सारिणी
- १. मरणोपरांत जीवको सदगति प्राप्त हो, इसके लिए परिजनोंद्वारा करने योग्य कुछ कृत्य
- २. श्राद्ध करनेका उद्देश्य
- ३. श्राद्धका महत्त्व
- ४. पूर्वजोंकी अतृप्त लिंगदेहके कारण होनेवाले कष्ट
१. मरणोपरांत जीवको सदगति प्राप्त हो, इसलिए परिजनोंद्वारा करनेयोग्य कुछ कृत्य
जीव इच्छाओंमें अटक न जाए, इसके लिए जीवितकालमें ही जीवकी सहायता करना । जीवकी इच्छाओंकी तृप्ति करना । परमार्थपथपर आगे बढनेके बारेमें जीवको जागृत करना । मनुष्यकी मृत्युके उपरांत किए जानेवाले मासिक श्राद्ध, वार्षिक श्राद्ध, तीर्थ श्राद्ध, महालय श्राद्ध जैसे विविध श्राद्धोंद्वारा मुख्य रूपसे यही साध्य किया जाता है ।
महालय श्राद्ध दृश्यपट (Mahalay Shraddha Video)
२. श्राद्ध करनेका उद्देश्य
जीवकी लिंगदेह जीवात्मा एवं अविद्यासे बनी होती है । अविद्या अर्थात आत्माके सर्व ओर विद्यमान मायाका आवरण । सर्व जीवोंकी लिंगदेह साधना नहीं करतीं । इस कारण श्राद्धादि विधि कर बाह्य ऊर्जाके बलपर उन्हें आगे जानेके लिए प्रोत्साहित करना पडता है ।
श्राद्धविधिके तीन मुख्य उद्देश्य हैं,
२.१ पूर्वजोंकी पितृलोकसे आगेके लोकोंमें जानेके लिए सहायता करना
२.२ अपने कुलके निम्न लोकोंमें अटकी अतृप्त लिंगदेहोंको सदगति प्रदान करना
२.३ अपने कुकर्मोंके कारण भूतयोनिको प्राप्त पूर्वजोंको उस योनिसे मुक्त करना
श्राद्ध करनेसे जीवोंकी लिंगदेहके सर्व ओर विद्यमान वासनात्मक कोषका आवरण घटता है । इससे उन्हें हलकापन प्राप्त होता है । श्राद्धविधिमें मंत्रशक्तिकी ऊर्जाद्वारा लिंगदेहोंको गति दी जाती है ।
३. श्राद्धका महत्त्व
श्राद्धके महत्त्वके विविध कारण हैं ।
३ अ. धर्मपालन होना
देव, ऋषि एवं समाज इनके ऋणके साथ ही पितरोंका ऋण चुकाना महत्त्वपूर्ण है । वंशजोंका कर्तव्य है अपने पितरोंका आदर करना, उनके नामसे दानधर्म करना, उन्हें संतुष्ट करने हेतु आवश्यक कृत्य करना । परंतु इन सबसे महत्वपूर्ण है पितरोंका श्राद्ध करना । इसीलिए श्राद्ध करना धर्मपालनका ही एक भाग है । इस संदर्भमें महाभारतका यह श्लोक महत्त्वपूर्ण है । इस श्लोकमें कहा है,
पुन्नाम्नो नरकाद्यस्मात्पितरं त्रायते सतुः ।
तस्मात्पुत्र इति प्रोक्तः स्वयमेव स्वयंभुवा ।।
– महाभारत १.७४.३९
इसका अर्थ है, पुत्र अपने पितरोंका अर्थात पूर्वजोंका ‘पुत्’ नामक नरकसे रक्षण करता है । इसीलिए उसे स्वयं ब्रह्मदेवने ही ‘पुत्र’ कहा है ।
इसी प्रकार तैत्तिरीय उपनिषद तथा ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्मपुराण इत्यादिमें श्राद्धविधिका महत्त्व स्पष्ट करनेवाले अनेक श्लोक हैं ।
३ आ. वंशशुद्धि होना
गर्भधारणाके पश्चात अर्भकका जन्म सुखसे होना चाहिए । गर्भमें जीवका प्रवेश, उसका संवर्धन, गर्भवती माताकी प्रसन्नता एवं सहज-सुलभ प्रसूति होनेके लिए ईश्वरीय कृपाकी आवश्यकता होती है । पितर वंशरक्षक होते हैं । श्राद्धादि कुलधर्मके पालनसे वंशशुद्धि निश्चित होती है ।
३ इ. लेन-देन पूर्ण होना
किसी व्यक्तिका श्राद्ध करनेसे उसके साथ हमारा लेन-देन पूर्ण होता है । उदाहरणार्थ, हमपर किसीका ऋण हो, तथा उसे चुकानेसे पहले ही उस व्यक्तिका देहांत हो जाए, तो ऋण चुकानेके लिए श्राद्ध करना चाहिए ।
३ र्इ. पितृपक्ष एवं महालय श्राद्ध तथा उसका महत्त्व
शक संवत अनुसार भाद्रपद मासके एवं विक्रम संवत अनुसार आश्विन मासके कृष्णपक्षमें अर्थात पितृपक्षमें किए जानेवाले श्राद्धको ‘महालय श्राद्ध’ कहते हैं । मृत्युके पश्चात जीवको तुरंत प्रेतदेह प्राप्त होती है । कुछ काल बीतनेपर यह जीव पितर योनिमें जाता है । पितृपक्षमें पितर अपने परिजनोंके घर निवास करनेके लिए आते हैं । इन पंद्रह दिनोंमें एक दिन श्राद्ध करनेसे वे वर्षभर तृप्त रहते हैं । पितृपक्षमें श्राद्ध करनेसे होनेवाले लाभके संदर्भमें मर्हिष जाबालि कहते हैं, ….
पुत्रानायुस्तथाऽऽरोग्यमैश्वर्यमतुलं तथा । प्राप्नोति पंञ्चमे कृत्वाश्राद्धं कामांचं पुष्कलान् ।। – महर्षी जाबालि
इसका अर्थ है, पितृपक्षमें श्राद्ध करनेसे पुत्र, आयु, आरोग्य, अतुल ऐश्वर्य एवं इच्छित वस्तुओंकी प्राप्ति होती है । महर्षि जाबालिके इस श्लोकसे बोध होता है, कि पितृपक्षमें श्राद्ध करनेसे पितर प्रसन्न होकर श्राद्ध करनेवाले अपने वंशजोंपर कृपा करते हैं ।
महर्षी कार्ष्णाजिनि कहते हैं,
वृश्चिके समनुप्राप्ते पितरो दैवतै: सह ।
निःश्वस्य प्रतिगच्छन्ति शापं दत्वा सुदारुणम् ।।
इसका अर्थ है, सूर्यके वृश्चिक राशिमें प्रवेश करनेसे पहले श्राद्ध न किया जाए, तो पितर गृहस्थको कठोर शाप देकर पितृलोकमें लौट जाते हैं ।
४. पूर्वजोंकी अतृप्त लिंगदेहके कारण होनेवाले कष्ट
पितरोंकी अतृप्तिके कारण, विवाह न होना, विवाह हो जानेपर पति-पत्नीमें अनबन, गर्भधारण न होना, गर्भपात हो जाना, संतान हो जाए, तो वह मंदबुद्धि अथवा विकलांग होना, बाल्यावस्थामें ही संतानकी मृत्यु हो जाना, बुरे सपने आना, सपनेमें तथा जागृतावस्थामें नाग अथवा पूर्वज दिखाई देना, साधनामें अडचन उत्पन्न होना, ऐसे अन्य कष्ट होनेकी आशंका रहती है । किसीके जीवनमें इस प्रकारके कष्ट नहीं हैं, तो भी भविष्यमें ऐसे कष्टोंसे बचनेके लिए उपाय कर सकते हैं । इसलिए अपने परिजनोंकी सदगति हेतु प्रयास कीजिए । महालय श्राद्ध करनेसे पितरोंके कारण परिवारको होनेवाले संभावित कष्ट घटते हैं; पितरोंको मुक्ति मिलती है ।
संदर्भ – सनातनके ग्रंथ – ‘श्राद्ध (महत्त्व एवं शास्त्रीय विवेचन)’ एवं ‘श्राद्ध (श्राद्धविधिका शास्त्रीय आधार)’