देवालय में जानेवाले हममें से अनेक लोगों ने देवता की मूर्ति के समक्ष पत्थर अथवा धातु से बनी कछुए की प्रतिमा देखी होगी । देवतादर्शन से अधिक लाभ लेने हेतु श्रद्धालुओं को देवता की मूर्ति एवं कछुए को जोडनेवाली काल्पनिक रेखा की एक ओर खडे रहकर दर्शन करना चाहिए । दर्शन करते समय देवता की मूर्ति एवं कछुए की प्रतिकृति के मध्य में न बैठें अथवा खडे रहें ।
भुवर्लोक की कुछ शापित पुण्यात्माएं कछुए के रूप में पृथ्वी पर जन्म लेती हैं । गाय के अतिरिक्त, अन्य प्राणियों में कछुआ वातावरण की सात्त्विक तरंगें अधिक मात्रा में आकर्षित करता है । इसलिए वह अन्य प्राणियों की तुलना में अधिक सात्त्विक है ।
१. देवालय में कछुए की प्रतिकृति द्वारा वातावरण की सात्त्विक तरंगें आकर्षित कर आवश्यकता अनुसार वातावरण में छोडे जाने से दर्शनार्थियों को उन तरंगों से कष्ट न होना
अधिकतर देवालयों में देवता के सामने कछुए के आकार का पत्थर अथवा धातु स्थापित करते हैं । देवता से प्रक्षेपित सात्त्विक तरंगें कछुए के मुख में अधिक मात्रामें आकर्षित होकर, उसके चारों पैर एवं पूंछ द्वारा वातावरणमें छोडी जाती हैं । कछुए की पूंछ से सात्त्विक तरंगें सर्वाधिक एवं आवश्यकता अनुसार वातावरण में छोडी जाती हैं । इसलिए, दर्शनार्थी एवं श्रद्धालु को देवता से प्रक्षेपित सात्त्विक तरंगें सीधे नहीं मिलतीं एवं उनसे उन्हें कष्ट नहीं होता है । यहां ध्यान देनेयोग्य बात यह है कि देवता की मूर्ति द्वारा प्रक्षेपित तरंगें यद्यपि सात्त्विक होती हैं, फिर भी सामान्य श्रद्धालु का आध्यात्मिक स्तर अधिक न होनेके कारण, उसमें उन सात्त्विक तरंगों को सहने की क्षमता नहीं होती । इसलिए उन तरंगों से उसे कष्ट हो सकता है । इसलिए, सर्वसाधारण श्रद्धालु को देवता की मूर्ति एवं कछुए की प्रतिकृति के बीच खडे रहकर अथवा बैठकर देवता का दर्शन नहीं करना चाहिए । कछुए की प्रतिकृति के एक ओर (बगलमें) खडे रहकर दर्शन करना चाहिए ।
२. ५० प्रतिशत से अधिक आध्यात्मिक स्तर के श्रद्धालु द्वारा भगवान के दर्शन सामने से करना
५० प्रतिशत से अधिक आध्यात्मिक स्तरका श्रद्धालु देवता से प्रक्षेपित तरंगों को सहने में सक्षम होता है, अर्थात उसे इन तरंगों से कष्ट नहीं होता । ऐसे श्रद्धालु देवता के दर्शन सामने से ही करें । इससे वे देवता से प्रक्षेपित तरंगों को सहज ग्रहण कर पाते हैं । ‘देवता के दर्शन सामने से करने पर जीव की देह के सर्व द्वार एवं सप्तचक्र सूक्ष्मरूप से खुल जाते हैं तथा उसकी देह में देवता का चैतन्य प्रवेश करता है ।
३. प्राणियों में कच्छप (कछुआ) देवताओं के सगुण तरंगों को, तो गाय ईश्वर के निर्गुण तरंगों को अधिक मात्रा में आकर्षित करती है; अतः कछुए की तुलना में गाय अधिक सात्त्विक
`कछुए की तुलना में गाय अधिक सात्त्विक होती है; क्योंकि इसमें ईश्वर की निर्गुण तरंगों को आकर्षित करने की क्षमता कछुए की तुलना में अधिक होती है । कछुआ देवताओं की सगुण तरंगों को अधिक मात्रा में ग्रहण करता है । गाय में सात्त्विक तरंगों को धारण करने तथा प्रक्षेपित करने कीr क्षमता भी, कछुए की तुलना में अधिक होती है । देवताओं की शक्तिरूपी सगुण तरंगों से अधिकाधिक लाभ प्राप्त करने के लिए देवालय में देवता की मूर्ति के सामने कछुए की प्रतिकृति रखी जाती है । निर्गुण तरंगें देवताओं के निराकार तत्त्व से संबंधित होती हैं । इसलिए, ऐसी तरंगों को ग्रहण करनेवालीr गाय स्वाभाविकरूप से कछुए की तुलना में अधिक सात्त्विक होती है ।’
संदर्भ – सनातन-निर्मित ग्रंथ ‘देवालयमें दर्शन कैसे करें ? (भाग १)‘ एवं ‘देवालयमें दर्शन कैसे करें ? (भाग २)‘