शिव का पंचाक्षरी मंत्र है – ‘नमः शिवाय’ । यजुर्वेद के रुद्राध्याय में ११ अनुवाक में से एक अनुवाक (एक वर्ग) में ‘नमः शिवाय’ शब्द हैं, जहां से यह मंत्र लिया गया है । इसी के प्रारंभ में प्रणव जोडने पर ‘ॐ नमः शिवाय’ का षडक्षरी मंत्र बनता है ।
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१. अर्थ
अ. ‘नमः शिवाय’ मंत्र के प्रत्येक अक्षर का आध्यात्मिक अर्थ
न · समस्त लोकों के आदिदेव
मः · परम ज्ञान देनेवाले एवं पापों का क्षालन करनेवाले
शि · कल्याणकारी, शांत एवं शिव अनुग्रह का निमित्त
वा · वृषभवाहन, वासुकि एवं वामांगी शक्ति का सूचक
य · परमानंदरूप एवं शिव का शुभ निवासस्थान
इसलिए इन पांच अक्षरों को हमारा नमस्कार है । नटराज शिव के तांडवनृत्य से भी उपर्युक्त मंत्र के पांच अक्षरों का संबंध
दिखाया गया है, जो इस प्रकार है –
न · अग्नियुक्त हाथ
मः · मुयलक दैत्य को कुचलनेवाला पैर
शि · डमरूहस्त
वा · फैला हुआ हाथ
य · अभयहस्त
ईश्वर, शक्ति, आत्मा, अंतर्धान एवं पापनिवारण, इस प्रकार भी इन पांच अक्षरों का अनुक्रम में अर्थ बताया गया है ।’
आ. ‘ॐ नमः शिवाय ।’ का अर्थ इस प्रकार है – `ॐ’ (निर्गुण) की ओर से `नमः शिवाय’ (सगुण) की ओर आना ।
२. शिवजपांतर्गत ओंकार
निर्गुण (ब्रह्म) तत्त्व से सगुण (माया)की निर्मिति हेतु प्रचंड शक्ति लगती है । उसी प्रकार की शक्ति ओंकारद्वारा (ॐ द्वारा) निर्मित होती है । इसलिए अनधिकारी व्यक्ति यदि ओंकार का जप करे, तो उसे शारीरिक – आम्लपित्त, उष्णता बढना अथवा मानसिक – अस्वस्थ लगना इत्यादि जैसे कष्ट होने की संभावना रहती है । ओंकारद्वारा निर्मित स्पंदनों से शरीर में अत्यधिक शक्ति (उष्णता) उत्पन्न होती है । पुरुषों की जननेंद्रियां शरीर के बाहर होती हैं, इस जप से निर्मित अत्यधिक शक्ति का (उष्णता का) उनकी जननेंद्रियों पर कोई परिणाम नहीं होता । स्त्रियों की जननेंद्रियां शरीर के अंदर होती हैं, इस कारण इस उष्णता का उनकी जननेंद्रियों पर दुष्परिणाम होता है, जिससे उन्हें कष्ट हो सकता है । उनका मासिक स्राव अधिक होना, थम जाना, स्राव के समय वेदना होना, इस प्रकार के विविध कष्ट हो सकते हैं; इसलिए स्त्रियां नामजप करते समय गुरु की आज्ञा बिना नाम के साथ ओंकार न लगाएं; उदा. ‘ॐ नमः शिवाय ।’ ऐसा जप करने की अपेक्षा केवल ‘नमः शिवाय’ बोलें, अन्यत्र ॐ के स्थान पर ‘श्री’ लगाएं । यह नियम सर्वसाधारण स्त्रियों के संदर्भ में है । ६० प्रतिशत से अधिक आध्यात्मिक स्तर की स्त्रियां यदि ॐ’ सहित नामजप करें तो इसमें कोई आपत्ति नहीं ।
३. अनुभूति
ध्यान के समय शिवदर्शन होकर श्वाससहित ‘ॐ’ का नामजप आरंभ होना : ‘१.६.२००२ को ध्यान के समय जब मैं प.पू. डॉक्टरजी को (संकलनकर्ता प.पू. डॉ. जयंत आठवलेजी को) हाथ जोडकर नमस्कार कर रही थी, तब मुझे एक पर्वत दिखा । उस पर्वत पर शिवजी थे । उनसे ‘ॐ’ की ध्वनितरंगें निकल रही थीं । मुझे वह सुनाई दे रही थीं । तत्क्षण मुझे अंतर् में ‘ॐ’ का नामजप सुनाई दिया । २ मिनटों में श्वास के साथ ‘ॐ’ का नामजप आरंभ हो गया । ‘ॐ’ का नामजप पांच मिनटतक होता रहा ।’ – कु. महानंदा गिरिधर पाटील, पनवेल.
४. सनातन-निर्मित ‘शिवजी की सात्त्विक नामजप-पट्टी’
अक्षर सात्त्विक हों, तो उनमें चैतन्य रहता है । सात्त्विक अक्षर एवं उनके सर्व ओर देवता के तत्त्वानुरूप किनार से युक्त विशिष्ट देवता की नामजप-पट्टियां सनातन बनाता है । ये नामजप-पट्टियां संबंधित देवता के तत्त्व को अधिक आकर्षित एवं प्रक्षेपित कर पाएं, ऐसा प्रयास उन्हें बनाते समय किया जाता है । शिवसहित विविध देवताओं के कुल मिलाकर ८० से अधिक नामजपपट्टियां सनातनने अबतक बनाई हैं ।
अ. शिवजी की सात्त्विक नामजप-पट्टी की सूक्ष्म-स्तरीय विशेषताएं दर्शानेवाला चित्र
अ. चित्र में अच्छे स्पंदन : २ प्रतिशत’ – प.पू. डॉ. जयंत आठवले
आ. ‘अन्य स्पंदनों की मात्रा : शांति ४ प्रतिशत, शिवतत्त्व ४ प्रतिशत, शक्ति २ प्रतिशत
इ. अन्य सूत्र
- १. इस नामजप-पट्टी से नामजप अपनेआप प्रारंभ होता है ।
- २. नामजप-पट्टी के अक्षर घुमावदार हैं । इस से अक्षरों में निर्मित रिक्ति के कारण नामजप-पट्टी को अधिक मात्रा में निर्गुण तत्त्व प्राप्त होता है ।
- ३. नामजप-पट्टी की ओर अधिक समयतक देखने से अक्षरों को गति प्राप्त होती है एवं कुछ समय पश्चात ऐसा प्रतीत होता है कि ‘वहांपर अक्षर ही नहीं हैं ।’
ई. देवता के रूप एवं नाम में भेद
- १. देवता के चित्र में देवता के सगुण रूप को साकार किया जाता है । इसलिए उसमें तेजतत्त्व अधिक मात्रा में होता है ।
- २. नाम देवता के निर्गुण तत्त्व से अधिक एकरूपता साधनेवाला होता है । इसलिए नामजप-पट्टी में आकाशतत्त्व अधिक होता है ।
- अ. देवता के नाम के माध्यम से देवता के मूल तत्त्व से एकरूप हो सकते हैं ।
- आ. देवता के नाम में विद्यमान बीजमंत्र के कारण देह में ऊर्जा निर्मित होती है एवं उससे देह को कार्यशक्ति प्राप्त होती है ।
देवता का चित्र | देवता की नामजप-पट्टी | |
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१. तत्त्व | सगुण (तेजतत्त्व) | निर्गुण-सगुण (आकाशतत्त्व) |
२. अनुभूति | प्रकाश स्वरूपमें दिखाई देना | नामजप होना अथवा सुनाई देना, नाम श्वाससे एकरूप होना अथवा श्वासपर ध्यान वेंâद्रित होना |
ऊ. अनुभूति – शिवजी की इस नामजप-पट्टी की ओर देखनेपर शिवजीके नाम से ब्रह्मांड के दर्शन होते हैं । (ऐसा पहली बार ही हुआ ।) इससे यह प्रतीत हुआ कि देवता के नाम में ब्रह्मांड के दर्शन देने के साथ ही उत्पत्ति एवं लय का सामथ्र्य है ।’
कु. प्रियांका लोटलीकर, सनातन संस्था (२.५.२०१०)
संर्दभ : भगवान शिव (भाग १) – शिवजीसंबंधी अध्यात्मशास्त्रीय विवेचन एवं भगवान शिव (भाग २) शिवजी की उपासना का शास्त्रोक्त आधार