कुंभपर्व हरिद्वार तीर्थयात्रा के लाभ
हरिद्वार उत्तराखंड राज्य के गंगातट पर बसा प्राचीन तीर्थक्षेत्र है । हिमालय की अनेक कंदराओं एवं शिलाओं से तीव्र वेगसे नीचे आनेवाली गंगाका प्रवाह, यहां के समतल क्षेत्र में आने पर मंद पड जाता है । इस स्थान को ‘गंगाद्वार’ भी कहते हैं । १२ वर्ष पश्चात लगनेवाले कुंभमेले के ६ वर्ष पश्चात लगनेवाले कुंभमेले को ‘अर्धकुंभमेला’ कहते हैं । कुंभपर्वोंमें प्रयाग (गंगा), हरिद्वार (गंगा), उज्जैन (क्षिप्रा) एवं त्र्यंबकेश्वर-नासिक के (गोदावरी के) तीर्थों में गंगाजी गुप्त रूप से रहती हैं । कुंभपर्व में गंगास्नान धार्मिक दृष्टि से लाभदायी है । इसलिए श्रद्धालु एवं संत कुंभमेले में स्नान करते हैं । पवित्र तीर्थक्षेत्रों में स्नान कर पाप-क्षालन हो, इस हेतु अनेक श्रद्धालु कुंभपर्वमें कुंभक्षेत्रमें स्नान करते हैं ।
हरद्वार (हरिद्वार) स्थित विविध क्षेत्रोंकी महिमाका वर्णन करनेवाला श्लोक निम्नानुसार है –
गङ्गाद्वारे कुशावर्ते बिल्वके नीलपर्वते ।
तथा कनखले स्नात्वा धूतपाप्मा दिवं व्रजेत् ।।
– महाभारत, पर्व १३, अध्याय ६४,श्लोक १३
अर्थ : गंगाद्वार, कुशावर्त, बिल्वक, नीलपर्वत एवं कनखल तीर्थमें स्नान करनेवाले व्यक्तिके पाप धुल जाते हैं तथा उसे स्वर्गलोकमें स्थान प्राप्त होता है ।
गंगाद्वार, प्रयाग तथा गंगासागर संगमपर गंगास्नानकी महिमा
सर्वत्र सुलभा गङ्गा त्रिषु स्थानेषु दुर्लभा ।
गङ्गाद्वारे प्रयागे च गङ्गासागरसङ्गमे ।।
तत्र स्नात्वा दिवं यान्ति ये मृतास्तेऽपुनर्भवाः ।।
(गरुडपुराण, अंश १, अध्याय ८१, श्लोक १ एवं २)
अर्थ : भूतलपर अवतरित होनेके उपरांत पूर्वसागरमें लुप्त होनेतक गंगाजी सर्वत्र सुलभ हैं, तब भी गंगाद्वार, प्रयाग तथा गंगासागर संगमपर वे दुर्लभ हैं । यहां स्नान करनेवाले स्वर्ग प्राप्त करते हैं एवं देह त्यागनेवालोंका पुनर्जन्म टल जाता है ।
कुंभपर्व हरिद्वार – राजयोगी (शाही) स्नान | |
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११.३.२०२१, गुरुवार | महाशिवरात्रि (प्रथम शाही स्नान) |
१२.४.२०२१, सोमवार | चैत्र अमावस्या यानी सोमवती अमावस्या (द्वितीय शाही स्नान) |
१४.४.२०२१, बुधवार | मेष संक्रांति एवं बैशाखी (तृतीय शाही स्नान) |
२७.४.२०२१, मंगळवार | चैत्र पूर्णिमा (चतुर्थ शाही स्नान) |