सनातन हिंदू धर्म में अनेक त्यौहार हैं । उस दिन वातावरण में त्यौहार से संबंधित विशिष्ट देवता का तत्त्व प्रचुर मात्रा में कार्यरत रहता है । इस तत्त्व का लाभ अधिक से अधिक होने हेतु प्रयास किए जाते हैं । विशिष्ट देवतातत्त्वको आकृष्ट करने हेतु विशिष्ट प्रकारकी रंगोली बनानेसे लाभ होता है । श्रीकृष्ण श्रीविष्णुका रूप हैं । इसलिए श्रीविष्णुसमान बुधवारको एवं अक्षय तृतीया, देवशयनी एकादशी, नारियल पूर्णिमा, रक्षाबंधन, गोपालकाला, अनंत चतुर्दशी, वसुबारस, नरक चतुर्दशी, बलिप्रतिपदा, भैयादूज (यमद्वितीया),छठ पूजा, प्रबोधिनी एकादशी,तुलसी विवाह, रथसप्तमी, मकरसंक्रांति के तिथी पर श्रीकृष्णतत्त्वकी रंगोलियां बनाएं ।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन श्रीकृष्ण तत्त्वसे संबंधित रंगोली बनाना अत्यंत लाभकारी होता है । सनातन संस्था के साधकों ने संतों के मार्गदर्शनानुसार श्रीकृष्ण तत्त्वसंबंधी रंगोली की रचना एवं उसमें भरने योग्य रंगों का अभ्यास किया । यह रंगोली श्रीकृष्णतत्त्व आकृष्ट करती है । आकृति में बताए अनुसार यह रंगोली १३ से ७ क्रमांक की बिंदुओं को जोडकर बनाई जाती है । इससे आनंदकी अनुभूति होती है । श्रीकृष्ण पूर्णावतार हैं, इसलिए उनमें सभी देवताओंके तत्त्व आते हैं । इस कारण श्रीकृष्णतत्त्व आकृष्ट करनेवाली रंगोली किसी भी मंगल कार्यक्रममें बना सकते हैं ।
आनंद की अनुभुति देनेवाली श्रीकृष्णतत्त्व की रंगोली
१३ से ७ बिंदु
गाेकुलाष्टमीपर बनाने याेग्य रंगोली
चैतन्य की अनुभुति देनेवाली श्रीकृष्णतत्त्व की रंगोली
२१ से ११ बिंदु
आनंद की अनुभुति देनेवाली श्रीकृष्णतत्त्व की रंगोली
१७ से ९ बिंदु
आनंद की अनुभुति देनेवाली श्रीकृष्णतत्त्व की रंगोली
१५ बिंदु : ३ रेखाएं
श्रीकृष्णतत्त्व की रंगोलीका चित्र देखनेसे हुई बोधप्रद अनुभूति
रंगोली देखते ही प्राचीन विविध कालचक्रों का लय होकर नवीन कालचक्र की रचना एवं रंगोली के स्थानपर साक्षात श्रीकृष्ण का अस्तित्व प्रतीत होना : १९ अक्तूबर २००६ के दैनिक `सनातन प्रभात’में श्रीकृष्णतत्त्व की रंगोली का चित्र छपा था । उसे देखतेही उस में बने वर्तुलों के मध्य की रिक्तियों से श्वेत प्रकाश का प्रवाह मेरी ओर आता मुझे दिखाई दिया । रंगोली के सर्व ओर के वर्तुल बीच के वर्तुल की ओर आकर उस में विलीन होते दिखाई दिए । बीच के वर्तुल से अनेक वर्तुल प्रक्षेपित होते प्रतीत हुए । मुझे प्रतीत हुआ जैसे प्राचीन विविध कालचक्रों का लय होकर नए कालचक्र की रचना हुई है । इस चित्र के नीचे लिखा था – `श्रीकृष्णतत्त्व आकृष्ट करनेवाली रंगोली’ । उसे पढने पर उस रंगोली के चित्रद्वारा परमात्मा का अर्थात साक्षात श्रीकृष्ण का अस्तित्व प्रतीत होने का आनंद मुझे मिला । पू. (डॉ.) पिंगळेजी इनको श्रीकृष्णतत्त्व से संबंधित रंगोली देखकर भगवान श्रीकृष्णजी के अस्तित्व का भान हुआ । इसीसे उस रंगोली का महत्त्व स्पष्ट होता है ।
संदर्भ : सनातन का ग्रंथ, ‘सात्त्विक रंगाेलियां‘