हिन्दू धर्म बताता है कि शिवलिंग के दर्शन से पहले नंदी के दोनों सींगों को स्पर्श कर उसके दर्शन करें । इसे श्रृंगदर्शन कहते है । व्यक्ति नंदी के दाहिनी ओर बैठकर अथवा खडा होकर अपना बायां हाथ नंदी के वृषण पर रखें । पश्चात दाहिने हाथ की तर्जनी (अंगूठे की निकट की उंगली) एवं अंगूठा नंदी के दोनों सींगों पर रखें । अब तर्जनी एवं अंगूठे की बीचकर रिक्ति से शिवलिंग के दर्शन करें । यह शृंगदर्शन करने की उचित पद्धति है ।
१. नंदी के सींगों से प्रक्षेपित शिवतत्त्व की सगुण मारक तरंगों के कारण
जीव के शरीर के रज-तम कणों का विघटन होकर, जीव की सात्त्विकता में वृद्धि संभव होना
सींगों को हाथ लगाने से जीव के शरीर में पृथ्वी एवं आप तत्त्वों से संबंधित शक्ति-तरंगें हाथों से संक्रमित होती हैं । नंदी शिव की मारक शक्ति का प्रतीक है । नंदी के सींगों से प्रक्षेपित शिवतत्त्व की सगुण मारक तरंगों के कारण जीव के शरीर के रज-तम कणों का विघटन होता है तथा उसकी सात्त्विकता बढती है । इससे शिवलिंग से प्रक्षेपित शक्तिशाली तरंगों को सहन करना जीव के लिए संभव होता है; अन्यथा इन तरंगों से मस्तिष्क सुन्न होना, शरीर में अचानक कंपकंपी जैसे कष्ट हो सकते हैं ।
२. दाहिने हाथ की तर्जनी और अंगूठे को नंदीदेव के सींगों पर रखने से
शिवजी की पिंडी से प्रक्षेपित शक्ति का स्त्रोत अधिक मात्रा में कार्यरत होना
दाहिने हाथ की तर्जनी और अंगूठे को नंदीदेव के सींगों पर रखने से जो मुद्रा (हाथ की अंगुलियों को आपस में मिलाने से अथवा विशेष प्रकार से जोडने से विविध प्रकार के आकार बनते हैं, जिन्हें मुद्रा कहते हैं ।) बनती है, उससे भक्तगणों को आध्यात्मिक स्तर पर अधिक लाभ होता है । उदा. नली द्वारा छोडी गई वायु का वेग एवं तीव्रता अधिक रहती है, इसके विरुद्ध पंखे की हवा सर्वत्र फैलती है । ऐसा लगता है कि इस मुद्रा से नली समान कार्य होता है । इस मुद्रा से शिवजी की पिंडी से प्रक्षेपित शक्तिपुंज अधिक कार्यरत होता है । इस प्रकार की मुद्रा से शक्ति के स्पंदन पूरे शरीर में फैलते हैं ।’
३. साधारण आध्यात्मिक स्तर का श्रद्धालु नंदी के एक ओर खडे रहकर दर्शन करें
दर्शन करते समय शिवलिंग एवं नंदी के मध्य में बैठकर अथवा खडे होकर न करें । नंदी के बगल में खडे रहकर करें ।
शिवपिंडी के दर्शन करते समय पिंडी एवं नंदी को जोडनेवाली रेखा पर खडे रहकर दर्शन करने के सूक्ष्म-स्तरीय परिणाम दर्शानेवाला चित्र
शिव एवं श्रीविष्णु उच्च देवता होने के कारण उनसे (उनकी मूर्ति से) निरंतर अधिक मात्रा में शक्तिका प्रक्षेपण होता रहता है ।
शिव से सीधे आनेवाली प्रकट शक्ति की तरंगों के कारण साधारण व्यक्ति की देहमें उष्णता उत्पन्न होने से उसपर विपरीत परिणाम होना : जब व्यक्ति शिवपिंडी एवं नंदीकी रेखा के मध्य खडे रहकर दर्शन करता है, उस समय शिवपिंडी से प्रक्षेपित प्रकट शक्ति की तरंगों का व्यक्ति की देह पर आघात होता है । मारक प्रकट शक्ति की तरंगें साधारण व्यक्ति के लिए ग्रहण करनेयोग्य नहीं होतीं । इससे उसकी देह में उष्णता उत्पन्न होकर उस पर विपरीत परिणाम होता है ।
नंदी के एक ओर खडे रहकर पिंडी का दर्शन करने से नंदी के कारण शिव की शक्ति का सौम्य शक्ति में रूपांतर होकर उसे सहजता से ग्रहण करना संभव होना : शिवपिंडी के सम्मुख स्थित नंदी, शिवपिंडी से प्रक्षेपित प्रकट शक्ति को सौम्य बनाकर व्यक्ति को प्राप्त करनेयोग्य बनाने का कार्य करता है । अतः नंदी के एक ओर खडे रहकर पिंडी का दर्शन करने से व्यक्ति के लिए शिव-तत्त्वस्वरूप शक्ति सहजता से ग्रहण करना संभव होता है ।
संदर्भ – सनातन-निर्मित ग्रंथ ‘देवालयमें दर्शन कैसे करें ? (भाग १)‘ एवं ‘देवालयमें दर्शन कैसे करें ? (भाग २)‘