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श्राद्धीय भोजन एवं उसका शास्त्रीय आधार

Brahman_Bhojan

सारिणी


श्राद्धके दिन बनाया गया भोजन आदर्श होता है । इसमें नित्यकी भांति दो-चार पदार्थ न बनाकर यथासंभव अधिकाधिक पदार्थ बनाए जाते हैं । इसमें तिथि अनुसार जिसका श्राद्ध कर रहे हैं, जैसे पिता, माता अथवा दादा इत्यादि, तो उनके जीवनकालमें उन्हें जो पदार्थ रुचिकर लगते थे, वे पदार्थ बनाकर ब्राह्मणोंको परोसे जाते हैं । श्राद्धमें ब्राह्मणभोजन महत्त्वपूर्ण होता है ।

श्राद्धीय भोजन दृश्यपट भाग ३ (Shradhiy Bhojan Video Part 3)

श्राद्धीय भोजन दृश्यपट भाग ४ (Shradhiy Bhojan Video Part 4)

१. श्राद्धीय भोजनके लिए उपयुक्त पदार्थ

श्राद्धीय भोजनके लिए उबली हुई मसाले रहित दाल, चावल, कढी, टूटे हुए चावलकी खीर, बडे, पूरी, आलू, गोभी जैसी सब्जी, लड्डू, तले हुए पदार्थ इत्यादि बनाए जाते हैं । साथही गायका दूध, दही, छाछ, मधु, चीनी, गुड, तेल एवं घी, लौंग, सुपारी एवं बीडा इन वस्तुओंका भी उपयोग किया जाता है । प्रदेश, रूढि, उपलब्धता इत्यादि के अनुसार कुछ भेद हो सकता है । प्याज, लहसुन, बैंगन, काली मिर्च इत्यादि तमोगुणवर्धक पदार्थ श्राद्धविधिके लिए वर्जित हैं ।

२. भोजन परोसनेकी पद्धति

भोजन महुआकी पत्तल अथवा केलेके पत्तेपर परोसते हैं । पातालसे प्रक्षेपित कष्टदायक तरंगोेंसे अन्नका रक्षण होने हेतु, भोजनके पत्तेके नीचे एक दूसरा पत्ता रखा जाता है, जिसे आधारपत्र कहते है । केलेके पत्तोंके सर्व ओर भस्मका मंडल अर्थात पिशंगी बनाते है । श्राद्धीय ब्राह्मणोंको परोसे जानेवाले भोजनमें नमक नहीं परोसना चाहिए । श्राद्धीय भोजनमें विविध अन्न पदार्थ केलेके पत्तेके मध्यमें, दार्इं एवं बार्इं ओर वामावर्त दिशामें अर्थात ऐन्टिक्लॉकवाइज परोसे जाते हैं । पितरतरंगोंका भ्रमण भी इसी दिशामें होता है, इस कारण उन्हें परोसा गया अन्न सहजतासे ग्रहण करना संभव होता है । केलेके पत्तेका मध्य सुषुम्ना नाडीका, दायां भाग सूर्यनाडीका तथा बायां भाग चंद्रनाडीका प्रतीक है । मृत्युके समय व्यक्तिकी लिंगदेह एक तो सूर्यनाडीसे बाहर निकलती है अथवा चंद्रनाडीसे । जिस व्यक्तिकी लिंगदेह सूर्यनाडीसे बाहर निकलती है, उसके लिए दाएं भागमें तथा जिस व्यक्तिकी लिंगदेह चंद्रनाडीसे बाहर निकलती है, उसके लिए बाएं भागमें अन्न परोसा जाता है । केलेके पत्तेपर स्थित आडी रेखाओेंसे रजोगुणी स्पंदन बाहर निकलते हैं । इन स्पंदनोंके कारण पितरोंको अन्न ग्रहण करना सरल होता है ।

३. केलेके पत्तेपर पदार्थ परोसनेका क्रम एवं स्थान

३ अ. भोजन परोसनेकी पद्धति

  • सर्वप्रथम केलेके पत्तेपर घी लगाते हैं ।
  • पत्तेके मध्यमें चावल परोसते हैं ।
  • पत्तेके दार्इं ओर निचले भागमें खीर परोसते हैं ।
  • खीरके उपरांत दार्इं ओर निचले भागसे उपरकी ओर कढी परोसते हैं ।
  • पत्तलके दार्इं ओर कढीके ऊपरी भागमें आलू, गोभी, सूरण इत्यादि सब्जियां परोसते हैं ।
  • पित्तलके बार्इं ओर ऊपरसे नीचेकी ओर नींबू, दही, कचूमर (भरता), इत्यादि परोसते हैं ।
  • कचूमरके उपरांत नीचेकी ओर पकोडे परोसते हैं ।
  • पत्तेके बार्इं ओर निचले भागमें पूरी एवं लड्डू परोसते हैं ।

इसके साथही उडद दालके बडे तथा मधु भी परोसना चाहिए । संभव हो, तो कुछ अन्य मिष्टान्न परोस सकते हैं । अंतमें चावलपर घी तथा दाल परोसी जाती है । श्राद्धविधिके दिन बिना भेदभाव किए एक ही प्रकारका भोजन सभीको परोसिए । श्राद्धविधि पूर्ण होनेसे पहले अतिथियोंको अथवा किसीको भी अन्न न दीजिए  ।

पितरोंके लिए इसप्रकार भोजन परोसनेसे रज-तमात्मक तरंगें उत्पन्न होकर मृतात्माको अन्न ग्रहण करना संभव होता है ।

४. श्राद्धमें ब्राह्मणभोजनके पत्तलके सर्व ओर भस्मसे मंडल अर्थात पिशंगी बनानेका कारण

भस्मसे तेजतत्त्वात्मक तरंगें प्रक्षेपित होती हैं । इन तरंगोंके प्रभावसे पितरान्न अर्थात पितरोंके लिए अन्न, जो केलेके पत्तोंपर परोसे जाते हैं, उन केलेके पत्तोंके सर्व ओर तेजोमंडल निर्माण होता है । इस तेजोमंडलद्वारा पितरान्नका रक्षण होता है । जिससे अनिष्ट शक्तियोंकी कोई बाधा न होनेके कारण पितरोंको यह अन्न सहजतासे ग्रहण करना संभव होता है । इससे पितर अल्पावधिमें संतुष्ट होते हैं ।

४ अ. केलेके पत्तेके चारों ओर भस्मका मंडल बनानेसे तेजतत्त्वकी  ज्वालाएं प्रक्षेपित होती हैं ।

४ आ. भस्मसे प्रक्षेपित सूक्ष्म अग्निकी ज्वालाके कारण पितरोंकी लिंगदेहके सर्व ओर बना रज-तमयुक्त
काला आवरण नष्ट होता है ।

४ इ. आवरण नष्ट होनेसे पितरोंकी लिंगदेह हलकी होकर श्राद्धस्थलपर सरलतासे आ सकती हैं ।

श्राद्धविधिमें भस्मसे पिशंगी बनानेका महत्त्व एवं उसका सूक्ष्म-परिणाम हमने समझ लिया ।

५. श्राद्धमें चावलकी खीर बनाने एवं उसमें लौंगका उपयोग करनेका शास्त्रीय आधार

श्राद्धमें पितरोंको नैवेद्य दिखाकर उन्हें संतुष्ट करनेके लिए मिष्ठान्नके रूपमें चावलकी खीर बनाई जाती है । खीरमें चीनी मधुर रसका द्योतक, दूध चैतन्यका स्रोत एवं चावल सर्वसमावेशकके रूपमें उपयोगमें लाए जाते हैं । ये सर्व घटक आपतत्त्वात्मक हैं । खीरमें लौंगका उपयोग भी किया जाता  है । लौंगमें विद्यमान तमोदर्शक तरंगें खीरके अन्य घटकोंसे प्रक्षेपित आपतत्त्वात्मक तरंगोंके साथ मिल जाती हैं । इस मेलसे उत्पन्न सूक्ष्मवायुमें रज-तमात्मक लिंगदेह अल्पावधिमें आकृष्ट करनेकी क्षमता होती है । लौंगसे प्रक्षेपित सूक्ष्म-वायु नैवेद्यके सर्व ओर उष्ण गतिमान तरंगोंका सूक्ष्म-कवच जागृत करती है । इससे नैवेद्यके सर्व ओर सुरक्षाकवच बननेमें  सहायता मिलती है ।

६. श्राद्धके भोजनमें उडद दालके बडे बनानेका शास्त्रीय कारण

पितरोंको चटपटे अन्नपदार्थोंमें रुचि होती है । बिना छिलकेके उडदकी दालसे प्रक्षेपित सूक्ष्मउग्र गंध पितरोंको प्रिय होती है । यह उग्र गंध वासनायुक्त लिंगदेहके कोषोंसे प्रक्षेपित रजोगुणी तरंगोंकी गंध समान ही हो-  ती है । इस समानताके कारण उडदके बडेकी ओर पितर शीघ्र आकृष्ट होकर अन्नकी सूक्ष्मवायु ग्रहण कर सकते हैं । अतः उनकी इच्छा पूर्ति हेतु श्राद्धके भोजनमें उडदके बडे बनाते हैं ।

संदर्भ – सनातनके ग्रंथ – ‘श्राद्ध (महत्त्व एवं शास्त्रीय विवेचन)’ एवं ‘श्राद्ध (श्राद्धविधिका शास्त्रीय आधार)

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