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त्यौहार

त्योहार एवं उत्सव के गूढार्थ एवं शास्त्र का बोध होने से वे अधिक श्रद्धापूर्वक मनाए जा सकते हैं; इसलिए लेख में गूढार्थ एवं शास्त्र प्रस्तुत करने पर विशेष बल दिया गया है । प्रादेशिक भिन्नता, जनजीवन, उपासना की पद्धतियां आदि के कारण त्यौहार, उत्सव मनाने की प्रथाओं में भेद पाए जाते हैं । यहां पर महत्त्वपूर्ण बिंदु यह है कि शास्त्रीय आधारहीन पर्वों को केवल लौकिक प्रथा के रूप में मनाना अनुचित है । इन लौकिक प्रथाओं को त्यागकर शास्त्रसम्मत कृति करना आवश्यक होता है । वर्तमान में धार्मिक उत्सवों को प्राप्त विकृत रूप परिवर्तित कर धर्मशास्त्रानुसार उत्सव मनाना, यह ‘हिन्दू’के रूप में हमारा कर्तव्य है । इस दृष्टि से विविध धार्मिक उत्सव मनाने की धर्मशास्त्रीय पद्धतियां इस लेख में दी हैं ।

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