१. अधिकमास का अर्थ क्या है ?
हिन्दुओं के त्योहार, उत्सव, व्रत, उपासना, हवन, शांति, विवाह ये सर्व धर्मशास्त्र की कृतियां चांद्रमास के अनुसार (चंद्र की गति के अनुसार) निश्चित की जाती है । चांद्रमास के नाम उस मास के आनेवाली पूनम के नक्षत्र पर आधारित रहते हैं ।
ऋतु सौरमास के अनुसार (सूर्य की गति पर) निर्भर किए गए हैं । चांद्रवर्ष के ३५४ दिन तथा सौरवर्ष के ३६५ दिन रहते हैं । अर्थात् इन दो वर्षों में ११ दिनों का अंतर रहता है । इस अतर को मिटाने के लिए, साथ ही चांद्रवर्ष एवं सौरवर्ष का हिसाब ठीक से हो, इसलिए स्थूलरूपसे लगभग ३२ (साढेबत्तीस) मास के पश्चात् एक अधिकमास आता है । स्पष्टरूप से २७ से ३५ मासों के पश्चात् अधिकमास आता है ।
२. अधिकमास के अन्य नाम
अधिकमास को मलमास अथवा धोंडे का मास कहा जाता है । अधिकमास में मंगलकार्य की अपेक्षा विशेष व्रत एवं पुण्यकारक कृत्य किए जाते हैं; इसलिए इसे पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है ।
३. अधिकमास किस मास में आता है !
चैत्र से अश्विन इन सात मासों मेंसे एक मास अधिकमास के रूप में आता है । कदाचित फाल्गुन मास भी आता है । मार्गशीर्ष, पौष, माघ इन मासों को जुडकर अधिकमास नहीं आता । यदि एक बार अधिकमास आया, तो दोबारा १९ वर्षों के पश्चात् ही आता है ।
४. अधिकमास में व्रत एवं पुण्यकारक कृत्य करने के पीछे स्थित शास्त्र
शास्त्रकारों के कथनानुसार प्रत्येक मास में सूर्य एक-एक राशी में संक्रमण करता है; किंतु अधिकमास में सूर्य किसी भी राशी में संक्रमण नहीं करता । अर्थात् अधिकमास में सूर्य संक्रांत नहीं होती । अतः चंद्र-सूर्य की गति में अंतर निर्माण होता है । इस परिवर्तित हुए अनिष्ट वातावरण का परिणाम हमारी प्रकृति पर न हो; इसलिए इस मास में व्रत तथा पुण्यकारक कृत्य करना चाहिए । साथ ही शास्त्रकारों ने यह भी बताया है कि, शास्त्रानुसार अधिकमास में श्रीपुरुषोत्तमप्रित्यर्थ पूरे मास अनशन, अयाचित भोजन, नक्तभोजन अथवा एकभुक्त रहना चाहिए । कमजोर व्यक्ति ने इन चार प्रकारों मेंसे एक प्रकार का न्यूनतम तीन दिन अथवा एक दिन आचरण करना चाहिए । पूरे मास में दान करना संभव नहीं है, उसने शुक्ल तथा कृष्ण द्वादशी, पूनम, कृष्ण अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी, अमावस इन तिथीयों को तथा व्यतिपात, वैधृति इस योगों पर विशेष दानधर्म करना चाहिए ।
अ. इस मास में प्रतिदिन श्री पुरुषोत्तम कृष्ण की पूजा एवं नामजप करना चाहिए । अखंड अनुसंधान में रहने का प्रयास करना चाहिए ।
आ. प्रतिदिन एक ही समय भोजन करना चाहिए । भोजन करते समय बातें न करें । उससे आत्मबल की वृदि्ध होती है । मौन भोजन करने से पापक्षालन होता है ।
इ. तीर्थस्नान करना चाहिए । न्यूनतम एक दिन गंगास्नान करने से सर्व पापों से मुक्ति हो जाती है ।
ई. दीपदान करें । भगवान के सामने अखंड दीप प्रज्वलित रखने से लक्ष्मीप्राप्ती होती है ।
उ. तीर्थयात्रा करनी चाहिए । देवदर्शन करना चाहिए ।
ऊ. तांबुलदान (विडा-दकि्षणा) करना चाहिए । यदि पूरे मास तांबुलदान किया, तो सौभाग्यप्राप्ती होती है ।
ए. गोपूजन करना चाहिए । गोग्रास डालना चाहिए ।
ऐ. अपूपदान (अनारसों का दान) करना चाहिए ।
५. अधिकमास में कौन से कृत्य करने चाहिए ?
अधिक मास में नित्य एवं नैमित्तिक कृत्य करनी चाहिए । जो किए बिना गति नहीं, ऐसे कर्म करने चाहिए । ज्वरशांति, पर्जन्येष्टी इत्यादि नियमित काम्यकर्म करनी चाहिए । इस मास में ईश्वर की पुनःप्रतिष्ठा कर सकते हैं । ग्रहणश्राद्ध, जातकर्म, नामकर्म, अन्नप्राशन इत्यादि संस्कार करने चाहिए । मन्वादि तथा युगादि संबंधित श्राद्धादि कृत्य करनी चाहिए । तीर्थश्राद्ध, दर्शश्राद्ध तथा नित्यश्राद्ध करने चाहिए ।
६. अधिक मास में कौन से कृत्य न करें ?
काम्यकर्म का आरंभ तथा समाप्ती न करें । महादानं, अपूर्व देवदर्शन, गृहारंभ, वास्तुशांती, संन्यासग्रहण, नूतनव्रतग्रहणदीक्षा, विवाह, उपनयन, चौल तथा ईश्वर की प्रतिष्ठा न करें ।
७. अधिकमास की कालावधीमें श्राद्धकर्म कब करें ?
जिस मास में निधन हुआ है, यदि वहीं मास अधिकमास आया, तो प्रथम वर्षश्राद्ध अधिक मास में ही करना चाहिए । अर्थात् शके १९३६ के (गत वर्ष) आषाढ मास में मृत्यू हुई है, तो उनका प्रथम वर्षश्राद्ध शके १९३७ के (इस वर्ष) अधिक आषाढ मास में ही उसी तिथी को करना चाहिए । प्रतिवर्ष आषाढ मास में प्रतिसांवत्सरीक श्राद्ध इस वर्ष निज आषाढ मास में करना चाहिए; किंतु पूर्व अधिक आषाढ मास में मृत्यु हुई है, उनका प्रतिसांवत्सरिक श्राद्ध इस वर्ष अधिक आषाढ मास में करना चाहिए । उसके अतिरिक्त गत वर्ष (शके १९३६ में) श्रावण, भाद्रपद इत्यादि मास में मृत्यु हुई है, तो प्रथम वर्षश्राद्ध उस मास के उसी तिथी को करना चाहिए । १३ मास होते हैं; इसलिए १ मास पूर्व न करें । साथ ही इस वर्ष अधिक आषाढ अथवा निज आषाढ मास में मृत्यु हुई है, तो उनका प्रथम वर्षश्राद्ध अगले वर्ष आषाढ मास में उसी तिथी को करना चाहिए ।
८. अधिकमास कब आता है, यह जानने की पद्धति
अ. जिस मास के कृष्ण पंचमी को सूर्य संक्रांत आएगी, वही मास प्रायः अगले वर्ष अधिकमास आता है; किंतु यह स्थूलमान है ।
आ. शालिवाहन शक को १२ से गुणें तथा उस गुणनफल को १९ से भाग देना । जो शेष रहेगी, वह ९ अथवा उस से न्यून होगा, तो उस वर्ष अधिकमास आएगा, यह समझ सकते हैं ।
उदा. इस वर्ष शालिवाहन शक १९३७ है । १९३७ को गुणा १२= २३२४४ अब २३२४४ को भाग देने से १९ = १२२३ तथा शेष रहे ७ अतः इस वर्ष अधिकमास आएगा ।
९. आगामी अधिकमासों का कोष्टक
शालिवाहन शक | अधिकमास |
---|---|
१९४५ | श्रावण |
१९४८ | ज्येष्ठ |
१९५१ | चैत्र |
१९५३ | भाद्रपद |
१९५६ | आषाढ |
१९५९ | ज्येष्ठ |
शालिवाहन शक | अधिकमास |
---|---|
१९३७ | आषाढ |
१९४० | ज्येष्ठ |
१९४२ | आश्विन |
संदर्भ – सनातन-निर्मित ग्रंथ ‘त्यौहार, धार्मिक उत्सव एवं व्रत : खंड १‘