‘लव जिहाद’को रोकना है, तो उसके तेजीसे प्रसारके कारणोंका अभ्यास करना आवश्यक है ।
१ अ. हिन्दू युवतियोंका अनुचित आचरण और अज्ञान
१ अ १. जिहादी युवकपर तुरंत विश्वास करना : ‘एक पाकिस्तानी वंशके जिहादीने कहा, ‘‘हिन्दू युवतियोंको फंसाना सरल होता है; क्योंकि वे भोली होती हैं तथा किसी भी बातपर तुरंत विश्वास कर लेती हैं । उनसे मीठा बोलनेपर तथा उनकी झूठी प्रशंसा करते ही उन्हें हम ‘जिहादी’ अपने ही लगते हैं ।’’ – श्रीमती दुर्गा सरदेसाई, अमरीका
१ अ २. युवतियोंकी अल्हड आयु : ‘लव जिहाद’की बलि चढी अधिकतर हिन्दू युवतियां १३ से १८ वर्षके बीचकी होती हैं । इस अल्हड आयुकी युवतियोंको जिहादी युवक लालच दिखाकर प्रेमके जालमें फांस लेते हैं और बलात्कार करते हैं । ऐसी अल्पवयीन युवतियां लैंगिक आकर्षणके कारण, क्या हितकर है और क्या अहितकर, इसका भेद नहीं समझ पातीं । इस कारण उनके प्रेमजालमें फंस जाती हैं ।’
१ अ ३. जिहादीयोंको राष्ट्रीय प्रवाहमें सम्मिलित करनेके लिए उनसे विवाह करनेकी भ्रामक धारणा : कुछ हिन्दू युवतियोंको इस्लामी क्रूरताका इतिहास ज्ञात होता है; तो भी ‘यदि एक भी जिहादीकी मानसिकता परिवर्तित कर मैं उसे राष्ट्रीय प्रवाहमें ला सकी, तो मेरा जीवन सार्थक हो जाएगा’, यह भ्रम वे इस अवयस्क अवस्थामें ही पाल लेती हैं और अपने पैरोंपर कुल्हाडी मार लेती हैं ।
१ अ ४. जिहादीयोंको पौरुषयुक्त और हिन्दुओंको पौरुषहीन समझना : ‘कभी-कभी ऐसा भी होता है कि जिहादीके प्रेमजालमें फंसी युवतीको समझाने हेतु उसके पास जानेपर वह यह कहकर कि ‘‘जिहादी पौरुषयुक्त (मर्द) होते हैं, और हिन्दू ‘नामर्द (पौरुषहीन) होते हैं’’, हिन्दुओंके पुरुषार्थको ही चुनौती दे डालती हैं ।’
१ अ ५. इस्लामी आक्रमणकारियोंका इतिहास ज्ञात न होना : हिन्दू युवतियोंका ‘लव जिहाद’की बलि चढनेका एक प्रमुख कारण है, हिन्दुस्थानपर इस्लामी आक्रमणकारियोंद्वारा गत १,३०० वर्षोंमें किए गए अत्याचारोंसे और इस्लामकी जिहादी विचारधाराका ज्ञान न होना ।
१ अ ६. हिन्दू धर्मके महत्त्वसे अनभिज्ञ होना : हिन्दू युवतियोंको हिन्दू धर्मका महत्त्व ज्ञात न होना, यह भी उनके ‘लव जिहाद’के बलि चढनेका महत्त्वपूर्ण कारण है । ऐसी युवतियोंद्वारा धर्मपालन न किए जानेके कारण उनमें हिन्दू धर्मके विषयमें अभिमान नहीं होता । इसीलिए वे दूसरे धर्ममें जानेके लिए तत्पर हो जाती हैं ।
१ आ. कुछ हिन्दू अभिभावकोंके अनुचित कृत्य
१ आ १. अपनी बेटियोंको अनियंत्रित स्वतंत्रता देना : अभिभावकोंद्वारा अपनी बेटियोंको दी जानेवाली अनियंत्रित स्वतंत्रता एवं उन्हें पाश्चात्य संस्कृतिका अंधानुकरण करनेकी दी जानेवाली छूटके कारण ये युवतियां आगे जाकर अपने माता-पिताकी नहीं सुनतीं और मनमाने ढंगसे रहने लगती हैं ।
१ आ २. युवतियोंको भावनिक आधार देनेमें असफल रहना : ‘एक सर्वेक्षणके अनुसार अकेली अथवा अलिप्त रहनेवाली युवतियोंकी ‘लव जिहाद’में फंसनेकी संख्या अधिक है । जिन युवतियोंको भावनिक आधार नहीं मिलता, वे युवतियां वह आधार बाहर ढूंढनेका प्रयास करती हैं । प्रत्येक युवाको उसके सिरपर हाथ फेरकर आत्मीयतासे उसका कुशल-मंगल पूछनेवाले तथा उसका कहना खुले मनसे सुननेवाले अभिभावककी आवश्यकता होती है ।
१ आ ३. ‘सर्वधर्मसमभाव’ संभालनेके लिए जिहादीयोंका वास्तविक स्वरूप प्रकट करनेवाली घटनाएं युवतीतक न पहुंचने देना : मारवाडी सम्मेलनमें ‘लव जिहाद’में फंसी युवतीके अभिभावकने अपनी व्हृाथा प्रकट करते हुए कहा, ‘‘हमारी बेटियां धार्मिक विचारोंकी थीं । पूजन-अर्चन और उपवास करती थीं, तो भी जिहादीयोंके साथ भाग गर्इं ।’’ यही अभिभावक पहले ‘सर्वधर्मसमभाव’का खोटा तत्त्वज्ञान समाजको बताया करते थे । परिस्थितिवश कभी हिन्दू-जिहादीका प्रश्न उपस्थित होनेपर वे अपनी बेटियोंको ‘सर्वधर्मसमभाव’का उपदेश करते हुए कहते, ‘‘यह तुम लोगोंका विषय नहीं है । यह राजनीति है । तुम लोग अपनी पढाईपर ध्यान दो ।’’
१ आ ४. बेटीका आधुनिक विचारोंका आत्मघाती अभिमान पालना : कुछ अभिभावक उनकी बेटी किस पार्टीमें जाती है, किस स्तरके युवकोंके साथ पिकनिकपर जाती है, किस प्रकारके चलचित्र देखती है, किस प्रकारके कार्यक्रमोंमें भाग लेती है आदिकी कभी पूछताछ नहीं करते । उलटे, ‘मेरी बेटी आधुनिक विचारोंकी है’, यह आत्मघाती अभिमान प्रदर्शित करते हैं ।’ – श्री. समीर दरेकर
१ आ ५. छवि (नाम) कलंकित होनेके भयसे हतबल भूमिका ! : ‘लव जिहाद’की बलि चढी बेटीके विषयमें माता-पिता पुलिसमें परिवाद लिखवाते तो हैं; किंतु समाजमें अपनी छवि कलंकित होनेके भयसे उनका प्रयास यह रहता है कि प्रकरण न्यायालयके बाहर ही निपट जाए ।’ – ममता त्रिपाठी, स्तंभलेखिका
१ इ. हिन्दू समाजकी अनुचित विचार-प्रक्रिया
१ इ १. ‘मुझे इससे क्या लेना-देना’ ऐसी मनोवृत्ति : ‘एक हिन्दू घरकी युवतीको जिहादी भगा ले गया, फिर भी कुछ हिन्दू ऐसा विचार करते हैं कि ‘मेरे घरकी बेटियां तो सुरक्षित हैं ! इसलिए, यह सब क्यों सोचूं ?’
१ इ २. धर्मनिरपेक्षताका आतंकी विचार : ‘जिहादीयोंद्वारा भगाई गई हिन्दू युवतियोंका करुण-क्रंदन हिन्दू समाजके कुछ लोगोंको सुनाई ही नहीं देता; क्योंकि, वे न टूटनेवाले धर्मनिरपेक्षताके भ्रामक (भ्रमित करनेवाले) कवचसे अपने दोनों कान बंद कर लिए होते हैं ।
१ इ ३. हिन्दू धर्मपर आए संकटसे कोई लेना-देना नहीं : हिन्दू समाज आपसमें झगडनेमें अपनेको धन्य मानता है । एक-दूसरेकी त्रुटियां निकालनेमें बडप्पन मानता है । विविध हिन्दू संगठन और संस्थाएं इसमें अपना अस्तित्व बचानेका प्रयत्न अधिक करती हैं । हिन्दू धर्म और उसपर आए संकटोंके विषयमें उन्हें कुछ लेना-देना नहीं होता ।’
१ इ ४. भगाकर ले गई युवतीको वापस लानेका साहस न करना : ‘जिहादी युवकद्वारा बेटीको भगाकर ले जानेपर उसे छुडाकर वापस लानेका साहस हिन्दू समाज नहीं दिखाता । हिरनके झुंडपर आक्रमण कर उसके उत्तम हिरनको उस झुंडके सामने ही बाघ क्रूरतापूर्वक फाडकर खा जाता है; परंतु केवल विवश होकर वह दृश्य देखनेके अतिरिक्त झुंडके अन्य हिरन कुछ नहीं कर पाते । ठीक ऐसी ही अवस्था हिन्दू समाजकी हो गई है । ‘बेटी आजसे मेरे लिए मर गई’, यह कहते हुए हाथ झटककर अभिभावक अपने नित्यके कामकाजमें व्यस्त हो जाते हैं; किंतु इसमें कोई पुरुषार्थ नहीं ।
१ इ ५. संगठितरूपसे लडनेकी मानसिकताका अभाव : `लव जिहाद’की घटना सुनकर हिन्दू समाजके अधिकतर लोगोंकी मुटि्ठयां कडी तो होती हैं; किंतु उसके विरुद्ध संगठितरूपसे लडनेकी मानसिकता कोई नहीं दिखाता ।’
१ ई. मतोंके लिए अंधे बने राजनीतिक दल !
‘जिहादीके मत गंवानेके भयसे ‘लव जिहाद’को कुचलनेका साहस कोई राजनीतिक दल नहीं करता ।’
संदर्भ : हिन्दू जनजागृति समिति पुरस्कृत ग्रंथ ‘लव जिहाद’