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नागपंचमी

सारणी –

१. प्रस्तावना
२. नागपंचमी एवं उसकी कथा
३. नागदेवताकी पूजा तथा उनकी विशेषताएं
४. नागदेवताका पूजन करनेकी पद्धति
५. नागपंचमीका त्यौहार मनाते समय शास्त्रने कौन-कौनसे निषेध बताए हैं ?
६. नागपंचमीका आध्यात्मिक महत्त्व तथा संतोंका दृष्टिकोण


प्रस्तावना

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श्रावण शुक्ल पंचमीके दिन नागपंचमीका त्यौहार मनाया जाता है । इस दिन नागपूजा करनेकी परंपरा है । प्राचीन कालसे ही हिंदु धर्ममें नागपूजाके संदर्भमें उल्लेख पाया जाता है, जो भारतके विभिन्न क्षेत्रोंमें की जाती है । नागपंचमी संपूर्ण भारतमें मनाया जानेवाला त्यौहार है ।

नागपूजा यह एक त्यौहारके रूपमें मनाई जाती है । परंतु सौराष्ट्र(गुजरात प्रांतका एक उपराष्ट्र) में नागपूजा एक व्रतके रूपमें की जाती है । सौराष्ट्रमें यह व्रत श्रावण कृष्ण पंचमीके दिन करते हैं । यह व्रत प्रत्येक माहकी उसी तिथिपर १ वर्षतक किया जाता है । अनंत, वासुकी, शेष इत्यादि नागोंका पूजन, ब्राह्मण भोजन देकर एक वर्षके उपरांत व्रतका उद्यापन किया जाता है ।

नागपंचमी और इसके विषयमें कुछ कथाएं

१. यमुनाजीमें (यमुना नदीमें) कालिया नामका नाग अपने परिवारके साथ रहता था । वह दुष्ट था । उसके कारण वृंदावनवासियोंको बहुत कष्ट होते थे । उसकी दुष्टता दूर कर भगवान श्रीकृष्णजीने उसे उसके पूरे परिवारके साथ रमणिक द्वीप भेज दिया । वह दिन था श्रावण शुक्ल पंचमी ।

२. महाभारतके अनुसार द्वापर युगके अंतमें तक्षक नामक नागने पांडव कुलके राजा परीक्षितको दंश किया । इस कारण राजा परीक्षितकी मृत्यु हुई । तक्षकद्वारा किए इस अपराधके दंड हेतु राजा परीक्षितके पुत्र राजा जनमेजयने सर्पयज्ञ आरंभ किया । इस यज्ञमें राजाने सर्व सर्पोंकी आहुति देनी आरंभ की । तब तक्षक नागने स्वयंको बचानेके लिए देवताओंके राजा इंद्रका आश्रय लिया । यह देखकर राजा जनमेजयने इंद्राय स्वाहा: । तक्षकाय स्वाहा: कहते हुए यज्ञमें इंद्रकी भी आहुति डाली । उसी समय पूरे नागवंशका नाश न हो, इसलिए आस्तिक ऋषिने तप आरंभ किया और सर्पयज्ञ करनेवाले राजा जनमेजयको अपनी तपःश्चर्यासे प्रसन्न कर लिया । राजा जनमेजयने जब उनसे वर मांगनेके लिए कहा, तो उन्होंने सर्पयज्ञ रोकनेका वर मांगा । जिस दिन राजा जनमेजयने सर्पयज्ञ रोका, वह तिथि थी श्रावण शुक्ल पंचमी ।

कथाका बोध –  राजा जनमेजयने तक्षक नाग देवताओंके साथ राजा इंद्रकी भी आहुति दी । राजा जनमेजयने अपनी इस कृत्यद्वारा बोध कराया कि, अपराधीके साथ साथ अपराधीकी रक्षा करनेवाला अथवा उसे आश्रय देनेवाला भी उतना ही अपराधी होता है । उसे भी अपराधी-समान ही दंड देना चाहिए । उसके साथ अपराधी-समान ही वर्तन करना चाहिए ।
(संदर्भ : सनातनका ग्रंथ ‘त्यौहार, धार्मिक उत्सव व व्रत’)

नागदेवताकी पूजा तथा उनकी विशेषताएं

१ आ . नागको पूजाका प्रतीक क्यों माना गया है ?

कुछ लोगोंके मनमें यह प्रश्न उठता है, कि प्राणियोंकी पूजा करनेकी यह कैसी पद्धति है ? और इस कारण वे हिंदु धर्मद्वारा बताई उपासनापद्धतिको पिछडा हुआ मानते हैं । परंतु सत्य तो यह है कि, ‘इस सृष्टिके कण कणमें ईश्वर हैं, सृष्टिका प्रत्येक कण ईश्वरसे व्याप्त है’, इसका ज्ञान हिंदु धर्मने ही इस विश्वको करवाया है । इस बातकी पुष्टि भगवान श्रीकृष्णजीने गीतामें अपनी विभूती कथनद्वारा की है । वे कहते हैं, ……नागोंमें श्रेष्ठ ‘अनंत’ मैं ही हूं ।
संदर्भ : श्रीमद्भगवद्गीता (अध्याय१०, श्लोक २९)

इस सूत्रके विषयमें गहन विचार करें, तो पाषाण अर्थात् पत्थर, वृक्ष अथवा प्राणीमात्रको भी इस धर्ममें पूजाका प्रतीक माना गया है ।

नागदेवताकी विशेषताएं

१ . नाग क्षेत्रपाल देवताओंमें से एक हैं । क्षेत्रपालदेवता अर्थात् क्षेत्रकी रक्षाकरनेवाले देवता ।
२ . नागका संबंध भूमिकी उपजाऊ शक्तिके साथ जोडा गया है ।
३ . नाग इच्छासे संबंधित देवता हैं ।  वे इच्छाके प्रवर्तक अर्थात् सकाम इच्छाओंकी पूर्ति करनेवाले कनिष्ठ देवता हैं ।
४ . नाग पवित्रकोंके समूहका प्रतीक है । पवित्रक अर्थात् ईश्वरीय चैतन्यके सूक्ष्मातिसूक्ष्म कण । ईश्वर चैतन्यस्वरूप हैं । हिंदु धर्मके अनुसार नाग अनेक देवताओंके रूपसे संबंधित हैं । भगवान शिवजीने नौ नाग धारण किए हैं, तो भगवान विष्णु प्रत्येक कल्पके अंतमें महासागरमें शेषासनपर शयन करते हैं । श्रीगणेशजीने भी पेटपर नाग धारण किया हैं । नाग पवित्रकोंका समूह है । अर्थात् वे सूक्ष्म होते हैं और जिन्हें हम अपने नेत्रोंद्वारा अर्थात् स्थूल दृष्टिसे देखते हैं, वे नाग इन पवित्रकोंके समूहका प्रतिकात्मक स्थूल रूप है । इन नागोंमे देवताका रूप देखनेके कारण पूजकको आध्यात्मिक लाभ होते हैं ।
५. नाग ब्रह्मचर्यका प्रतीक हैं, वे बमीठेमे रहते हैं । जिस व्यक्तीके हाथों बमीठा तोडा जाता है अथवा नाग मारा जाता है, उसे नाग शाप देते हैं ।
६.  नागके शापकी तीव्रता अत्यधिक होती है । हमारे पूर्वजोंके हाथों यदि ऐसा अपराध हुआ हो, तो उसके संपूर्ण वंशको यह शाप भुगतना पडता है । यह शाप दूर हो; इसलिए अनेक विधियां की जाती हैं । इसके उदाहरण है, आश्लेशा बली, काल सर्प शांति जैसे विधि । इन विधियोंमें नागको बली चढाया जाता है । परंतु यहां ध्यान रखिए की, यह बली प्रतिकात्मक होती है । इसमे चावल, गेहूं अथवा तिलके आटेसे नागकी आकृति बनाई जाती है और गत कालमें मारे गए नागको आवाहन किया जाता है ।
७. अवतार कार्यसे नागका संबंध : पृथ्वीपर जब अधर्म बढता है, तब दुर्जनों द्वारा अत्याधिक कष्ट दिए जाते हैं । इस कारण साधकोंके लिए साधना करना कठिन हो जाता है । तब दुर्जनोंका विनाश करने हेतु ईश्वर प्रत्यक्ष रूप धारण कर जन्म लेते हैं । ईश्वरके इसी प्रत्यक्ष रूपको अवतार कहते हैं । ईश्वरका यह अवतार रूप दुर्जनोंका विनाश कर धर्म संस्थापना करते हैं । यह धर्म संस्थापनाका कार्य ही अवतार कार्य है । जब ईश्वर अवतार लेते हैं, तब उनके साथ अन्य देवता भी अवतार लेते हैं एवं ईश्वरके धर्म संस्थापनाके कार्यमें सहायता करते हैं । उस समय नागदेवता भी उनके साथ होते हैं । जैसे, त्रेतायुगमें भगवान श्रीविष्णुने राम अवतार धारण किया तब शेषनाग लक्ष्मणके रूपमें अवतरित हुए । द्वापर युगमें भगवान श्रीविष्णुने श्रीकृष्णका अवतार लिया । उस समय शेष बलराम बने ।

(संदर्भ : सनातनका ग्रंथ ‘त्यौहार, धार्मिक उत्सव व व्रत’)

नागदेवताकी पूजा करनेकी पद्धति

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नागोंमें भी कई जातियां हैं । नागोंके नौ रूप प्रसिद्ध हैं । नवनागस्तोत्रमें बताए अनुसार वे रूप कुछ इसप्रकार हैं –

अनंतं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कंबलं ।
शंखपालं धृतराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा ।।
एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम् ।
सायंकाले पठेन्नित्यं प्रातःकाले विशेषतः।।
तस्य विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत् ।।
– नवनागस्तोत्र

इसका अर्थ है : अनंत, वासुकी, शेष, पद्मनाभ, कंबल, शंखपाल, धृतराष्ट्र, तक्षक एवं कालिया, इन नौ जातियोंके नागोंकी आराधना करते हैं । इससे सर्पभय नहीं रहता और विषबाधा नहीं होती ।

नागदेवताका पूजन

पीढेपर हलदीसे नौ नागोंकी आकृतियां बनाई जाती हैं । श्लोकमें बताए अनुसार अनंत, वासुकि इसप्रकार कहकर एक एक नागका आवाहन किया जाता है । उसके उपरांत उनका षोडशोपचार पूजन किया जाता है । उन्हें दूध एवं खीलोंका अर्थात् पफ रैसका नैवेद्य निवेदित किया जाता है । कुछ स्थानोंपर हलदीके स्थानपर रक्तचंदनसे नौ नागोंकी आकृतियां बनाई जाती हैं । रक्तचंदनमें नागके समान अधिक शीतलता होती है । नागके वास्तव्यके कारण बमीठेमें (नागके घरमें) सत्त्वप्रधान वलय तथा कण कार्यरत रहते हैं । बमीठेमें चारों ओर शक्ति कार्यरत रहती है ।

(संदर्भ : सनातनका ग्रंथ ‘त्यौहार, धार्मिक उत्सव व व्रत’)

बमीठे के पूजन से होनेवाले सुक्ष्म-स्तरीय लाभ

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नागपंचमीका त्यौहार मनाते समय शास्त्रने कौन-कौनसे निषेध बताए हैं ?

नागपंचमीका त्यौहार मनाते समय शास्त्रने कुछ निषेध भी बताए हैं । उदा.

१. कपडे सिलना, भूमि खोदना अथवा भूमिपर हल चलाना, ये कृत्य नहीं करने चाहिए ।

२. नागपंचमीके दिन कुछ भी काटना और तलना नहीं चाहिए तथा चूल्हेपर तवा नहीं रखना चाहिए । इसका कारण यह है  कि नागपंचमीके दिन वातावरणमें देवताओंके पवित्रक अर्थात् चैतन्यके अतिसूक्ष्म कण कार्यरत रहते हैं । वे भूमिके अति निकट आते हैं । इस दिन काटने जैसी कृति करनेसे रज-तमप्रधान स्पंदन निर्माण होते हैं । ये स्पंदन देवता तत्वके कार्यमे बाधा लाते हैं । साथ ही सबके लिए कष्टदायी होते हैं । इनका वातावरण पर भी परिणाम होता है । इस कारण नागपंचमीके दिन इस प्रकारकी कृति करनेवाला व्यक्ति समष्टि पापका भागी हो सकता है; इसलिए नागपंचमीके दिन काटना, तलना, भूमि खोदना, अथवा भूमिपर हल चलाना, ये कृत्य नहीं करने चाहिए ।

क्या अन्य दिनोंपर भी काटने अथवा तलने जैसे कृत्योंसे पाप लगता है ?

अन्य दिनोंपर देवताजन्य इच्छातरंगें भूमिके निकट नहीं होती । इस कारण काटने अथवा तलनेका कृत्य करनेसे समष्टि पाप लगनेकी मात्रा अल्प होती है; इसलिए कलियुगमें सुविधाकी दृष्टिसे इस कृत्यको स्वीकृत किया गया है । प्राचीन कालमें कंद- मूल अर्थात् रुट्स भूंजकर अथवा उबालकर खाते थे । इस प्रक्रिया में काटना, तलना ये कृत्य अंतर्भूत नहीं थे । इसकारण व्यक्तिके हाथों पाप होनेकी संभावना अत्यंत अल्प थी ।

नागपंचमीकी परंपराएं

नागपंचमीके दिन कुछ अन्य बातें भी परंपरागत रूपसे चली आई हैं । उनमेंसे एक है- झूला झूलना । नागपंचमीके दिन स्त्रीयोंके झूला झूलनेकी परंपरा प्राचीन कालसे चली आ रही है । झूला झूलते समय आकाशकी ओर  ऊपर जाते झूलेके साथ, अपने भाईकी उन्नति हो, एवं नीचे आते झूलेके साथ भाईके जीवनमें आनेवाले दुख दूर हों, ऐसा भाव रखा जाता है । इस परंपराका पालन आज भी देहातोंमें होता है । इस दिन स्त्रियां अपने भाईकी सुख-समृद्धि तथा उसकी उन्नतिके लिए उपवास रख नागदेवतासे प्रार्थना करती हैं । नागपंचमीके दिन जो बहन, भाईकी उन्नति हेतु ईश्वरसे उत्कंठापूर्वक एवं भावपूर्ण प्रार्थना करती है, उस बहनकी पुकार ईश्वरके चरणोंमें पहुंचती है । अतः प्रत्येक स्त्रीको इस दिन ईश्वरीय राज्यकी स्थापना हेतु प्रत्येक युवकको सद्बुद्धि, शक्ति एवं सामर्थ्य प्राप्त हो, ऐसी प्रार्थना करनी चाहिए ।
(संदर्भ : सनातनका ग्रंथ ‘त्यौहार, धार्मिक उत्सव व व्रत’)

नागपंचमीका आध्यात्मिक महत्त्व तथा संतोंका दृष्टिकोण

नागोंमें देवताका रूप देखनेके कारण पूजकको आध्यात्मिक लाभ होते हैं ।

१. वातावरणमें देवताओंके पवित्रक अर्थात् चैतन्यके अतिसूक्ष्मकण कार्यरत होते हैं । वे भूमिके अति निकट आते हैं । इस दिन काटने जैसे कृत्य करनेसे रज तमप्रधान स्पंदन निर्माण होते हैं । ये स्पंदन देवतातत्त्वके कार्यमें बाधा लाते हैं । साथही सबके लिए कष्टदायी होते हैं । इनका वातावरण पर भी परिणाम होता है ।

२. नागपंचमीके दिन संबंधित देवताजन्य इच्छा तरंगें भूमिकी ओर आकृष्ट होती हैं । इस कारण वायुमंडलमें नागदेवताजन्य तत्त्व अधिक मात्रामें होता है । इस दिन भूमिके निकट इच्छाजन्य देवतास्वरूप तरंगोंका घनीकरण अधिक मात्रामें होता है ।

३.  सनातन आश्रम देवद (पनवेल)के संत प.पू. पांडे महाराजजीका नागपंचमीके संदर्भमें दृष्टिकोण-  वे बताते हैं, ‘इस सृष्टिके समस्त जीव एवं जीवाणुओंकी निर्मिति इस सृष्टिके कार्यके लिए हुई है । इनका पूजन कर हम यह अनुभूत कर सकते हैं कि, ईश्वर इनके माध्यमसे कार्यरत है । नागपंचमीके दिन नागदेवताका पूजन करनेसे इस विशाल दृष्टिकोणकी सीख हमें मिलती है ।

(संदर्भ : सनातनका ग्रंथ ‘त्यौहार, धार्मिक उत्सव व व्रत’)

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