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हिन्दुओ, अभिमानसे हिन्दू धर्मकी महानताका गुणगान करें तथा हिन्दुओंका धर्मपरिवर्तन रोकें !

श्रावण शुक्ल पक्ष दशमी, कलियुग वर्ष ५११६

कुछ समय पूर्व ही ईसाई पंथके सर्वाेच्च धर्मगुरु पोप फ्रान्सिसद्वारा जानकारी दी गई थी कि कैथोलिक चर्चके २ प्रतिशत पादरियोंपर लैंगिक शोषणका आरोप है । पूरे विश्वमें ४ लाख १४ सहस्र पादरी हैं, जिनमें २ प्रतिशत (८ सहस्र) पादरियोंपर लैंगिक शोषण करनेका आरोप है । ऐसी स्थितिमें हिन्दू स्वधर्मका महत्व न समझते हुए ईसाई धर्म स्वीकारकर धर्मपरिवर्तित करते हैं ।

हिन्दुओ, अब ये कुछ उदाहरण देखें…

१. सिकंदर जब हिन्दुस्थानपर आक्रमण करनेके लिए निकला, तब उसने ग्रीक तत्त्वज्ञानी एरिस्टॉटलसे पूछा, ‘हिन्दुस्थानसे लौटते समय मैं आपके लिए कौनसी मूल्यवान वस्तुएं लाऊं ?’ इसपर एरिस्टॉटलने हिन्दू धर्म तत्त्वज्ञानका ग्रंथ एवं गंगाजल लानेके लिए कहा ।

२. थोरो नामक पाश्‍चात्त्य तत्त्वज्ञानीको किसीने पूछा कि आपका आचरण एवं विचार इतने अच्छे वैâसे हैं ? इसपर उसने तत्काल उत्तर दिया, ‘’मैं प्रतिदिन सवेरे उठकर भगवद्गीता पढता हूं ।’’

३. स्वामी विवेकानंदद्वारा युूरोपमें हिन्दू धर्मका प्रसार करनेपर अनेक युूरोपीय उनके शिष्य बने । स्वामी विवेकानंदकी इंग्लैंडकी अनुयायी मार्गरेट नोबलने (इसके पश्चात वे भगिनी निवेदिता हो गई) आगे हिन्दूूुस्थानमें आकर आजन्म हिन्दू धर्मकी ही सेवा की ।

४. सनातन संस्थाके मार्गदर्शनसे प्रभावित होकर अनेक विदेशी साधकोंने मनसे हिन्दू धर्म स्वीकारा है तथा वे प्रतिदिन हिन्दू धर्मके अनुसार आचरण भी कर रहे हैं । इन साधकोंमें ३ साधक अल्प अवधिमें संतपदतक पहुंच गए हैं !

हिन्दू धर्म तत्त्वज्ञानकी एक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि विश्वको ‘’यह तत्त्वज्ञान स्वीकारें’’ ऐसा कहनेकी आवश्यकता नहीं है । बाqल्क विश्व ही इस तत्त्वज्ञानकी ओर अपनेआप आकर्षित होता है ! सब इच्छा-आकांक्षाएं, देहभोग, सुख-दुःख इत्यादिसे परे जाकर सदैव शाश्‍वत आत्मानंदमें रहनेकी शिक्षा हिन्दू धर्ममें पगपगपर दी गई है ।

हिन्दुओ, हिन्दू धर्मकी महानताका गुणगान अभिमानसे करें एवं धर्मपरिवर्तिनके इच्छुक हिन्दू बंधुओंको धर्मपरिवर्तन करनेसे परावृत्तकर धर्मकर्तव्यका पालन करें ! हिन्दू धर्म तत्त्वज्ञानकी शिक्षा देनेवाले सनातनके ग्रंथोंका प्रसार करनेका धर्मकार्य करें ! स्वेच्छासे पुनः हिन्दू धर्ममें आनेकी इच्छा रखनेवालेभ्रमित हिन्दू बंधुओंको ‘’सनातन हिन्दू धर्मदीक्षा केंद्र’’का मार्ग दिखाएं !

– (पू.) श्री. संदीप आलशी (१५.७.२०१४)

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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