सर्वतीर्थशिरोभूताम् आद्यां गोदां च धीमहि ।
धर्मं या नः प्रचोदयात् ॥ (संदर्भ : अज्ञात)
अर्थ : सर्व तीर्थोंमें श्रेष्ठ और आदि नदी गोदावरीका हम ध्यान करते हैं । यह गोदावरी हमें धर्माचरणके लिए सत्प्रेरणा दे ।
पुण्यनदी गोदावरी हिन्दू संस्कृतिकी एक ऐतिहासिक और समृद्ध विरासत है ! इस पुण्यसलिलाके तटपर सनातन धर्मसंस्कृतिका विकास हुआ । यहीं यज्ञवेत्ता ऋषिमुनियों ने वास्तव्य किया एवं प्रभु श्रीरामचंद्रजीने सीता सहित १२ वर्ष निवास किया । गोदावरीका इतिहास उत्तर भारतीय और दक्षिण भारतीय संस्कृतियोंके संगमका इतिहास है । आर्यावर्तके अनेक धर्मपुरुषोंने गोदावरी के किनारे वास किया । इसलिए यह सांस्कृतिक संगम धर्मग्रंथोंमें भी दिखाई देता है ।
गौतमी साक्षात गंगा है । सरस्वतीके समान ही वह नदी-तमा, अर्थात सर्वश्रेष्ठ नदी है । यह गंगा सर्वपापक्षालन करनेवाली और मोक्षदायिनी है । यह गोदा सुखदा और सुकृता है । राजा भगीरथने भागीरथीद्वारा सहस्रों सगरपुत्रोंका उद्धार किया । वही महान कार्य गौतमऋषीके आशीर्वादसे गोदावरीने महाराष्ट्र और आंध्रप्रदेशके कोट्यावधि भक्तोंके लिए किया । अमृतके स्रोतवाली यह सुरसरिता हिन्दुओंकी तीर्थरूप जननी है । उसके दर्शनमात्र से पापोंका नाश होता है । पाप-ताप निवारण करनेवाली इस महानदी गोदाका कितना गुणगान किया जाए !
सिंहस्थ महापर्वमें गोदावरीस्नान करनेसे अन्य गोदास्नान की तुलनामें १ लक्ष गुना अधिक आध्यात्मिक लाभ होता है । दक्षिण और पश्चिम भारतके इस एकमात्र सिंहस्थ कुंभमेलेका महत्व वेदोंसे सन्त तुकाराम महाराजकी गाथातक सर्वत्र उद्धृत किया गया है । इसलिए प्रस्तुत ग्रंथमें गोदावरीसे सम्बन्धित सिंहस्थ महापर्वादि उत्सवोंकी जानकारी, संपूर्ण गोदास्नानविधि तथा गोदावरीदेवीकी व्यष्टि और समष्टि साधना कैसे करनी चाहिए, इसका मार्गदर्शन किया है । आज देवनदी गोदावरी प्रदूषित नदी बन गई है । उसकी रक्षाके लिए कैसे प्रयास करने चाहिए, यह भी इस ग्रंथमें विशद किया है ।
इस ग्रंथका प्रयोजन पुण्यसरिता गोदावरी नदीकी महानता सभीको ज्ञात करवाना है । गोदावरीकी महानता ज्ञात होनेपर ही श्रद्धायुक्त मनसे उसकी रक्षा तथा संवर्धन करना सम्भव होगा तथा इसलिए यह गंगा-गौतमी-गोदावरी युगों-युगोंतक सकल जनोंको पवित्र कर शाप-पाप-ताप-संसारचक्र आदिसे मुक्त करती रहेगी ।
ग्रंथका यह प्रयोजन सफल हो, यही गौतमी गंगाके चरणोंमें प्रार्थना है !
१. गोदावरी शब्द की व्युत्पत्ति और अर्थ
अ. गां स्वर्गं ददाति स्नानेन इति गोदा । तासु वरी श्रेष्ठा गोदावरी । – शब्दकल्पद्रुम
अर्थ : जिसके स्नानसे स्वर्ग प्राप्त होता है, उसे गोदा कहते हैं । स्वर्ग प्राप्त करवानेवाली नदियोंमें जो श्रेष्ठ है, वह गोदावरी.
आ. गौतमस्य गवे जीवनं ददाति इति गोदा ।
अर्थ : गौतमऋषीकी गायको (गौतमऋषीके स्पर्शसे मृत हुई गायको) जीवन देनेवाली गोदा (गोदावरी) है ।
२. गोदावरीका भूलोकमें अवतरण
२ अ. गौतमऋषीने घोर तपस्याकर गोदावरीको
भूलोकपर लाना एवं शिवके आशीर्वादसे वह महातीर्थ बनना
सत्ययुगमें एक बार पृथ्वीपर निरंतर १२ वर्ष अनावृष्टि हुई । तब पर्जन्यवृष्टिके लिए गौतमऋषीने एक वर्ष तपस्याकर श्री गणेशजीको प्रसन्न कर लिया । श्री गणेशजीका आशीर्वाद मिलनेपर गौतमऋषीके आश्रमपर अनावृष्टिका संकट दूर होकर विपुल मात्रामें अनाज मिलने लगा । इस अनाज की सहायता से गौतमऋषीने अनेक देशोंके ऋषिमुनियोंका पोषण किया । कालांतरसे गौतमऋषीके आश्रयमें रहनेवाले कुछ विद्वेषी ब्राह्मणोंने एक मायानिर्मित
गाय गौतमऋषीके आश्रममें छोड दी । यह मायावी गाय आश्रमका हविद्र्रव्य खा रही थी, तब गौतमऋषीके स्पर्श मात्र से वह गाय मृत हो गई । यह देखते ही सर्व ब्राह्मणोंने गौतमऋषी को गोहत्याका पाप लगा है, उनके घरका भोजन नहीं चाहिए, यह कहकर गौतमऋषीका आश्रम छोड दिया । तत्पश्चात गौतमऋषीने पापमुक्तिके लिए घोर तपस्या की तथा स्वर्ग से गंगा लाने हेतु भगवान शंकरसे प्रार्थना की । तब गंगा भगवान शिवकी जटामें आई । (टीप १) तब गौतमऋषीने प्रार्थना की कि, हे जगदीश्वर, समस्त लोकोंको पवित्र करनेवाली इस देवीको आप ब्रह्मगिरीपर छोडिए । इसमें स्नान कर लोग स्वयंके पापोंका क्षालन करेंगे । इसके तटपर रहनेवाले एक योजनतक उसमें स्नान न करते हुए भी मुक्ति प्राप्त करेंगे । तब भगवान शंकरने गौतमऋषीको आशीर्वाद देते हुए गोदावरीको भूलोक पर प्रकट किया । (ब्रह्मपुराण)
टीप १ – भगवान शंकरजीकी जटामें समाए हुए जलके दो भाग ही गोदावरी और गंगा : भगवान शंकरजीकी जटामें समाए हुए जलके दो भाग हुए । उनमें से एक भाग गोदावरी तथा दूसरा भाग बलवान क्षत्रिय राजा भगीरथने कठोर तपस्याकर पृथ्वीपर लाई हुई गंगा नदी है ।(ब्रह्मपुराण)
२ आ. गोदावरीका उद्गम क्षेत्र तथा उसके प्रकट होनेका काल
समुद्रमंथनका काल और गोदावरीका जन्मकाल एक ही है ।
कृते लक्षद्वयातीते मान्धातरि शके सति ।
कूर्मे चैवावतारे च सिंहस्थे च बृहस्पतौ ॥
माघशुक्लदशम्यां च मध्याह्ने सौम्यवासरे ।
गङ्गा समागता भूमौ गौतमप्रार्थिता सति ॥
महापापादियुक्तानां जनानां पावनाय च ।
औदुम्बरतरोर्मूले ययौ प्रत्यक्षतां तदा ॥ (संदर्भ : अज्ञात)
अर्थ : कृतयुगके दो लाख वर्ष पूर्ण होनेपर, मांधात पृथ्वीके सार्वभौम राजाके कालमें, श्रीविष्णुके कूर्मावतारके समय, (धाता नाम संवत्सरी,) सिंह राशीमें गुरु, माघ मास, शुक्ल पक्ष, दशमी, सोमवारको, दिनके दो प्रहरमें (दोपहर १२ बजे), गौतमऋषीकी प्रार्थनासे (त्र्यंबकेश्वरके ब्रह्मगिरी पर्वतपर) औदुंबर वृक्षकी जडके पास गोदावरी भूलोकपर प्रकट हुई ।
३. गोदावरी के कुछ नाम
३ अ. गंगा अथवा दक्षिण गंगा : गोदावरी मूलतः साक्षात शिवकी जटासे पृथ्वीपर अवतीर्ण हुई है । इसलिए उसे गंगा कहते हैं । वह भारतके दक्षिण क्षेत्रमें प्रकट हुई है । इसलिए उसे दक्षिण गंगाके नामसे सम्बोधित किया जाता है ।
३ आ. गौतमी : महर्षि गौतम गोदावरीको पृथ्वीपर लाए हैं; इसलिए उसे गौतमी भी कहते हैं । ब्रह्मपुराणमें विन्ध्य पर्वतके दूसरी ओर (वर्तमान भारतके दक्षिण क्षेत्रमें) गंगाको गौतमीके नामसे जाना जाता है ।
३ इ. अन्य नाम : भगवान शंकरने गौतमऋषीको गोदावरीके माहेश्वारी, वैष्णवी, नंदा, सुनंदा, कामदायिनी, ब्रह्मतेजससमानिता, सर्वपापप्रणाशिनी आदि नाम बताए हैं । उन्होंने यह बताया है कि इन नामोंमें से गोदावरी नाम ही स्वयंको प्रिय है । कण्वऋषीने गोदावरीकी स्तुति करते हुए उसे ब्राह्मी और त्र्यंबका नामोंसे सम्बोधित किया है । (ब्रह्मपुराण)
४. गोदावरी की विशेषताएं
४ अ. भौगोलिक विशेषताएं
४ अ १. आदि नदी : गोदावरी समुद्रवलयांकित पृथ्वीकी आदि नदी है । पुरुषार्थचिंतामणी ग्रंथमें कहा गया है कि आद्या सा गौतमी गङ्गा दि्वतीया जाह्नवी स्मृता ।, अर्थात गोदावरी आदि गंगा (नदी) है । जाह्नवी उसके पश्चात आई है ।
४ अ २. सप्तप्रवाही : गंगासागरमें (बंगालके उपसागरमें) मिलनेसे पूर्व गोदावरी नदीके सात प्रवाह बनते हैं । ये प्रवाह सात ऋषियों गौतमी, वासिष्ठी, कौशिकी, आत्रेयी, काश्यपी, जामदग्न्या और भारद्वाजी के नाम से जाने जाते हैं ।
एक मतानुसार काश्यपी और जामदग्न्या दो नामोंके स्थानपर वृद्ध गौतमी और तुल्या ये नाम ग्राह्य हैं ।
४ अ ३. भारतकी दि्वतीय क्रमांक की लंबी नदी : महाराष्ट्रकी सह्याद्री पर्वतश्रृंखला के ब्रह्मगिरीपर गोदावरी और वैतरणा इन दो नदियोंका उद्गम होता है । इन दोनों में से वैतरणा नदी १५४ कि.मी. यात्राकर पशि्चममें सिंधुसागरमें (अरबी समुद्रमें) मिलती है, तो गोदावरी नदी पूर्व दिशासे दकि्षणवाहिनी होकर १ सहस्र ४६५ कि.मी.की यात्रा करते हुए गंगासागरमें (बंगालके उपसागरमें) मिलती है । इतन बडी लम्बाईवाली गोदावरी नदी देशकी गंगा नदीके पश्चात दूसरे क्रमांक की लंबी नदी है ।
४ आ. भौतिक विशेषताएं
४ आ १. जीवनदायिनी : गोदावरी लोककल्याणकी धारा है । वह लाखों वर्षोंसे महाराष्ट्र, छत्तीसगढ, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश और पांडिचेरी राज्योंकी भूमिको सुजलाम् सुफलाम् बना रही है ।
४ आ २. आरोग्यदायिनी : गोदावरीका जल आरोग्य अर्थात स्वास्थ्यके लिए लाभदायक है ।
पित्तार्तिरक्तार्तिसमीरहारि पथ्यं परं दीपनपापहारि ।
कुष्ठादिदुष्टामयदोषहारि गोदावरीवारि तृषानिवारि ॥ – राजनिघंटु, वर्ग १४, श्लोतक ३२
अर्थ : गोदावरी नदीका जल पित्त, रक्त, वातसे सम्बन्धित व्याधि दूर करनेवाला, भूख बढानेवाला, पापोंका हरण करनेवाला, पापसे उत्पन्न होनेवाले त्वचाविकारों जैसे विकार दूर करनेवाला और प्यास बुझानेवाला है ।