आषाढ पूर्णिमा को गुरुपूर्णिमा कहते हैं । गुरुके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने हेतु प्रत्येक गुरु के शिष्य इस दिन उनकी पाद्यपूजा करते हैं एवं उन्हें गुरुदक्षिणा अर्पण करते हैं । गुरुपूर्णिमा मनाने का उद्देश्य केवल गुरु के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना नहीं होता । इस दिन गुरु का कृपाशीर्वाद तथा उनसे प्रक्षेपित होनेवाला शब्दातीत (शब्दों के परे) ज्ञान सामान्य से सहस्र गुना अधिक होता है । महोत्सव के कार्य में सक्रिय सहभागी होनेवालों को भाग लेने के प्रमाण में लाभ होता है । इस दिन जो केवल दर्शन के लिए आते हैं, उन्हें कम लाभ होता है ।
हिंदू जनजागृति समिति आयोजित गुरुपूर्णिमा महोत्सव
गुरुपूर्णिमा को व्यासपूर्णिमा भी कहा जाता है । महर्षि व्यास ने ब्रह्मसूत्र, महाभारत, श्रीमद्भगवद्गीतासहित अठारह महापुराणों इत्यादि की महान रचना की । व्यास ने जो लिखा, उसके आगे कोई भी कुछ नया नहीं बता सकता । इसीलिए ‘व्यासोच्छिष्टं जगत् सर्वम् ।’ अर्थात समस्त ग्रंथ व्यासजी की ही वाणी में हैं, इस कारण अन्य सभी ग्रंथ एक प्रकार से व्यास का उच्छिष्ट हैं । रेखागणित अनुसार व्यास का अर्थ है, वर्तुल की सबसे बडी आंतरिक रेखा । उसी प्रकार व्यास का साहित्य भी सबसे विशाल है । सभा में बोलनेवाला वक्ता जिस स्थान पर खडा होता है, उसे व्यासपीठ कहते हैं व ऐसी अपेक्षा रहती है कि व्यास समान उसे भी अपने विषय का परिपूर्ण ज्ञान होना चाहिए । व्यास की महान ग्रंथ-रचना के कारण उन्हें आदिगुरु कहते हैं । ऐसे महर्षि व्यास का पुण्यस्मृतिदिन मानकर अनेक स्थानों पर गुरुपूर्णिमा के दिन प्रथम व्यासपूजा व तत्पश्चात् गुरुपूजन करते हैं ।
गुरुपूर्णिमा का अधिकाधिक लाभ उठाने के लिए आवश्यक प्रयास
१. गुरुमंत्र का या कुलदेवता का अधिकाधिक नामजप करना
२. गुरुपूर्णिमा महोत्सव में सम्मिलित होकर अधिकाधिक सत्सेवा करना
३. सेवा के अंतर्गत प्रत्येक कृति भावपूर्ण व परिपूर्ण होने के लिए प्रार्थना व कृतज्ञता व्यक्त करना
४. गुरुकृपा पाने के लिए आवश्यक गुण, तीव्र मुमुक्षुत्व; अर्थात गुरुप्राप्ति के लिए तीव्र उत्कंठा, आज्ञापालन, श्रद्धा व लगन बढाने का दृढ निश्चय करना
५. गुरुकार्य के लिए धन अर्पण करना
६. गुरु को अपना सर्वस्व अर्पण कर देना ही खरी गुरुदक्षिणा है, यह ध्यान में रखना और वैसी कृति करने के लिए प्रयास करना
७. कालानुसार उचित साधना कर जीवन को सार्थक करना
सर्व संतों में गुरुतत्त्व एक ही होता है । एक ही परमेश्वर के वे भिन्न रूप होते हैं । तब किसी संप्रदाय के अनुसार साधना करनेवाला यदि कालानुसार उचित साधना आरंभ करता है, तो क्या गुरुतत्त्व उसकी प्रगति के मार्ग में आएगा ? किंबहुना काल के ज्ञाता और प्रत्यक्ष काल की आवश्यकता पहचाननेवाले संत अथवा गुरु उस साधक को प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्षरूप से कालानुसार आवश्यक साधनामार्ग पर ही लाते हैं । क्योंकि कालानुसार उचित साधना करने पर ही जीवन सार्थक होता है । सनातन द्वारा बताई जा रही साधना उचित होने की पुष्टि अनेक संतों ने दी है ।
कालानुसार वास्तविक गुरुदक्षिणा
हिन्दू राष्ट्र की स्थापना का निश्चय ही वर्तमान की वास्तविक गुरुदक्षिणा !
गुरुपूर्णिमा के दिन गुरु अथवा संतों के पास जाना, उनके दर्शन करना, उनके चरणों में धन आदि अर्पित करना और महाप्रसाद ग्रहण करना, केवल इतने से ही गुरु के आशीर्वाद प्राप्त नहीं होंगे । हिन्दू राष्ट्र की स्थापना हेतु अंतःकरण गुरुचरणों में मन:पूर्वक अर्पित कर, गुरु के मार्गदर्शन अनुसार ध्येय की दिशा में मार्गक्रमण करना, यही आज गुरु को अपेक्षित है; क्योंकि यही काल को भी अभिप्रेत है । यही आज की वास्तविक गुरुदक्षिणा है ।
जगद्गुरुस्वरूप में सच्चिदानंद परब्रम्ह डॉ़ आठवलेजी और ध्येय तक मार्गक्रमण करनेवाली ‘हिंदु जनजागृति समिति’ के सहस्त्रों कार्यकर्ता प्राप्त हुए हैं । ‘हिन्दू जनजागृति समिति’ के कार्यकर्ताओं को अभी तक धर्मद्रोहियों के द्वेष और विधर्मी राज्यकर्ताओं के रोष का सामना करना पडा है । मार्ग में अनंत बाधाएं आई हैं; तब भी भगवान पर श्रद्धा रखने से मार्ग सुगम रहा है । अंतत: ‘जहां धर्म, वहां जय’, इस आशीर्वचन के अनुसार यह सुनिश्चित है कि हम विजयी होंगे । इस मार्ग पर चलने से ही ईश्वरप्राप्ति होगी और भविष्य में हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के इतिहास में हमारा नाम सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा !
१. गुरुपूजन की तैयारी करने के संदर्भ में कुछ सूचनाएं (यह सूचनाएं सार्वजनिक स्तर पर गुरुपूर्णिमा मनाने की दृष्टि से दी गई हैं । व्यक्तिगत स्तर पर घर में गुरुपूजन करना हो, तब भी इनमें से उपयुक्त सूत्रों का पालन करना आवश्यक है ।)
अ. जिन साधकों /भक्तों/शिष्यों में भाव है, ऐसे साधकों को ही गुरुपूजन के लिए चुनें ।
आ. स्त्री साधिकाएं/भक्त/शिष्याएं भी गुरुपूजन के लिए बैठ सकती हैं ।
इ. वक्ता की दार्इं ओर गुरुपूजन करें । गुरुपूजन के लिए केले के पत्तों से महराब (पूजा के लिए चौकी के कोनों पर केले के पत्तों की रचना) बनाएं । लकडी की चौकी सजाएं । थर्माकोल की सजावट से अच्छे स्पंदन नहीं आते, इसलिए थर्माकोल का उपयोग न करें । केले के महराब पर बिजली के दीयों से सजावट न करें । (बल्ब का उपयोग भी न करें ।)
ई. पूजा के पूर्व व उपरांत चौकी के आसपास की जगह व्यवस्थित व साफ-सुथरी हो, उदा. थाली, फूल इत्यादि ठीक से रखे हों ।
उ. पूजन के लिए श्री गुरु का प्रतिमा/मूर्ती रखें । (यदि कोई प्रत्यक्ष में श्री गुरु की पाद्यपूजा करना चाहता हो तो वह कर सकता है ।) श्री गुरु की प्रतिमा महराब में ही रखें, अन्य कहीं भी न रखें ।
ऊ. श्री गुरु की प्रतिमा फूलों से पूर्णतः ढका हुआ न हो । श्री गुरु का दर्शन सर्व श्रद्धालुओं को अच्छे से हो, इस प्रकार पुष्पमाला व पुष्प चढाएं ।
ए. पूजा के समय व्यासपीठ पर भीड न करें । वहां सहायता के लिए किसी अनुभवी साधक को रखें ।
ऐ. पूजा करते समय प्रत्येक विधि के उपरांत ताम्रपात्र का पानी किसी अन्य बर्तन में डालें ।
पूजा के लिए बैठनेवाले साधकों/भक्तों/शिष्यों के लिए सूचनाएं
अ. पति-पत्नी स्नान कर स्वच्छ धुले हुए वस्त्र पहनकर पूजा के लिए बैठें । पति शरीर पर उपरनी (गमछा) लेकर बैठे । पत्नी, पति के दार्इं ओर बैठे ।
आ. अपने समक्ष पानी से भरा हुआ लोटा (कलश), प्याला (पानी पीने के एक छोटे गिलास जैसा)-आचमनी व ताम्रपात्र रखें तथा एक थाली में रखी कटोरियों में हलदी, कुमकुम, अक्षत, चंदन, फूल, पंचामृत इत्यादि पूजासाहित्य साथ में होना चाहिए ।
इ. पूजा के समय, पूजा की ओर ध्यान दें तथा प्रत्येक विधि के समय पत्नी अपना दायां हाथ पति के दाएं हाथ को लगाए ।
ई. पूजा के समय पूजा की ओर ही ध्यान दें । आवश्यकता अनुसार ही बोलें ।
उ. अपने समक्ष प्रत्यक्ष सद्गुरु बैठे हैं और हम उनकी पूजा कर रहे हैं, ऐसा भाव होना चाहिए ।
ऊ. आपको पहले बता दिया जाएगा कि प्रत्येक विधि के अनुसार कौन-सी कृति करनी है । यह सुनकर पूजा करनेवाले वैसी कृति करें । कृति के लिए जितना समय लगे, उतने समय के लिए रुककर आगे मंत्र बोला जाएगा व मंत्र बोलने पर वह विधि ईश्वर को अर्पण करें ।
पूजा की तैयारी
पूजा का साहित्य : १. श्री गुरु की प्रतिमा २. कुमकुम, ३. हल्दी, ४. चंदन, ५. सिंदूर, ६. अक्षत (धुले हुए अखंडित चावल), ७. अगरबत्ती, ८. धूप, ९. बाती, १०. कपूर, ११. रंगोली, १२. चौकी, १३. कलश (दो), १४. एक प्याला व आचमनी, १५. ताम्रपात्र, १६. थालियां (तीन), १७. कटोरियां (चार), १८. समई अर्थात लंबे पीतल के दीये (दो), १९. नीरांजन, २०. पंचारती, २१. घंटी, २२. माचिस, २३. कपास/रुईका वस्त्र, २४. नारियल (पांच), २५. चावल (एक किलो), २६. सुपारियां (पांच), २७. बीडे के पत्ते (बीस), २८. पांच प्रकार के फल (प्रत्येक २), २९. एक रुपए के पांच सिक्के, ३०. गुड, खोपरा यानी सूखा नारियल (एक) ३१. आधा किलो पेढे, ३२. अगरबत्ती का स्टैंड, ३३. महराब सजाने का साहित्य, फूल व हार, ३४. दो पीढे (चद्दरसहित), ३५. तुलसी, दूर्वा, बेल, ३६. केले के पत्ते (महराब के लिए), ३७. फूलों से सजी चौकी ३८़ दूध, ३९. दही, ४०. घी, ४१. शहद, ४२. शक्कर । क्रमांक ३८ से ४२ का साहित्य पंचामृत बनाने के लिए चाहिए ।
* दूध, दही, घी, शहद व शक्कर मिलाकर एक कटोरीभर पंचामृत बनाएं ।
पूजा की रचना
चौकी अथवा पूजाघर पूर्व अथवा पश्चिम दिशा में रखें । केले के पत्तों से महराब बनाएं । महराब में श्री गुरु महाराजजी की प्रतिमा अपनी ओर मुख कर रखें । छायाचित्र के सामने चौकी पर बीडे के २ पत्ते, सुपारी एवं १ रुपए का सिक्का, १ बीडे का पत्ता रखें व साथ में नारियल रखें । नारियल रखते समय नारियल की शिखा फोटो की ओर होनी चाहिए । चौकी के नीचे एक थाली में ५ प्रकार के फल रखें । पूजाघर/चौकी के दोनों ओर समई रखें ।
गणपतिपूजन रचना
एक थाली में अथवा ताम्रपात्र में चावल डालकर उस पर नारियल रखें (नारियल की शिखा अपनी ओर होनी चाहिए) । साथ में बीडा रखें । नैवेद्य के लिए केले / गुड-खोपरा रखें । चौकी व गणपतिपूजन के लिए की गई रचना के समक्ष २ पीढे रखें । चौकी एवं पीढों को चारों ओर से रंगोली से सुशोभित करें ।
गुरुपूजन
आचमन : आगे दिए नामों का उच्चारण करने पर प्रत्येक नाम के अंत में बाएं हाथ से आचमनी में पानी लेकर दार्इं हथेली से पीएं – श्री केशवाय नमः, श्री नारायणाय नमः, श्री माधवाय नमः । ‘श्री गोविंदाय नमः’ का उच्चारण कर हथेली पर पानी लेकर नीचे ताम्रपात्र में छोडें । अब आगे के नामों का क्रमानुसार उच्चारण करें ।
विष्णवे नमः, मधुसूदनाय नमः, त्रिविक्रमाय नमः, वामनाय नमः, श्रीधराय नमः, ऋषिकेशाय नमः, पद्मनाभाय नमः, दामोदराय नमः, संकर्षणाय नमः, वासुदेवाय नमः, प्रद्युम्नाय नमः, अनिरुद्धाय नमः, पुरुषोत्तमाय नमः, अधोक्षजाय नमः, नारसिंहाय नमः, अच्युताय नमः, जनार्दनाय नमः, उपेंद्राय नमः, हरये नमः, श्रीकृष्णाय नमः ।
अब हाथ जोडकर शांत मन से आगे की प्रार्थना करें –
प्रार्थना : श्रीमन्महागणाधिपतये नमः । इष्टदेवताभ्यो नमः । कुलदेवताभ्यो नमः । ग्रामदेवताभ्यो नमः । स्थानदेवताभ्यो नमः । वास्तुदेवताभ्यो नमः । आदित्यादि नवग्रहदेवताभ्यो नमः । सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः । सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नमो नमः । अविघ्नमस्तु । सुमुखश्चैकदंतश्च कपिलो गजकर्णकः । लंबोदरश्च विकटो विघ्ननाशो गणाधिपः । धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचंद्रो गजाननः । द्वादशैतानि नामानि यः पठेच्छृणुयादपि । विद्यारंभे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा । संग्रामे संकटेचैव विघ्नस्तस्य न जायते । शुक्लांबरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजम् । प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशांतये । सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके । शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते । सर्वदा सर्वकार्येषु नास्तितेषाममंगलम् । येषां हृदिस्थो भगवान्मंगलायतनं हरिः । तदेव लग्नं सुदिनं तदेव ताराबलं चंद्रबलं तदेव । विद्याबलं दैवबलं तदेव लक्ष्मीपते तेंऽघ्रियुगं स्मरामि । लाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः । येषामिंदीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः । यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः । तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम । विनायकं गुरुं भानुं ब्रह्मविष्णुमहेश्वरान् । सरस्वतीं प्रणौम्यादौ सर्वकार्यार्थसिद्धये । अभीप्सितार्थ सिद्धयर्थं पूजितो यः सुरासुरैः । सर्वविघ्नहरस्तस्मै गणाधिपतये नमः । सर्वेष्वारब्धकार्येषु त्रयस्त्रिभुवनेश्वराः । देवा दिशंतु नः सिद्धिं ब्रह्मेशानजनार्दनाः ।
अपनी आंखों को पानी लगाकर देशकाल का उच्चारण इस प्रकार करें ।
देशकाल- गुरुपूर्णिमा २०१५
विष्णवे नम: विष्णु र्विष्णु र्विष्णु: श्री मद् भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य श्री ब्रह्मणो द्वितीये परार्धे विष्णुपदे श्री श्वेत वाराहकल्पे वैवस्वत मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे युगे कलियुगे कलिप्रथम चरणे भरत वर्षे भरतखण्डे जम्बूद्वीपे आर्यावर्तैकदेशे बार्हस्पत्यमानेन चान्द्रमानेन मन्मथनाम संवत्सरे, दक्षिणायने, ग्रीष्मऋतौ, आषाढमासे, शुक्लपक्षे, र्पौिणमायां तिथौ, भृगु वासरे, उत्तराषाढा दिवस नक्षत्रे, प्रीति योगे, बालव करणे, मकर स्थिते वर्तमाने श्रीचंद्रे, कर्क स्थिते वर्तमाने श्रीसूर्ये, सिंह स्थिते वर्तमाने श्रीदेवगुरौ, वृश्चिक स्थिते वर्तमाने श्रीशनैश्चरौ एवंग्रहगुणविशेषेणविशिष्टायां शुभपुण्यतिथौ मम आत्मन: श्रुति स्मृति पुराणोक्त फल प्राप्त्यर्थं श्रीमद् सद्गुरु भक्तराज महाराज चरण कृपाप्रसादेन सर्वेषां साधकानां क्षेमस्थैर्यआयुरारोग्यऐश्वर्यादि अभिवृद्धि अर्थं तथाच सर्वेषां साधकानां शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति सिद्धयर्थं तथाच हिंदु धर्माभिमानि जनानां हिंदु धर्म रक्षण कार्ये सुयश प्राप्त्यर्थं भक्तराज महाराज देवता प्रीत्यर्थं पूजनं अहं करिष्ये ।
तत्रादौ निर्विघ्नता सिद्ध्यर्थं महागणपति पूजनं च करिष्ये । शरीर शुद्धयर्थं विष्णुस्मरणं करिष्ये । कलशघंटा दीप पूजनं च करिष्ये ।
श्री गणपतिपूजन विधि
(पूजाके ताम्रपात्र में अथवा पीढे पर चावल डालकर उस पर नारियल व पान रखें । नारियल पर गणपति का आवाहन आगे दिए गए मंत्र द्वारा करें व पूजा करें ।)
वक्रतुंड महाकाय कोटीसूर्य समप्रभ । निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकायेषु सर्वदा । ऋद्धि-बुद्धि-शक्ति-सहित महागणपतये नमो नमः । महागणपतिं सांगं सपरिवारं सायुधं सशक्तिकं आवाहयामि । महागणपतये नमः ध्यायामि । महागणपतये नमः आवाहयामि । (नारियल पर अक्षत चढाएं ।)
महागणपतये नमः । आसनार्थे अक्षतान् समर्पयामि । (अक्षत चढाएं ।)
महागणपतये नमः । पाद्यं समर्पयामि । (एक आचमनीभर पानी डालें ।)
महागणपतये नमः । अर्घ्य समर्पयामि । (एक आचमनीभर पानी लेकर उसमें चंदन, फूल डालकर वह पानी नारियल पर डालें ।)
महागणपतये नमः । आचमनीयं समर्पयामि । (एक आचमनीभर पानी डालें ।)
महागणपतये नमः । स्नानं समर्पयामि । (एक आचमनीभर पानी चढाएं ।)
महागणपतये नमः । वस्त्रं समर्पयामि । (अक्षत अथवा रुई का वस्त्र चढाएं ।)
महागणपतये नमः । उपवीतार्थे (यज्ञोपवीतं/अक्षतान्) समर्पयामि । (जनेऊ अथवा अक्षत चढाएं ।)
महागणपतये नमः । चंदनं समर्पयामि । (नारियल को चंदन का लेप लगाएं ।)
ऋद्धि-सिद्धिभ्यां नमः । हरिद्रा कुंकुमं समर्पयामि । (हलदी-कुमकुम चढाएं ।)
महागणपतये नमः । सिंदूरं समर्पयामि । (सिंदूर लगाएं ।)
महागणपतये नमः । अलंकारार्थे अक्षतान् समर्पयामि । (अक्षत चढाएं ।)
महागणपतये नमः । पूजार्थे कालोद्भवपुष्पाणि समर्पयामि । (फूल चढाएं ।)
महागणपतये नमः । दूर्वांकुरान् समर्पयामि । (दूर्वा चढाएं ।)
महागणपतये नमः । धूपं आघ्रापयामि । (अगरबत्ती से आरती उतारें ।)
महागणपतये नमः । दीपं समर्पयामि । (नीरांजन से आरती उतारें ।)
महागणपतये नमः । नैवेद्यार्थे (गुड खोपरा/केला) नैवेद्यं निवेदयामि । (नैवेद्य दिखाएं ।)
(आंखों पर बायां हाथ रखकर दाएं हाथ में पानी से भिगोए हुए दूर्वा अथवा फूल लेकर उससे नैवेद्य पर जल छिडकें व नैवेद्य दिखाकर आगे का मंत्र बोलें ।)
प्राणाय स्वाहा । अपानाय स्वाहा । व्यानाय स्वाहा, उदानाय स्वाहा, समानाय स्वाहा । ब्रह्मणे स्वाहा । (वह फूल अथवा दूर्वा नारियल पर छोडेंं ।)
महागणपतये नमः । नैवेद्यं समर्पयामि । मध्ये पानीयं समर्पयामि । उत्तरापोशनं समर्पयामि । हस्तप्रक्षालनं समर्पयामि । मुखप्रक्षालनं समर्पयामि । करोद्वर्तनार्थे चंदनं समर्पयामि । मुखवासार्थे पूगीफलं तांबुलं समर्पयामि । दक्षिणां समर्पयामि । (समर्पयामि बोलते समय हथेली पर पानी लेकर छोडें ।)
महागणपतये नमः । कर्पूरदीपं समर्पयामि । (कपूर से आरती उतारें ।)
अचिंत्या व्यक्तरूपाय निर्गुणाय गुणात्मने । समस्त जगदाधारमूर्तये ब्रह्मणे नमः । महागणपतये नमः । मंत्रपुष्पांजलिं समर्पयामि । (चंदन, फूल, अक्षत व दूर्वा नारियल पर चढाएं ।)
महागणपतये नमः । नमस्कारान् समर्पयामि । (नमस्कार करें ।)
महागणपतये नमः । प्रदक्षिणां समर्पयामि । (प्रदक्षिणा करें ।)
कार्यं मे सिद्धिमायांतु प्रसन्ने त्वयिधातरि । विघ्नानि नाशमायांतु सर्वाणि गणनायक ।।
अनया पूजया सकल विघ्नेश्वर विघ्नहर्ता महागणपतिः प्रीयतां । (फूल चढाएं ।)
अनेन कृतपूजनेन महागणपतिः प्रीयतां । (दाएं हाथ पर पानी लेकर वह ताम्रपात्र में छोडें ।) अब दस बार विष्णु का स्मरण करें, नौ बार ‘विष्णवे नमो’ व अंत में ‘विष्णवे नमः’ बोलें ।
अब कलश, घंटी व समई पर चंदन, फूल चढाएं ।
गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वति । नर्मदे सिंधु कावेरी जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरु ।
कलशाय नमः । कलशे गंगादि तीर्थान्आवाहयामि । कलशदेवताभ्यो नमः ।
सकल पूजार्थे गंधाक्षतपुष्पं समर्पयामि । (कलश पर चंदन, फूल व अक्षत चढाएं ।)
आगमार्थं तु देवानां गमनार्थं तु राक्षसाम् । कुर्वे घंटारवं तत्र देवताव्हानलक्षणम् । घंटायै नमः । सकल पूजार्थे गंधाक्षतपुष्पं समर्पयामि । (घंटी पर चंदन, फूल, अक्षत चढाएं ।)
भो दीप ब्रह्मरूपस्त्वं ज्योतिषां प्रभुरव्ययः ।
आरोग्यं देहि पुर्त्रांश्च मतिं शांतिं प्रयच्छ मे ।
दीपदेवताभ्यो नमः । सकल पूजार्थे गंधाक्षतपुष्पं समर्पयामि । (समई पर चंदन, फूल व अक्षत चढाएं ।)
अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपि वा । यः स्मरेत्पुंडरीकाक्षं स बाह्याभ्यंतरः शुचिः । (इस मंत्र का उच्चारण करते हुए तुलसीपत्र को पानी से भिगोकर उससे पूजासाहित्य पर व अपने शरीर पर छिडकाव करें ।)
अब सद्गुरु का स्मरण करें । अथ ध्यानं – ब्रह्मानंदं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिम् ।
द्वंद्वातीतं गगनसदृशं तत्त्वमस्यादिलक्ष्यम् ।
एकं नित्यं विमलचलं सर्वधीसाक्षीभूतम् ।
भावातीतं त्रिगुणरहितं सद्गुरुं तं नमामि ।।
श्री सद्गुरुभ्यो नमः । ध्यायामि ।
(गुरुपूजन में आगे की १५ क्रियाएं हैं, उनमें से ३ से ६ क्रमांक की क्रियाएं करते समय, प्रत्यक्ष में श्री सद्गुरु सामने बैठे हैं ऐसी कल्पना करें । फिर हाथ में पानी लेकर, गुरु की प्रतिमा पर नहीं, उनके चरणों में चढा रहे हैं, ऐसा भाव रखकर वह पानी थाली में डालें ।)
(अब प्रत्येक विधि के समय आगे दिया मंत्र बोलकर सद्गुरु की पूजा करें ।)
नमो गुरुभ्यो । गुरुपादुकाभ्यो नमः । परेभ्यः परपादुकाभ्यः । आचार्य सिद्धेश्वर पादुकाभ्यो नमोस्तु लक्ष्मीपति पादुकाभ्यः ।
१. श्री सद्गुरुभ्यो नमः । आवाहयामि (सद्गुरु का मनःपूर्वक आवाहन करें ।)
२. श्री सद्गुरुभ्यो नमः । आसनार्थे अक्षतान् समर्पयामि । (आसनपर अक्षत चढाएं ।)
३. श्री सद्गुरुभ्यो नमः । पाद्यं समर्पयामि । (चरणों पर पानी चढाएं ।)
४. श्री सद्गुरुभ्यो नमः । अर्घ्यं समर्पयामि । (आचमनीभर पानी में चंदन, फूल डालकर चढाएं ।)
५. श्री सद्गुरुभ्यो नमः । आचमनीयं समर्पयामि । (आचमनी से हथेली पर पानी डालें ।)
६. श्री सद्गुरुभ्यो नमः । स्नानं समर्पयामि ।
७. श्री सद्गुरुभ्यो नमः । वस्त्रं समर्पयामि । (वस्त्र अर्पण करें ।)
८. श्री सद्गुरुभ्यो नमः । उपवीतं समर्पयामि । (जनेऊ अथवा अक्षत अर्पण करें व हाथ जोडें ।)
९. श्री सद्गुरुभ्यो नमः । चंदनं समर्पयामि । (गुरु को चंदन का तिलक लगाएं ।)
१०. श्री सद्गुरुभ्यो नमः । मंगलार्थे कुंकुमं समर्पयामि । (कुमकुम लगाएं ।)
११. श्री सद्गुरुभ्यो नमः । अलंकारार्थे अक्षतान् समर्पयामि । (अक्षत चढाएं ।)
१२. श्री सद्गुरुभ्यो नमः । पूजार्थे ऋतुकालोद्भव पुष्पाणि समर्पयामि । (फूल अर्पण करें व हार चढाएं ।)
१३. श्री सद्गुरुभ्यो नमः । धूपं आघ्रापयामि । (अगरबत्ती से गुरु की आरती उतारें ।)
१४. श्री सद्गुरुभ्यो नमः । दीपं समर्पयामि । (नीरांजन से गुरु की आरती उतारें ।)
१५. श्री सद्गुरुभ्यो नमः । नैवेद्यार्थे पुरतस्थापित नैवेद्यं निवेदयामि । (तुलसी के पत्ते को पानी से भिगोकर उससे नैवेद्य पर प्रोक्षण करें व बायां हाथ आंखों पर रखकर नैवेद्य दिखाएं ।) इसके उपरांत आगे का मंत्र बोलें –
प्राणाय स्वाहा । अपानाय स्वाहा । व्यानाय स्वाहा । उदानाय स्वाहा, समानाय स्वाहा । ब्रह्मणे स्वाहा । श्री सद्गुरुभ्यो नमः । नैवेद्यं समर्पयामि । मध्ये पानीयं समर्पयामि । उत्तरापोशनं समर्पयामि । हस्तप्रक्षालनं समर्पयामि । मुखप्रक्षालनं समर्पयामि । करोद्वर्तनार्थे चंदनं समर्पयामि । मुखवासार्थे पूगीफलं, तांबुलं समर्पयामि । (समर्पयामि बोलते हुए आचमनी से दार्इं हथेली पर पानी लेकर ताम्रपात्र में छोडें ।)
श्री सद्गुरुभ्यो नमः । मंगलार्तिक्यदीपं समर्पयामि । (मंगलारती दिखाएं व इस समय आरती बोलें ।)
श्री सद्गुरुभ्यो नमः । कर्पूरदीपं समर्पयामि । (कपूर से आरती उतारें ।)
श्री सद्गुरुभ्यो नमः । नमस्कारान् समर्पयामि । (सद्गुरु को साष्टांग नमस्कार करें ।)
श्री सद्गुरुभ्यो नमः । प्रदक्षिणां समर्पयामि । (दार्इं ओर से घूमकर अपने चारों ओर प्रदक्षिणा करें ।)
श्री सद्गुरुभ्यो नमः । प्रार्थनां समर्पयामि । (हाथ जोडकर प्रार्थना करें ।)
आवाहनं न जानामि न जानामि तवार्चनम् ।
पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वर ।
मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वर ।
यत्पूजितं मया देव परिपूर्णं तदस्तु मे ।
कायेन वाचा मनसेंद्रियेर्वा । बुद्धयात्मना वा प्रकृतिस्वभावात् । करोमि यद्यत् सकलं परस्मै सद्गुरवे इति समर्पये तत् । अनेन कृत पूजनेन श्री सद्गुरुः प्रीयतां ।
प्रीतो भवतु । तत्सद्ब्रह्मार्पणमस्तु । (ऐसा बोलकर दाएं हाथ पर पानी लेकर छोडें व दो बार आचमन कर आंखों को पानी लगाएं ।)
गुरुपूर्णिमा महोत्सव का कार्यक्रम पूर्ण होने के उपरांत अंत में आगे दिया श्लोक बोलें । यान्तु देवगणा: सर्वे पूजामादाय पार्थिवात् ।
इष्टकामप्रसिद्ध्यर्थं पुनरागमनाय च ।।
श्री गणपति पूजन करने के उपरांत नारियल पर अक्षत चढाकर पूजाविधि को संपन्न करें । इस नारियल को साधक प्रसाद के रूपमें ग्रहण करें ।
कृतज्ञता
श्री गुरु के कृपाशीर्वाद से आज का यह कार्यक्रम संपन्न हुआ, इसलिए उनके चरणों में कृतज्ञता व्यक्त कर रुकेंगे ।