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‘हलाल सर्टिफिकेट’ – भारत को इस्‍लामीकरण की ओर ले जानेवाला आर्थिक जिहाद !

‘स्‍वतंत्र भारत को ‘सेक्‍युलरवाद’ के पाखंड का ग्रहण लग गया है । ‘सेक्‍युलर’ सरकारों द्वारा अल्‍पसंख्‍यकों के मतों के लिए धर्मनिरपेक्षता के नाम पर बहुसंख्‍यक हिन्दुओं के साथ अन्‍याय करनेवाली नीतियां अपनाई जा रही हैं । इसमें चाहे हिन्‍दू मंदिरों का सरकारीकरण हो अथवा हज-जेरूसलेम जैसी धार्मिक यात्राओं के लिए सरकारी अनुदान देने की बात हो; ऐसे संविधानविरोधी कार्य चल रहे हैं । ऐसी स्‍थिति में भी हिन्‍दू अन्‍याय सहन करते हुए सरकारों को कर भुगतान कर रहे हैं; परंतु हिन्दुओं की स्‍थिति में बदलाव आता हुआ दिखाई नहीं देता ।

भारत पर राज्‍य करने का जिनका स्‍वप्‍न है, वे लोग सरकार से एक मांग पूर्ण किए जाने पर संतुष्‍ट न होकर अपनी अगली मांग आगे कर दे रहे हैं । उसमें भी भारत में शरीयत पर आधारित इस्‍लामिक बैंक चालू करने की मांग की जाने लगी; परंतु प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने यह मांग ठुकरा दी । बैंक स्‍थापित करने के लिए सरकारी अनुमति आवश्‍यक होती है; परंतु कोई भी ग्राहक संविधान द्वारा प्रदान की गई धार्मिक स्‍वतंत्रता का लाभ उठाकर अपने धर्म के अनुसार स्‍वीकार्य सामग्री अथवा पदार्थों का आग्रह रख सकता है । इसके आधार पर मुसलमानों द्वारा प्रत्‍येक पदार्थ अथवा वस्‍तु इस्‍लाम के अनुसार वैध अर्थात ‘हलाल’ होने की मांग की जा रही है । उसके लिए ‘हलाल सर्टिफिकेट (प्रमाणपत्र)’ लेना अनिवार्य किया गया । इसके द्वारा इस्‍लामी अर्थव्‍यवस्‍था अर्थात ‘हलाल इकॉनॉमी’ को धर्म का आधार होते हुए भी बहुत ही चतुराई के साथ निधर्मी भारत में लागू किया गया । इसमें आश्‍चर्य की बात यह कि निधर्मी भारत के रेल और एयर इंडिया जैसे सरकारी प्रतिष्‍ठानों में भी हलाल अनिवार्य किया गया । देश में केवल १५ प्रतिशत जनसंख्‍यावाले अल्‍पसंख्‍यक मुसलमान समुदाय को इस्‍लाम आधारित वैध हलाल मांस खाना है; इसलिए शेष ८५ प्रतिशत जनता पर भी यह निर्णय थोपा जाने लगा । अब तो यह हलाल प्रमाणपत्र केवल मांसाहारतक सीमित न रहकर खाद्यपदार्थ, सौंदर्य प्रसाधन, औषधियां, चिकित्‍सालय, गृहसंस्‍थी से संबंधित आस्‍थापन और मॉल के लिए भी आरंभ हो गया है ।

श्री. रमेश शिंदे

इस्‍लामिक देशों में निर्यात करनेवालों के लिए तो ‘हलाल सर्टिफिकेट (प्रमाणपत्र)’ अनिवार्य ही कर दिया गया है । इस हलाल अर्थव्‍यवस्‍था ने विश्‍वभर में अपना दबदबा बना लिया है । उसने भारत की अर्थव्‍यवस्‍था के जितना अर्थात २ ट्रिलीयन (१ ट्रिलीयन का अर्थ १ पर १२ शून्‍य – १००० अब्‍ज) डॉलर्स का लक्ष्य भी प्राप्‍त किया है । जब समांतर अर्थव्‍यवस्‍था खडी रहती है, तब देश के विविध तंत्रों पर निश्‍चितरूप से उसका परिणाम होता है । यहां तो धर्म के आधार पर एक समांतर अर्थव्‍यवस्‍था बन रही है । उसके कारण निधर्मी भारत भी उससे निश्‍चितरूप से प्रभावित होनेवाला है । इस दृष्‍टि से भविष्‍य में स्‍थानीय व्‍यापारी, पारंपरिक उद्यमी, साथ ही अंततः राष्‍ट्र के लिए क्‍या संकट खडा हो सकता है, इस पर विचार करना आवश्‍यक है । इस विचार को समझने हेतु ही इस लेख का प्रयोजन है । इस लेख को पढकर आप भारत का भविष्‍य सुरक्षित बनाने में सहयोग दें !

संकलक – श्री. रमेश शिंदे, राष्‍ट्रीय प्रवक्‍ता, हिन्‍दू जनजागृति समिति

१. हलाल क्‍या है ?

अरबी शब्‍द ‘हलाल’ का अर्थ है इस्‍लाम के अनुसार वैध और स्‍वीकार्य; तो उसका प्रतिवाचक शब्‍द है ‘हराम’ अर्थात इस्‍लाम के अनुसार अवैध/निषिद्ध/वर्जित । ‘हलाल’ शब्‍द मुख्‍यत: खाद्यान्‍न एवं तरल पदार्थों के संदर्भ में प्रयोग किया जाता है ।
इस्‍लामी विधियों के अनुसार ५ ‘अहकाम’ (निर्णय अथवा आज्ञाएं) मानी गई हैं । उनमें फर्ज फर्ज (अनिवार्य), मुस्‍तहब (अनुशंसित), मुबाह (तटस्‍थ), मकरूह (निंदनीय) और हराम (निषिद्ध) अंतर्भूत हैं । इनमें से ‘हलाल’ की संकल्‍पना में पहले ३ अथवा ४ आज्ञाएं अंतर्भूत होने के संदर्भ में इस्‍लामी जानकारों में मतभेद हैं ।

‘हलाल’ शब्‍द का मुख्‍य उपयोग मांस प्राप्‍त करने हेतु पशु की हत्‍या करने के संदर्भ में किया जाता है ।

अ. इसमें मुख्‍यरूप से कुरबानी करनेवाला (कसाई) इस्‍लामी विधि का पालन करनेवाला अर्थात मुसलमान होना चाहिए ।
आ. जिस पशु को हलाल करना है, वह पशु स्‍वस्‍थ और सशक्‍त होना चाहिए ।
इ. उसे खुले वातावरण में रखा जाना चाहिए ।
ई. उसे मारते समय (जबिहा करते समय) पहले इस्‍लामी प्रथा के अनुसार ‘बिस्‍मिल्लाह अल्लाहू अकबर’ कहा जाना चाहिए ।
उ. गले से चाकू घूमाते समय उस पशु की गर्दन मक्‍का स्‍थित काबा की दिशा में होनी चाहिए ।
ऊ. तत्‍पश्‍चात धारदार चाकू से पशु की सांसनलिका, रक्‍त को प्रवाहित करनेवाली नसें और गले की नसों को काटकर उस पशु का संपूर्ण रक्‍त बहने देना चाहिए ।
ए. इस पशु को पीडा न हो; इसके लिए पहले उसे बिजली का झटका देना अथवा अचेत करना निषेध माना गया है ।
इसके कारण पाश्‍चात्त्य देशों में इस पद्धति को अमानुषिक माना जाता है; परंतु इस्‍लाम के अनुसार केवल हलाल के मांस को ही पवित्र और वैध माना जाता है । इसके कारण आज अइस्‍लामी देशों में भी ७० से ८० प्रतिशत मांस हलाल पद्धति से अर्थात उक्‍त मापदंडों का पालन कर ही प्राप्‍त किया जाता है । केवल मछलियां और समुद्र में मिलनेवाले जलचरों के लिए हलाल पद्धति आवश्‍यक नहीं है । आज के काल के अनुसार हलाल और हराम ध्‍यान में आए; इसके लिए सरल नियम बनाने की ओर झुकाव है ।

२. ‘हलाल’ में मांस सहित अंतर्भूत अन्‍य पदार्थ

अ. दूध (गाय, भेडी, बकरी और ऊंट का)

आ. शहद

इ. मछलियां

ई. मादक न होनेवाली वनस्‍पतियां

उ. ताजे और सूखे फल

ऊ. काजू-बदाम आदि सूखेमेवे

ए. गेहूं, चावल आदि अनाज

३. हराम अर्थात इस्‍लाम के अनुसार निषिद्ध बातें

इनमें मुख्‍यत: निम्‍मांकित बातें अंतर्भूत हैं ।

अ. सुअर, जंगली सुअर, उनकी प्रजाति के अन्‍य पशु तथा उनके अंगों से बनाए जानेवाले जिलेटिन जैसे अन्‍य पदार्थ

आ. नुकीले पंजेवाले तथा नुकीले खांगवाले हिंस्र और मांसाहारी प्राणी-पक्षी, उदा. सिंह, बाघ, वानर, नाग, गरुड, गीदड इत्‍यादि

इ. जिन्‍हें मारना इस्‍लाम के अनुसार निषेध है, उदा. चींटी, मधुमक्‍खियां, कठफोडवे इत्‍यादि

ई. भूमि एवं पानी इन दोनों स्‍थानों पर रहनेवाले उभयचर प्राणी, उदा. मगरमच्‍छ, मेंढक इत्‍यादि

उ. गधा और खच्‍चर, साथ ही सभी प्रकार के विषैले प्राणी

ऊ. गला दबाकर अथवा सिर पर आघात कर मारे गए पशु, साथ ही सामान्‍यरूप से मृत पशु और उनके अवशेष

ए. मनुष्‍य अथवा पशुओं के शरीर के अवकाश से बाहर आनेवाला रक्‍त एवं मल-मूत्र

ऐ. विषैले, साथ ही मादक वनस्‍पतियां

ओ. अल्‍कोहल अंतर्भूत पेय, उदा. मदिरा, स्‍पिरीट एवं सॉसेजेस

औ. विषैले, साथ ही मद उत्‍पन्‍न करनेवाले पेय तथा उनसे बनाए जानेवाले पदार्थ एवं रसायन

अं. ‘बिस्‍मिल्लाह’ न बोलकर इस्‍लामविरोधी पद्धति से बलि चढाए गए पशुओं का मांस

इस सूची से इस्‍लाम के अनुसार हलाल एवं हराम क्‍या है, यह स्‍पष्‍ट हुआ होगा । इस संदर्भ में कुरआन का आदेश होने तथा हराम के पदार्थ खाने से पाप लगने से, साथ ही मृत्‍यु के पश्‍चात दंडित किया जाएगा, इस भय से मुसलमान हलाल अन्‍न का आग्रह रखते हैं । हलाल पदार्थ बनाते समय उसमें हराम माने जानेवाले किसी एक भी घटक को अंतर्भूत किया गया, तो वह अन्‍न हलाल नहीं रहता । इसलिए सभी देशों में हलाल मांस की बडी मात्रा उपलब्‍ध की जाती है । आज भारत गैरइस्‍लामी देश होते हुए भी भारत से निर्यात किया जानेवाला मांस हलाल पद्धति का ही होता है । हलाल मांस होने की आश्‍वस्‍तता न होने पर मुसलमानों ने संबंधित लोगों पर धर्मभ्रष्‍ट किए जाने के अभियोग प्रविष्‍ट कर बडे-बडे प्रतिष्‍ठानों को करोडों रुपए की हानि-भरपाई का भुगतान करने के लिए बाध्‍य बनाया है । इसके कारण भी ‘हलाल’ संकल्‍पना को महत्त्व प्राप्‍त हुआ है ।

४. इस्‍लामिक बैंक एवं हलाल अर्थव्‍यवस्‍था

इस्‍लामिक बैंक एवं हलाल अर्थव्‍यवस्‍था में अंतर नहीं है । ये दोनों बातें समान इस्‍लामी विचारों पर आधारित हैं । इस्‍लामी अर्थसहायता के बल पर हलाल उत्‍पादों को बाजार में उतारा जा रहा है । शरीयत विधि के अनुसार ब्‍याज लेने पर प्रतिबंध होने से इस मान्‍यता के आधार पर इस्‍लामिक बैंक की स्‍थापना की गई । मलेशिया में वर्ष १९८३ में ‘इस्‍लामिक बैंकिंग एक्‍ट’ के अनुसार ‘इस्‍लामिक बैंकिंग एन्‍ड फाईनान्‍स’ (IBF) बैंक का आरंभ हुआ । यह बैंक धार्मिक परंपराओं पे आधार पर होने से उसे भारत जैसे अनेक गैरइस्‍लामी देशों में स्‍वीकारा नहीं गया । हलाल उत्‍पाद पहले से ही उपयोग में थे । वर्ष २०११ में मलेशिया की सरकार ने स्‍थानीय वाणिज्‍य मंत्रालय के द्वारा ‘हलाल प्रॉडक्‍ट इंडस्‍ट्री’ (HPI) आरंभ की । वर्ष २०१३ में क्‍वालालंपूर में ‘वर्ल्‍ड हलाल रिसर्च’ एवं ‘वर्ल्‍ड हलाल फोरम’ के अधिवेशन में हलाल अर्थव्‍यवस्‍था की संकल्‍पना रखी गई । इससे ‘हलाल प्रॉडक्‍ट इंडस्‍ट्री’ (HPI) एवं ‘इस्‍लामिक बैंकिंग एन्‍ड फाईनान्‍स’ (IBF) इनमें समन्‍वय बनाकर उन्‍हें बल देना सुनिश्‍चित किया गया । इसके प्रसार के लिए निजी निवेश के द्वारा ‘सोशल एक्‍सेप्‍टेबल मार्केट इन्‍वेस्‍टमेंट (SAMI) हलाल फूड इंडेक्‍स’ आरंभ किया गया । विश्‍व में इस प्रकार का यह पहला प्रयास था । इसका अच्‍छा प्रत्‍युत्तर भी मिला ।

५. हलाल अर्थव्‍यवस्‍था को धार्मिक आधार !

इस्‍लामी धर्मग्रंथ कुरआन में हलाल अर्थव्‍यवस्‍था के संदर्भ में कहीं पर भी स्‍पष्‍टता से उल्लेख नहीं है; परंतु उसमें ‘कौन सी बातें हलाल हैं’ और ‘कौन सी हराम’, इसका उल्लेख मिलता है । कुरआन के ५६ आयतों में ‘हलाल’ शब्‍द का उल्लेख आया है, तो २१ आयतों में आहार के संदर्भ में उल्लेख है । ‘हदीस’ ग्रंथ में भी हलाल का विविध प्रकार से कैसे उपयोग किया जा सकता है, इसका उल्लेख आया है, साथ ही उसमें ‘हराम पदार्थ लेने से कितना पाप लगेगा और कितना आर्थिक दंड होगा’, इसका भी उल्लेख है । इसके आधार पर आज के इस्‍लामी जानकारों ने हलाल अर्थव्‍यवस्‍था को स्‍थापित करने और उसे मुसलमानों के मन पर अंकित करने का प्रयास आरंभ किया है ।

६. हलाल के द्वारा विश्‍वस्‍तर के बाजार पर नियंत्रण स्‍थापित करने का प्रयास !

हलाल आय की मूल संकल्‍पना खेत से उपभोक्‍तातक सीमित थी । उसमें उत्‍पादन करनेवाले से लेकर उपभोक्‍तातक की कडी ही बनाई गई थी । जिस समय हलाल अर्थव्‍यवस्‍था का विचार बढने लगा, तब ‘खेत से लेकर उपभोक्‍ता और उससे आर्थिक नियोजन’ का विचार रखा जाने लगा । HSBC (बहुराष्‍ट्रीय निवेश अधिकोष) अमाना मलेशिया के कार्यकारी अधिकारी रेफ हनीफ ने स्‍पष्‍टता से कहा कि यदि हमें हलाल अर्थव्‍यवस्‍था की ओर अग्रसर होना हो, तो हमें व्‍यापक विचार करना चाहिए और अर्थनियोजन से लेकर उत्‍पादनतक की संपूर्ण कडी को ही हलाल बनाने का प्रयास करना होगा । हलाल उत्‍पादों से लाभ अर्जित करना और उस आर्थिक लाभ को इस्‍लामिक बैंक के द्वारा उत्‍पादों की वृद्धि के लिए उपयोग करना, साथ ही इस्‍लामिक बैंक से हलाल उत्‍पाद बनानेवालों को आर्थिक सहायता उपलब्‍ध करा देना और वैश्‍विक बाजार पर नियंत्रण स्‍थापित करने का प्रयास करना । ऐसा करने से संपूर्ण शृंखला पर उनका नियंत्रण स्‍थापित हो जाने से इस्‍लामिक बैंक की स्‍थिति में लक्षणीय बदलाव आया । बैंक की संपत्ति, जो वर्ष २००० में ६.९ प्रतिशत थी, वह वर्ष २०११ मध्‍ये २२ प्रतिशत बढी । आज विश्‍वभर में ‘हलाल इंडस्‍ट्री’ सर्वाधिक तीव्र गति से बढनेवाली व्‍यवस्‍था बन गई है । संक्षेप में कहा जाए, तो इस्‍लाम के आधार पर ‘हलाल इंडस्‍ट्री’ और हलाल अर्थव्‍यवस्‍था के आधार पर ‘इस्‍लामिक बैंक’ बडी ही बनती जा रही हैं ।

७. पुराने नियमों को तोड-मरोडकर हलाल संकल्‍पना को व्‍यापक बनाना !

हलाल मांस से आरंभ हलाल व्‍यवसाय की संकल्‍पना तीव्र गति से व्‍यापक बनती जा रही है । हलाल की संकल्‍पना में स्‍थानीय स्‍थिति के अनुसार, साथ ही पंथों के आधार पर बदलाव किए जाने से कुछ वर्ष पूर्व हराम मानी जानेवाली बातों को आज हलाल प्रमाणित किया जा रहा है ।

जैसे कुछ वर्ष पहले नमाज के लिए दी जानेवाली अजान की पुकार को पवित्र ध्‍वनि मानकर ध्‍वनियंत्र का उपयोग कर अजान देना ‘हराम’ माना जाता था; परंतु इस्‍लाम के प्रसार की दृष्‍टि से ध्‍वनियंत्र सहायक हो सकता है, इसे ध्‍यान में लेकर कुछ समय पश्‍चात उसे स्‍वीकारा गया । आज प्रत्‍येक मस्‍जिद से गूंजनेवाली ऊंची आवाज के कारण सामाजिक शांति भंग होने की स्‍थिति बन गई है । इसी प्रकार इस्‍लामी अर्थव्‍यवस्‍था बनाने हेतु पुराने नियम तोड-मरोडकर हलाल संकल्‍पना को व्‍यापक बनाया जा रहा है । कुछ वर्ष पूर्व शृंगार (मेकअप) करना भी हराम माना जाता था; परंतु अब सौंदर्यप्रसाधनों को हलाल प्रमाणित किया जा रहा है । इस व्‍यापकता को ध्‍यान में आने हेतु आगे कुछ उदाहरण दिए गए हैं ।

अ. मांसाहारी से शाकाहारी पदार्थ : सुप्रसिद्ध ‘हल्‍दीराम’ का शुद्ध शाकाहारी नमकीन भी अब हलाल प्रमाणित हो चुका है । सूखे फल, मिठाई, चॉकलेट भी इसमें अंतर्भूत हैं ।

आ. खाद्यपदाथ से लेकर सौंदर्यप्रसाधनतक : अनाज, तेल से लेकर साबुन, शैम्‍पू, टूथपेस्‍ट, काजल, नेलपॉलिश, लिपस्‍टिक आदि सौंदर्यप्रसाधन भी हलाल में अंतर्भूत हैं ।

हलाल प्रमाणित शैम्‍पू

इ. औषधियां : युनानी, आयुर्वेदिक इत्‍यादि औषधियां और शहद में भी हलाल की संकल्‍पना आ गई है ।

हलाल प्रमाणित काजल

ई. पाश्‍चात्त्य अंतरराष्‍ट्रीय खाद्यपदार्थ : अब मैकडोनाल्‍ड का बर्गर, डॉमिनोज का पिज्‍जा जैसे अधिकांश सभी विमानों में मिलनेवाला भोजन हलाल प्रमाणित हुआ है ।

उ. हलाल गृहसंकुल : केरल राज्‍य के कोची नगर में शरीयत नियमों के आधार पर हलाल प्रमाणित पहला गृहसंकुल बन रहा है । इसमें महिला और पुरुष के लिए अलग-अलग स्‍वीमिंग पूल, अलग-अलग प्रार्थनाघर, नमाज के समय दिखानेवाली घडियां, प्रत्‍येक घर में नमाज सुनाई देने की व्‍यवस्‍था आदि विविध सुविधाओं तथा शरीयत के नियमों का उन्‍होंने उल्लेख किया है ।

ऊ. हलाल चिकित्‍सालय : तमिलनाडू के चेन्‍नई नगर में स्‍थित ‘ग्‍लोबल हेल्‍थ सिटी’ चिकित्‍सालय को हलाल प्रमाणित घोषित किया गया है । उनका यह दावा है कि वे इस्‍लाम में बताए अनुसार अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर की स्‍वच्‍छता और आहार देते हैं ।

ए. ‘हलाल डेटिंग वेबसाईट’ : संकेतस्‍थलों पर युवक-युवतियों का एक-दूसरे से परिचय करानेवाले, उनसे मित्रता और भेंट करानेवाले अनेक संकेतस्‍थल हैं । इसमें भी शरीयत के आधार पर ‘हलाल डेटिंग वेबसाईट्‌स’ (संकेतस्‍थल) चालू किए गए हैं । इसमें ‘मिंगल’ एक मुख्‍य संकेतस्‍थल है ।

८. दार-उल्-हरब देशों में हलाल प्रमाणपत्रों द्वारा शुल्‍कवसूली

हलाल अर्थव्‍यवस्‍था में उत्‍पाद से उपभोक्‍तातक की संपूर्ण शृंखला में इस्‍लामी व्‍यवस्‍था को स्‍थापित करने का भले ही उनका प्रयास हो; परंतु बाजार में पहले से उपलब्‍ध विश्‍व स्‍तर, साथ ही राष्‍ट्रीय स्‍तर के अनेक बडे उद्योगों को ब्रैंड्‍स, उदा. मैकडोनाल्‍ड, डॉमिनोज, साथ ही ताज कैटरर्स, हल्‍दीराम, बिकानो, वाडीलाल आईस्‍क्रीम, केलॉग्‍ज, दावत बासमती, फॉर्च्‍युन ऑईल, अमृतांजन, विको इत्‍यादि को चुनौती देना अथवा उनकी गुणवत्ता के समान उत्‍पाद बनाना संभव नहीं है । जो देश इस्‍लामबहुसंख्‍यक हैं, अर्थात दार-उल्-हरब हैं, वहां सभी कामों के लिए मुसलमान कर्मचारी नियुक्‍त करना संभव नहीं है, ऐसे देशों को कुछ मात्रा में विशेष छूट दी गई है । इन देशों के उत्‍पादकों से बडा शुल्‍क वसूलकर मुसलमान उपभोक्‍ताओं के लिए हलाल प्रमाणपत्र लेने के लिए बाध्‍य किया जा रहा है । इससे भी इस्‍लामी अर्थव्‍यवस्‍था को सहायता मिल रही है । पहले इस्‍लामी कार्यकाल में किसी हिन्‍दू को यदि धर्मांतरण न कर हिन्‍दू ही रहना हो, तो उसे ‘जिझिया’ नामक कर का भुगतान करना पडता था । उसी प्रकार यदि मुसलमानों को आपके उत्‍पादों का क्रय करना हो, तो आपको हलाल प्रमाणपत्र लेने के लिए शुल्‍क भरना ही पडेगा, यह स्‍थिति बनाई गई है ।

९. इस्‍लामिक ‘उम्‍माह’ का साथ

विश्‍वस्‍तर पर इस्‍लामी देशों का संगठन (ऑर्गनाईजेशन ऑफ इस्‍लामिक कंट्रीज – OIC) ‘उम्‍माह’ अर्थात इस्‍लाम के अनुसार देश और सीमा रहित धार्मिक भाईचारे की संकल्‍पना पर चलता है । इसलिए भारत-नेपाल-चीन जैसे गैरइस्‍लामी देशों के उत्‍पादों का मुसलमान देशों में निर्यात करना हो, तो पहले उन्‍हें अपने देश में स्‍थित वैध इस्‍लामिक संगठन से हलाल प्रमाणपत्र लेना अनिवार्य है । अतः प्रत्‍येक निर्यातक को यह प्रमाणपत्र प्राप्‍त करने के लिए खर्चा तो करना ही पडता है ।

हलाल प्रमाणपत्र का विज्ञापन !

हलाल प्रमाणपत्र प्रदान करनेवाले ‘जमियत उलेमा-ए-हिन्‍द’ का संकेतस्‍थल

अब इस हलाल प्रमाणपत्र का विज्ञापन किया जा रहा है । यह प्रमाणपत्र खरीदने पर उत्‍पादक को उसके कौन-कौन से लाभ मिलेंगे, उनकी सूची निम्‍नानुसार है –

अ. हलाल प्रमाणपत्र लेने पर २०० करोड की प्रचुर जनसंख्‍यावाले वैश्‍विक मुसलमान समुदाय में व्‍यापार के अवसर मिलेंगे ।

आ. मुसलमान देशों के बाजारों में व्‍यापार करना सुलभ होगा ।

इ. विश्‍व के किसी भी देश के मुसलमान बिना किसी संकोच आपके उत्‍पाद खरीदेंगे ।

ई. भारत में हलाल प्रमाणपत्र देनेवाली संस्‍था १२० देशों में कार्यरत शरीयत बोर्ड और १४० इस्‍लामी संगठनों के साथ जुडे होने से व्‍यापार के अवसर बढेंगे ।

उ. हलाल प्रमाणपत्र के लिए आवश्‍यक अल्‍प व्‍यय की अपेक्षा अनेक गुना आर्थिक लाभ मिलेगा ।

ऊ. हलाल प्रमाणपत्र लेने से अन्‍य धर्मी ग्राहक किसी प्रकार नहीं घटेंगे ।

इस विज्ञापन में दिए कारणों से, साथ ही मुसलमान देशों में व्‍यवसाय करना हो, तो वहां के हलाल नियमों की अनिवार्यता के कारण व्‍यवसायियों को हलाल प्रमाणपत्र लेने की संख्‍या भी बडी है और इतना ही नहीं, अपितु हलाल प्रमाणपत्र देनेवाली मुस्‍लिम संस्‍थाएं अनेक व्‍यवसायियों से स्‍वयं ही संपर्क कर हलाल प्रमाणपत्र से होनेवाले लाभ बताकर उन्‍हें इस जाल में फंसाने का प्रयास कर रही हैं ।

१०. हलाल प्रमाणपत्र प्राप्‍त कर दिलाने हेतु सर्वसामान्‍य परीक्षणों को तांत्रिक रूप देना

आज किसी प्रतिष्‍ठान को गुणवत्ता का ISO (इंटरनैशनल ऑर्गनाईजेशन फॉर स्‍टैंडर्डाईजेशन) प्रमाणपत्र चाहिए, तो उसे अनेक बातों का अचूकता से पालन करना पडता है; परंतु किसी होटल के लिए हलाल प्रमाणपत्र प्राप्‍त करना हो, तो संबंधित इस्‍लामी संगठन द्वारा धर्म पर अधिक बल दिया जा रहा है । वहां मिलनेवाला ‘हलाल मांस अथवा वहां उपयोग किए जानेवाले पदार्थ हलाल प्रमाणित हैं अथवा नहीं ?, इसके परीक्षण पर ही बल दिया गया है । हलाल प्रमाणपत्र के लिए मुसलमान निरीक्षक द्वारा किए जानेवाले परीक्षण निम्‍नानुसार हैं –

अ. हॉटेल की स्‍वच्‍छता, उपयोग किए जानेवाले बरतन, मेन्‍यूकार्ड, फ्रीजर, रसोई में उपयोग किए जानेवाले पदार्थ, पदार्थों का संग्रह आदि का निरीक्षण कर उसका ब्‍यौरा बनाना

आ. सुअर का मांस अथवा उनसे बनाए गए पदार्थ वहां उपलब्‍ध नहीं होने चाहिए, साथ ही अल्‍कोहल का उपयोग अथवा विक्रय नहीं होना चाहिए ।

इ. उपयोग किया जानेवाला मांस वैध हलाल प्रमाणपत्रप्राप्‍त पशुवधगृह से लाए जाने की आश्‍वस्‍तता करना, साथ ही उस पैकेट पर अंकित हलाल चिन्‍ह की आश्‍वस्‍तता करना

ई. पदार्थ बनाने हेतु आवश्‍यक अन्‍य घटक, उदा. तेल, मसाले आदि के हलाल प्रमाणित होने की आश्‍वस्‍तता करना

उ. वर्षभर में नियोजित अथवा औचक निरीक्षण कर उक्‍त सभी सूत्रों की आश्‍वस्‍तता करना

इनमें से उक्‍त सूत्रों में ऐसा कोई भी विशेष कार्य अथवा कुशलता दिखाई नहीं देती । किसी भी होटल में सर्वसामान्‍यरूप से ये बातें हो सकती हैं; परंतु सामान्‍य बातों को एक विशिष्‍ट तांत्रिक लेपन कर उससे हलाल अर्थव्‍यवस्‍था खडी की जा रही है ।

११. भारत में हलाल प्रमाणपत्र देनेवाली संस्‍थाएं

भारत में हलाल प्रमाणपत्र देनेवाली अनेक निजी संस्‍थाएं हैं । उनमें प्रमुखता से निम्‍नांकित संस्‍थाएं अंतर्भूत हैं –

अ. हलाल इंडिया प्रा. लिमिटेड

आ. हलाल सर्टिफिकेशन सर्विसेस इंडिया प्रा. लिमिटेड

इ. जमियत उलेमा-ए-हिन्‍द हलाल ट्रस्‍ट

ई. जमियत उलेमा-ए-महाराष्‍ट्र

उ. हलाल काऊन्‍सिल ऑफ इंडिया

ऊ. ग्‍लोबल इस्‍लामिक शरिया सविर्र्सेस

१२. निधर्मी सरकार के प्रशासनिक तंत्रों द्वारा धार्मिक मान्‍यताओं के आधार पर हलाल प्रमाणपत्र अनिवार्य !

स्‍वयं को धर्मनिरपेक्ष कहलानेवाले भारत सरकार के वाणिज्‍य एवं उद्योग मंत्रालय के अंतर्गत आनेवाले कृषि एवं प्रक्रियायुक्‍त खाद्य उत्‍पादन निर्यात विकास प्राधिकरण (APEDA) ने एक नियमावली बनाई है, जिसमें लाल मांस उत्‍पादक एवं निर्यातक को हलाल प्रमाणपत्र लेना अनिवार्य किया गया है । केवल इतना ही नहीं, अपितु इस्‍लामी संस्‍था के निरीक्षक की देखरेख में हलाल पद्धति से ही पशु की हत्‍या करना अनिवार्य किया गया है । संविधान में विद्यमान ‘सेक्‍युलर’ शब्‍द का यह सीधा-सीधा अनादर ही है । भारत से निर्यात होनेवाले मांस में से ४६ प्रतिशत (६ लाख टन) मांस का निर्यात गैरइस्‍लामी विएतनाम देश में होता है । तो क्‍या ‘वास्‍तव में उसके लिए हलाल प्रमाणपत्र की आवश्‍यकता है ?’, यह प्रश्‍न उपस्‍थित होता है; परंतु सरकार की इस इस्‍लामवादी नीति के कारण वार्षिक २३ सहस्र ६४६ करोड रुपए के मांस का यह व्‍यापार हलाल अर्थव्‍यवस्‍था को बल दे रहा है । ‘जिसे हलाल मांस नहीं चाहिए, उसे वैसे मांस का चयन करने की स्‍वतंत्रता क्‍यों नहीं है ?’, यह प्रश्‍न ही अनुत्तरित है ।

१३. अल्‍पसंख्‍यकों के कारण सरकारी प्रतिष्‍ठानों द्वारा बहुसंख्‍यक हिन्दुओं पर हलाल मांस खाना अनिवार्य !

संविधान द्वारा दी गई स्‍वतंत्रता के संदर्भ में निधर्मीवादी सदैव आक्रोश करते रहते हैं; परंतु धर्मनिरपेक्ष भारत सरकार के ही भारतीय पर्यटन विकास महामंडल (ITDC), एयर इंडिया, साथ ही रेलवे कैटरिंग, ये सभी संस्‍थाएं केवल हलाल मांस की आपूर्ति करनेवालों को ही ठेके देती हैं । भारतीय लोकतंत्र का सर्वोच्‍च स्‍थान संसद की भोजन व्‍यवस्‍था भी रेलवे कैटरिंग के ही पास है । वहां भी बहुसंख्‍यक हिन्दुओं को स्‍वयं के धार्मिक आधार पर मांस खाने की स्‍वतंत्रता नहीं है । हिन्दुओं को ऐसे सरकारी संस्‍थानों को इस संदर्भ में पूछना चाहिए, साथ ही जबतक वे धार्मिक आधार पर आहार उपलब्‍ध नहीं कराएंगे, तबतक उनके खाद्यपदार्थों का बहिष्‍कार किया जाना चाहिए ।

१४. निर्धन हिन्‍दू कसाईयों के व्‍यवसाय की हानि !

हिन्‍दू धर्म की अलग-अलग जातियों को उनकी कुशलता के आधार पर जीविका चलाने के साधन उपलब्‍ध थे और उसके अनुसार हिन्‍दू कसाई समुदाय मांस का व्‍यापार कर अपनी जीविका चलाता था । आजकल सरकारी प्रतिष्‍ठानों सहित निजी व्‍यावसायियों द्वारा केवल इस्‍लामी पद्धतिवाले हलाल मांस की मांग किए जाने तथा हिन्‍दू कसाईयों के मांस को हलाल न मानने से इस समुदाय का व्‍यवसाय धीरे-धीरे मुसलमानों के नियंत्रण में जाने लगा । इस्‍लाम के अनुसार सुअर का मांस हराम होने से केवल उसे छोडकर अन्‍य सभी प्रकार के मांस का व्‍यापार अल्‍पसंख्‍यक मुसलमान समुदाय के हाथ में जा रहा है । हलाल मांस के संदर्भ में सरकार की अयोग्‍य नीतियों के कारण वार्षिक २३ सहस्र ६४६ करोड रुपए के मांस का निर्यात, साथ ही देश का लगभग ४० सहस्र करोड से भी अधिक रुपए के मांस का व्‍यापार अल्‍पसंख्‍यक मुसलमानों के हाथ में जा रहा है । उससे पहले ही निर्धन और पिछडा हिन्‍दू कसाई समुदाय आर्थिकरूप से ध्‍वस्‍त होने की कगार पर आ गया है ।

१५. हलाल संकल्‍पना के आधार पर अल्‍पसंख्‍यकों द्वारा व्‍यापार हडप लेना !

हलाल संकल्‍पना का और एक महत्त्वपूर्ण सूत्र समझकर लेना पडेगा कि किसी उत्‍पाद को हलाल प्रमाणित करना और किसी होटल को हलाल प्रमाणपत्र देना ये दोनों अलग-अलग बातें हैं । उत्‍पाद को हलाल प्रमाणित करते समय वह केवल उस उत्‍पाद से संबंधित हता है, उदा. हलाल मांस का प्रमाणपत्र लेते समय वह मांस हलाल के नियमों के अनुसार होना चाहिए; परंतु किसी मांसाहारी उपाहारगृह को उस उपाहारगृह में अल्‍कोहल और स्‍पिरीट के मिश्रणवाले किसी भी घटक का उपयोग अथवा विक्रय करने की अनुमति नहीं होगी । वहां का मांस हलाल तो होना ही चाहिए; किंतु उसके साथ ही तेल, मसाले के पदार्थ, पदार्थ में उपयोग किए जानेवाले रंग, चावल, अनाज इत्‍यादि सभी घटकों का हलाल प्रमाणित होना चाहिए । इसके कारण हलाल प्रमाणपत्र के आधार पर इन पदार्थों का व्‍यवसाय भी हिन्‍दू उद्यमियों से हडपा जा रहा है ।

१६. हलाल अर्थव्‍यवस्‍था – विश्‍व में सबसे तीव्र गति से बढ रही अर्थव्‍यवस्‍था !

किसी उत्‍पाद को हलाल प्रमाणपत्र देने हेतु भारत में सर्वसामान्‍यरूप से वार्षिक शुल्‍क के नाम पर २० सहस्र रुपए का भुगतान करना पडता है । उसमें जी.एस.टी. की वसूली अलग से होती है । प्रत्‍येक उत्‍पाद के लिए अलग से शुल्‍क देना पडता है । वर्षभर के पश्‍चात प्रमाणपत्र का नवीनीकरण करना हो, तो १५ सहस्र रुपए देने पडते हैं । एक उत्‍पाद के शुल्‍क का विचार करने पर भारत से विदेश में होनेवाला निर्यात तथा भारतीय उत्‍पादों की संख्‍या ध्‍यान में ली जाए, तो यह आर्थिक लेनदेन कितना बडा है, यह ध्‍यान में आएगा । इस प्रकार से वैश्‍विक स्‍थिति का विचार करने पर हलाल अर्थव्‍यवस्‍था आज विश्‍व की सबसे तीव्र गति से बढ रही अर्थव्‍यवस्‍था मानी जा रही है । इसमें तीव्र गति से बढ रही मुसलमान जनसंख्‍या का भी बडा हाथ है । वर्ष २०१७ में हलाल अर्थव्‍यवस्‍था २.१ ट्रिलीयन अमेरिकन डॉलर्स (१ ट्रिलीयन का अर्थ १ पर १२ शून्‍य – १००० अब्‍ज) थी । वर्ष २०२३ में उसके बढकर ३ ट्रिलीयन अमेरिकन डॉलर्सतक पहुंचने का अनुमान लगाया जा रहा है । भारत की अर्थव्‍यवस्‍था के साथ तुलना करने पर हलाल अर्थव्‍यवस्‍था का अनुमान लगाया जा रहा है । वर्ष २०१९ में भारत की अर्थव्‍यवस्‍था २.७ ट्रिलीयन अमेरिकन डॉलर्स थी । इसका अर्थ हलाल अर्थव्‍यवस्‍था बहुत शीघ्र भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था को पीछे छोडेगी ।

१७. हलाल संकल्‍पना के कारण औषधियों पर मर्यादाएं !

हलाल संकल्‍पना के अनुसार अल्‍कोहल, स्‍पिरीट, साथ ही पशुओं के अवशेषों में से प्राप्‍त घटकों के उपयोग पर प्रतिबंध होने से उनका उपयोग कर बनाई जानेवाली औषधियों पर भी अपनेआप प्रतिबंध लगता है । कुछ औषधियों में सुअर के शरीर से प्राप्‍त होनेवाले तेल का भी उपयोग किया जाता है; परंतु इस्‍लाम के अनुसार सुअर के हराम होने से जिन औषधियों में उनका अंश होता है, उन पर भी प्रतिबंध लगाया जा रहा है । उसके कारण किसी रोग पर परिणामकारी औषधि न हो, तो उसे इस्‍लाम के अनुसार ‘हराम’ माना जाता है ।

१८. पतंजलि आयुर्वेद एवं ईशान्‍य भारत के पदार्थों को हलाल प्रमाणपत्र देना अस्‍वीकार !

योगऋषि स्‍वामी रामदेव बाबा की पतंजलि आयुर्वेद संस्‍था को भी औषधियों के निर्यात के लिए हलाल प्रमाणपत्र लेना पडा; परंतु हलाल इंडिया संस्‍था ने हलाल प्रमाणपत्र देना अस्‍वीकार कर दिया । उसके लिए कारण दिया गया कि उनकी औषधियों में गोमूत्र के उपयोग से बनाई जानेवाली औषधियों को अलग कारखानों में बनाया जाए । वास्‍तव में संबंधित औषधियों में किन-किन घटकों का उपयोग किया गया है,औषधि के डिब्‍बे पर वह स्‍पष्‍टता से लिखने के पश्‍चात भी उन पर विश्‍वास नहीं किया गया ।
इसी प्रकार से ईशान्‍य भारत की जनजातियों के लोग वन में रहते हैं और वे सांप, सुअर आदि अनेक जीव खाते हैं; इसलिए ‘हलाल इंडिया’ ने उन्‍हें भी हलाल प्रमाणपत्र देना अस्‍वीकार किया है ।

१९. हलाल के माध्‍यम से चल रहे आर्थिक जिहाद के विरुद्ध संघर्ष करने को तैयार हो जाईए !

जिहाद का अर्थ भले कैसे भी बताया गया, है तो वह युद्ध ही ! युद्ध करनेवाले द्वारा अपना प्रतिद्वंदी चुना होता है । ऐसे समय में भले हम युद्ध न कर कितना भी शांत रहना सुनिश्‍चित करें; परंतु हमारे विरोधी ऐसा नहीं होने देंगे । इसके कारण उसके द्वारा आरंभ किया आर्थिक जिहाद का सामना करना आवश्‍यक है । तभी जाकार हम इस्‍लामी बैंक को समानांतर खडी हलाल अर्थव्‍यवस्‍था तथा भविष्‍य में उसके कारण आनेवाले संकट रोक पाएंगे । हलाल अर्थव्‍यवस्‍था की प्रचुर धनशक्‍ति के कारण आज जिस प्रकार आतंकियों के अभियोग लडे जा रहे हैं, उसी प्रकार भविष्‍य में भी देशविरोधी शक्‍तियों को बल प्रदान करने तथा देश के तंत्रों को खरीदने के षड्‍यंत्र किए जा सकते हैं । अतः इस हलाल अर्थव्‍यवस्‍था को सहायता न मिले; इसके लिए हलाल मांस लेना बंद कर, साथ ही हलाल प्रमाणपत्र मुद्रावाली सभी वस्‍तुएं अस्‍वीकार कर हिन्‍दू भाईयों का व्‍यवसाय बढे; इस दृष्‍टि से प्रयास करने होंगे । हिन्‍दू समाज में इसके प्रति जागृति लानी होगी । साथ ही इसके संदर्भ में आंदोलन खडा कर सरकार के पास संगठितरूप से शिकायतें कर और निजी मुसलमान संस्‍थाओं को हलाल प्रमाणपत्र देने पर प्रतिबंध लगाने तथा वह अधिकार सरकारी संस्‍था को देने की मांग करनी चाहिए । हमें हमारे क्षेत्र के हिन्‍दुत्‍वनिष्‍ठ राजनेताओं को इस संकट की जानकारी देनी चाहिए । इन सभी परिप्रेक्ष्यों में प्रयास कर हलाल अर्थव्‍यवस्‍था से उत्‍पन्‍न यह राष्‍ट्र संकट रोकने हेतु संघर्ष खडा करेंगे ।’


हिन्दुओं के लिए हलाल नहीं, अपितु ‘झटका सर्टिफिकेट’ !

मुसलमानों में जिस प्रकार से हलाल मांस को वैध माना गया है, उसी प्रकार से हिन्‍दू और सिक्‍ख धर्मियों के लिए हलाल मांस निषिद्ध माना गया है । हिन्‍दू एवं सिक्‍ख में ‘झटका’ अर्थात तलवार के एक ही घाव में गर्दन को अलग कर निकाले जानेवाला मांस स्‍वीकार्य है । इसमें गर्दन पर तीव्र गति से आघात कर रीढ की हड्डी से गर्दन अलग की जाती है । इसमें पशु को अत्‍यल्‍प पीडा होती है । ‘झटिति’ अर्थात शीघ्र, द्रुत इन मूल संस्‍कृत शब्‍दों से ‘झटका’ शब्‍द की उत्‍पत्ति हुई है । सिक्‍खों के १०वें गुरु, गुरु गोविंद सिंहजी ने खालसा पंथ के नियम में झटका मांस को वैध प्रमाणित किया है । उन्‍होंने ‘हलाल अथवा कुथा’ मांस वर्ज्‍य करने के लिए कहा है । इसके द्वारा मांसाहार करनेवाले हिन्दुओं ने झटका मांस की मांग की, तो उससे हमारे हिन्‍दू भाईयों को व्‍यवसाय तो मिलेगा ही; उसके साथ ही हमारा धन हलाल अर्थव्‍यवस्‍था को बल नहीं देगा । इससे हमारे द्वारा स्‍वधर्म को हानि पहुंचाने का पापकर्म तो नहीं होगा ।


अल्‍पसंख्‍यकों की तानाशाही !

नसीम निकोलस तालेब नामक एक सुप्रसिद्ध लेखक ने इसे अल्‍पसंख्‍यकों की तानाशाही कहा है । अपने ‘अल्‍पसंख्‍यकों की तानाशाही’ : सर्वाधिक असहिष्‍णु को ही विजय मिलती है’, इस लेख में तालेब स्‍पष्‍ट करते हैं कि हठीले लोगों का छोटा समूह निरंतर मांग कर वहां के बहुसंख्‍यकों को अपनी इच्‍छा के अनुसार आचरण करने पर बाध्‍य बनाता है । हिन्दुओं को मांस खाते समय वह हलाल है अथवा नहीं, इसमें विशेष रुचि नहीं होती; परंतु अल्‍पसंख्‍यक मुसलमान बिना किसी समझौते के ‘मुझे मेरी धार्मिक मान्‍यता के अनुसार ‘हलाल’ मांस ही चाहिए’, निरंतर यह मांग कर दबाव बनाता है । उसकी इस मांग का बहुसंख्‍यक हिन्‍दू विरोध नहीं करते; इसलिए धीरे-धीरे उन्‍हें भी हलाल मांस ही खाना पडता है । इसमें मुसलमान अल्‍पसंख्‍यक होते हुए भी हिन्दुओं को उनकी धार्मिक मान्‍यताओं को स्‍वीकार कर उसके अनुसार आचरण करना पडता है । यह इस्‍लामीकरण का ही एक प्रकार है । इजिप्‍त के बहुसंख्‍यक कॉप्‍टिक ईसाई इसी मानसिकता के कारण आज अल्‍पसंख्‍यक बन गए हैं ।


भारत सरकार का अन्‍न सुरक्षा प्राधिकरण होते हुए भी हलाल प्रमाणपत्र देनेवाली निजी संस्‍थाओं का क्‍या काम ?

भारत सरकार के स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण मंत्रालय के अंतर्गत ‘अन्‍न सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण’ (Food Safety and Standards Authority of India – FSSAI), साथ ही महाराष्‍ट्र में अन्‍न एवं औषधि प्रशासन (Food and Drugs Administration – FDA) विभाग का गठन किया गया है । खाद्यपदार्थों से संबंधित सभी प्रकार की अनुमति देने के अधिकार इस विभाग को हैं । उसके लिए विविध प्रकार की शर्तें पूर्ण करनी पडती हैं । उसमें भूमि की रचना से लेकर अग्‍नि प्रतिबंधक व्‍यवस्‍था और कचरा व्‍यवस्‍थापन आदि सभी बातों की आपूर्ति करनी पडती है । उसके लिए शुल्‍क का भी भुगतान करना पडता है । एक ओर खाद्यपदार्थों से संबंधित प्रमाणपत्र देनेवाली सेक्‍युलर शासन की व्‍यवस्‍था होते हुए भी हलाल प्रमाणपत्र देने की अनुमति निजी धार्मिक संस्‍थाओं को क्‍यों दी गई है ? ये निजी संस्‍थाओं द्वारा सरकार के किसी बंधनों का पालन न कर केवल धार्मिक आधार पर दिए जा रहे हलाल प्रमाणपत्र के नाम पर वसूले जानेवाले शुल्‍क को अवैध क्‍यों प्रमाणित नहीं किया जाता ?


जोमैटो का पक्षपातपूर्ण ‘सेक्‍युलरवाद’ !

कुछ महीने पहले जबलपुर के श्री. शुक्‍ला नामक हिन्‍दू व्‍यक्‍ति ने पवित्र श्रावणमास में ऑनलाईन खाद्यपदार्थों की आपूर्ति करनेवाले प्रतिष्‍ठान ‘जोमैटो’ के पास अपनी मांग प्रविष्‍ट की । वास्‍तव में भोजन लेकर आनेवाला व्‍यक्‍ति मुसलमान होने के कारण व्रत न टूटे; इसके लिए उसने उस पदार्थ की मांग रद्द कर दी; परंतु उसने धर्म के आधार पर भेदभाव किया; इसके कारण निधर्मीवादियों ने (सेक्‍युलरवादी) देशभर में बडा आक्रोश किया, साथ ही जोमैटो ने इस हिन्‍दू व्‍यक्‍ति के विरुद्ध पुलिस विभाग में शिकायत भी प्रविष्‍ट की । इसकी तुलना में इसी जोमैटो के पास वाजीद नाम के एक मुसलमान व्‍यक्‍ति ने मांसाहारी भोजन की मांग प्रविष्‍ट की; परंतु यह भोजन इस्‍लाम के अनुसार हलाल होने की आश्‍वस्‍तता न होने के कारण उसकी इस मांग को रद्द करने के अनुरोध पर जोमैटो ने स्‍वयं ही यह मांग रद्द की और उसकी संपूर्ण धनराशि भी वापस की । जोमैटो ने उसके भी आगे जाते हुए अपनी संगणकीय प्रणाली में बदलाव कर हलाल प्रमाणपत्रवाले होटलों की जानकारी देना आरंभ किया । भारत में अल्‍पसंख्‍यक मुसलमानों के लिए ये सभी सुविधाएं उपलब्‍ध कराई गईं; परंतु इसी जोमैटो ने शेष हिन्दुओं को भी उनकी धार्मिक मान्‍यताओं के अनुसार पदार्थों की उपलब्‍धता न कर उन पर भी इस्‍लामी हलाल पद्धति के पदार्थ थोपना आरंभ किया । बहुसंख्‍यक हिन्दुओं के, गुलामी की मानसिकता के अधीन होने से उन्‍हें इसमें कुछ भी अनुचित नहीं लगता ! इससे हलाल का व्‍यवसाय करनेवाले मुसलमानों को रोजगार और आर्थिक लाभ ये दोनों ही मिल रहे हैं, तो दूसरी ओर हिन्दुओं के हाथों से व्‍यवसाय निकल रहे हैं । हिन्दुओं की इस मानसिकता का लाभ उठाकर हलाल का अगला चरण हलाल के आधार पर अर्थव्‍यवस्‍था खडी करनेतक पहुंच गया है ।


क्‍या हलाल से प्राप्‍त धन का उपयोग आतंक के आरोपियों की सहायता के लिए ?

हलाल अर्थव्‍यवस्‍था बहुत ही वेग से बढ रही है और वह संपूर्णरूप से निजी इस्‍लामी संस्‍थाओं द्वारा संचालित की जा रही है । सरकार का उस पर किसी प्रकार का नियंत्रण नहीं है । ऐसे समय में इससे प्राप्‍त धन का उपयोग किस प्रकार किया जाता है, इसके प्रति संदेह उत्‍पन्‍न होता है । ऑस्‍ट्रेलिया के नैशनल्‍स दल के सांसद जॉर्ज क्रिस्‍टेन्‍सेन ने हलाल अर्थव्‍यवस्‍था से प्राप्‍त धन का उपयोग ऑस्‍ट्रेलिया में शरीयत विधि लागू करने, साथ ही कट्टरतावादी विचारधारावाले संगठनों को अपने कार्य बढाने हेतु किए जाने का संदेह व्‍यक्‍त किया था ।

भारत में हलाल प्रमाणपत्र देनेवाले ‘जमियत उलेमा-ए-हिन्‍द’ एक प्रमुख संगठन है । भारत में ब्रिटिश राजसत्ता का विरोध करने हेतु वर्ष १९१९ में इस संगठन की स्‍थापना की गई थी । यह संगठन कांग्रेस के साथ कार्यरत था और उसने विभाजन का भी विरोध किया था । विभाजन के समय इस संगठन के २ टुकडे होकर उसमें से ‘जमियत उलेमा-ए-इस्‍लाम’ संगठन ने पाकिस्‍तान का समर्थन किया था । आज यह संगठन एक शक्‍तिशाली मुस्‍लिम संगठन के रूप में जाना जाता है । हाल ही में इस संगठन के बंगाल प्रदेशाध्‍यक्ष सिद्दीकुल्ला चौधरी ने CAA विधि के विरोध में, ‘केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को हवाई अड्डे से बाहर ही नहीं आने देंगे’, यह धमकी भी दी थी । इसी संगठन के उत्तर प्रदेश के हिन्‍दू नेता कमलेश तिवारी के हत्‍या प्रकरण के आरोपियों का अभियोग लडने की घोषणा की थी । इस संगठन ने ७/११ का मुंबई रेल बमविस्‍फोट, वर्ष २००६ का मालेगांव बमविस्‍फोट, पुणे में जर्मन बेकरी बमविस्‍फोट, २६/११ का मुंबई आक्रमण, मुंबई के जवेरी बजार में बमविस्‍फोटों की शृंखला, देहली का जामा मस्‍जिद विस्‍फोट, कर्णावती (अहमदाबाद) बमविस्‍फोट आदि अनेक आतंकी घटनाओं के आरोपी मुसलमानों के लिए कानूनी सहायता उपलब्‍ध कराई है । जामिया ऐसे कुल ७०० संदिग्‍ध आरोपियों के अभियोग लड रहा है । एक प्रकार से हिन्‍दू ही इसके लिए उन्‍हें हलाल प्रमाणपत्रों के शुल्‍क द्वारा आवश्‍यक धन की आपूर्ति उपलब्‍ध करा रहे हैं ।

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