाका कार्य
- ५. अभंगरचनाका महात्म्य
- ६. आनंदमय संत तुकाराम महाराजका देहत्याग
भक्तिपरंपरामें अनन्यसाधारण स्थान रखनेवाले संत तुकाराम महाराजने संसारके सर्व सुख-दुःखोंका सामना साहससे कर अपनी वृत्ति विठ्ठलचरणोंमें स्थिर की । फाल्गुन वद्य दि्वतियाको संत तुकाराम सदेह वैकुंठ सिधारे । भागवतधर्म मंदिरका कलश अर्थात संत तुकाराम महाराजकी जानकारी देनेवाला यह लेख ……..
१. बाल्यावस्थासे सांसारिक जीवन तक
संत तुकाराम महाराजका जन्म पुणेके निकट देहू गांवमें हुआ था । पिताजी बोल्होबा तथा मां कनकाईके सुपुत्र तुकाराम महाराजका उपनाम अंबिले था । उनके कुलके मूल पुरुष विश्वंभरबुवा महान विठ्ठलभक्त थे । उनके कुलमें पंढरपुरकी यात्रा करनेकी परंपरा थी । सावजी उनके बडे तथा कान्होबा छोटे भाई थे । उनकी बाल्यावस्था सुखमें व्यतीत हुई थी । बडे भाई सावजी विरक्त वृत्तिके थे । इसलिए घरका पूर्ण उत्तरदायित्व तुकाराम महाराजपर था । पुणेके आप्पाजी गुळवेकी कन्या जिजाई (आवडी)के साथ उनका विवाह हुआ था ।
तुकाराम महाराजको उनके सांसारिक जीवनमें अनेक दुःखोंका सामना करना पडा । १७-१८ वर्षकी आयुमें उनके माता-पिताकी मृत्यु हो गई, तथा बडे भाई विरक्तिके कारण तीर्थयात्रापर चले गए । उन्हें भीषण अकालका भी सामना करना पडा । अकालमें उनके बडे पुत्रकी मृत्यु हो गई तथा घरका पशुधन नष्ट हो गया । घर दरिद्रमें डूब गया ।
२. परमार्थकी ओर मार्गक्रमण
संत तुकाराम महाराजको उनके सद्गुरु बाबाजी चैतन्यने स्वप्नमें दृष्टांत देकर गुरुमंत्र दिया । पांडुरंगके प्रति निस्सिम भक्तीके कारण उनकी वृत्ति विठ्ठलचरणोंमें स्थिर होने लगी । आगे मोक्षप्राप्तिकी तीव्र उत्कंठाके कारण तुकाराम महाराजने देहूके निकट एक पर्वतपर एकांतमें ईश्वरसाक्षात्कारके लिए निर्वाण प्रारंभ किया । वहां पंद्रह दिन एकाग्रतासे अखंड नामजप करनेपर उन्हें दिव्य अनुभव प्राप्त हुआ ।
सिद्धावस्था प्राप्त होनेके पश्चात संत तुकाराम महाराजने ‘संसारसागरमें डूबनेवाले ये लोग आंखोंसे देखे नहीं जाते’( ‘बुडती हे जन देखवेना डोळां । ) ऐसा दुःख व्यक्त कर लोगोंको भक्तिमार्गका उपदेश किया । वे सदैव पांडुरंगके भजनमें मग्न रहते थे । पांडुरंगका नाम अमृतसमान है , वही मेरा जीवन है, ऐसा वे कीर्तनके माध्यमसे बताते थे । ‘धर्मकी रक्षा हेतु हमे बहुत प्रयास करने हैं’, यह कहते हुए संत तुकाराम महाराजने वेद एवं धर्मशास्त्रका सदैव समर्थन किया । तुकाराम महाराजने संकटकी खाईमें गिरे हुए समाजको जागृतिका, प्रगतिका मार्ग दिखाया । परतंत्रतामें हीनदीन बने समाजको सात्त्विक पंथ दिखाया तथा भक्तियोग सन्मानित किया । हजारों भक्तोंको एक छत्रके नीचे लाया । जैसे विचार वैसाही आचार होना चाहिए, यह समाजको सिखाया ।
स्वभावत: स्पष्टवादी होने के कारण इनकी वाणीमें जो कठोरता दिखाई पड़ती है, उसके पीछे इनका प्रमुख उद्देश्य था समाजसे दुष्टोंका निर्दलन कर धर्मकी सुरक्षा करना । इन्होंने सदैव सत्यका ही अवलंबन किया और किसी की प्रसन्नता और अप्रसन्नता की ओर ध्यान न देते हुए धर्मसुरक्षाके साथ साथ पाखंड खंडन का कार्य निरंतर चलाया । उन्होंने दांभिक संत, अनुभवशून्य पोथीपंडित तथा दुराचारी धर्मगुरु इत्यादि दुष्टोंकी अत्यंत तीव्र आलोचना की ।
३. विरक्त संत तुकाराम महाराज
संत तुकाराम महाराजकी कीर्ति छत्रपती शिवाजी महाराजके कानोंतक पहुंच गई थी । शिवाजी महाराजने तुकाराम महाराजको सम्मानित करनेके लिए अबदगिरी, घोडे तथा अपार संपत्ति भेजी । विरक्त तुकाराम महाराजसे वह सर्व संपत्ति लौटाते हुए कहा कि ‘पांडुरंगके बिना हमें दूसरा कुछ भी अच्छा नहीं लगता ।’ उत्तरस्वरूप चौदह अभंगोंकी रचना भेजी ।
४. राष्ट्ररचनाका कार्य
एक बार शिवाजी महाराज संत तुकाराम महाराजके कीर्तनमें गए थे । उस समय मुघलोंने उस मंदिरको घेर लिया । उस समय शिवाजी महाराजके प्राणोंकी रक्षाके लिए तुकाराम महाराजने भगवान विट्ठलका मनःपूर्वक स्मरण किया । उनकी भक्तिसे विट्ठल भगवानने शिवाजीका रूप लेकर सबके प्राणोंकी रक्षा की । शिवाजी महाराजद्वारा भविष्यमें हिंदवी स्वराज्यकी स्थापनाका कार्य होना था, यह जानकर तुकाराम महाराजने शिवाजी महाराजके प्राणोंकी रक्षा की । जिस प्रकार शिवाजी महाराज एवं उनकी भेंट हुई थी, उसी प्रकार रामदासस्वामीसे भी उनकी भेंट हुई । इन तीनोंने एक आदर्श राष्ट्रकी कल्पना साकार करने हेतु बहुत प्रयास किए ।
संत तुकारामजीका कीर्तन सुनकर मूलतः सत् एवं आध्यात्मिक मानसिकता रखनेवाले छत्रपतिके मनमें विरक्तिके विचार प्रबल हुए । परंतु संत तुकोबाजीने छत्रपतिजीको `हमें विश्वको उपदेश करना चाहिए तथा आपको क्षात्रधर्म संभालना चाहिए’ ऐसा उपदेश किया एवं भविष्यकालमें इस आज्ञाका शिवाजीने ठीक वैसा ही पालन किया ।
५. अभंगरचनाका महात्म्य
कवित्वका स्वप्नदृष्टांत होनेके पश्चात उन्होंने अभंगोंकी रचना करना प्रारंभ किया । पूर्वसे ही ध्यान, चिंतनमें जीवन व्यतीत होनेके कारण उन्होंने ईश्वरीय अनुसंधानमें ही अपनी मधुर वाणीमें अनेक अभंगोंकी रचना की । अभंग तुकाराम महाराजकी विशेषता थी । जिस प्रकार वामनके श्लोक, ज्ञानेश्वर महाराजकी ओवी उसी प्रकार तुकाराम महाराजके अभंग । उनके अभंग भक्ति, ज्ञान, वैराग्य एवं नीतिपर आधारित हैं ।
तुकाराम महाराजने संस्कृतके वेदोंका अर्थ प्राकृत भाषामें बताया था । इसलिए वाघोली गांवके रामेश्वरशास्त्रीने तुकाराम महाराजके अभंगोंकी गाथा इंद्रायणी नदीमें डुबोनेका आदेश दिया । गाथा डुबोनेके तेरह दिन पश्चात वह पुनः नदीसे ऊपर आ गई । यह देखकर रामेश्वरशास्त्रीको पश्चाताप हुआ तथा वे महाराजके शिष्य बन गए ।
६. आनंदमय संत तुकाराम महाराजका देहत्याग
संत तुकाराम महाराजके साधुत्व एवं कवित्वकी कीर्ति सर्वत्र फैल गई । उस आनंदावस्थामें उन्हें स्वयंके लिए कुछ भी प्राप्त नहीं करना था । वे तो केवल दूसरोंपर उपकार करने हेतु ही जीवित थे । ( ‘तुका म्हणे आता । उरलो उपकारापुरता ।’) अपनी भक्तिके बलपर महाराजने आकाशकी ऊंचाई प्राप्त की तथा केवल ४१ वर्षकी आयुमें सदेह वैकुंठगमन किया । फाल्गुन वद्य द्वितियाको तुकाराम महाराजका वैकुंठ गमन हुआ । यह दिन ‘तुकाराम बीज’ नामसे जाना जाता है ।