सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते ।।
शिव के मुख्यतः दो रूप बताए जातेे हैं । शिव का पहला रूप अर्थात सर्वव्यापी, पवित्र, ज्ञानमयी, आनंदमयी, चैतन्यस्वरूप अविकारी अर्थात निरंतर स्थिर परब्रह्म रूप । शिव का दूसरा रूप अर्थात निरंतर क्रियाशील शक्तितत्त्व । यह तत्त्व सृष्टि के सर्व सजीव-निर्जीव वस्तुओं के रूप में प्रकट होता रहता है । शक्ति का उद्गम स्पंदनों के रूपमें होता है । शक्ति शिव से भिन्न नहीं; अपितु वह शिव का ही अंग है । शक्ति अचेतन शिव को कार्यान्वित करती रहती है । उत्पत्ति-स्थिति-लय यह शक्ति का गुणधर्म है । उत्पत्ति, स्थिति एवं लय, तत्पश्चात पुनः उत्पत्ति, स्थिति एवं लय, इस प्रकार यह चक्र निरंतर चलता रहता है ।