१. झाडू कब लगाएं ?
‘यदि घर अस्वच्छ हो गया हो, तो नामजप भावपूर्वक करते हुए क्षात्रभाव से, किसी भी समय झाडू लगाएं । ऐसा करने से ही झाडू लगाने की कृति से निर्मित कष्टदायक स्पंदनों का देहपर प्रभाव नहीं होगा ।
कर्मबंधन के आचाररूपी नियम स्वयंपर लागू कर दिन में ही, अर्थात् रज-तमात्मक क्रिया का अवरोध करनेवाले समय में ही यह कर्म कर लें ।
१ अ. सायंकाल झाडू न लगाना
दिन में एक बार ही झाडू लगाएं । सायंकाल के समय झाडू न लगाएं; क्योंकि इस काल में वायुमंडल में रज-तमात्मक स्पंदनों का संचार अधिक मात्रा में होता है । इसलिए झाडू लगाने की रज-तमात्मक क्रिया से संबधित इस प्रक्रिया से घर में अनिष्ट शक्तियों के प्रवेश की आशंका अधिक रहती है । दिन में वायुमंडल सत्त्वप्रधान होता है, इसलिए झाडू लगाने की रज-तमात्मक क्रिया से निर्मित कष्टदायक स्पंदनोंपर यह वायुमंडल यथायोग्य अंकुश लगाए रखता है । अतः इस क्रिया से किसी को भी कष्ट नहीं होता ।
१ आ. त्रिकालसंध्या से पूर्व झाडू लगाना
संकलनकर्ता : दिनभर घर में एकत्रित हुआ कूडा संध्या के समय निकालने से, उसके उपरांत आनेवाले रज-तमात्मक स्पंदन वास्तु में कम मात्रा में आकृष्ट होते हैं । इसलिए संध्यासमय भी झाडू लगाते हैं । आपने ऐसा क्यों बताया है कि ‘सायंकाल में झाडू न लगाएं ?’
एक विद्वान : कलियुग के जीव रज-तमप्रधान हैं । अतः जहांतक हो सके, वे रज-तमात्मक स्पंदनों को आकृष्ट करनेवाले कर्म सायंकाल में न करें । सायंकाल में वायुमंडल में रज-तमात्मक तरंगों का संचार बढ जाता है । झाडू लगाने की घर्षणात्मक कृतिद्वारा भूमि से संलग्नता साध्य होती है । इससे पाताल के कष्टदायक स्पंदनों की गति में वृद्धि हो जाती है ।
कूडा बाहर फेंकने की कृति की अपेक्षा नाद के स्तरपर सूक्ष्म स्वरूप में वास्तु में रज-तमात्मक स्पंदनों के घूमते रहने की मात्रा अधिक हो जाती है । इसीलिए जहांतक संभव हो, त्रिकालसंध्या का समय बीतनेपर झाडू न लगाएं । अतः कहा गया है कि, ‘यथासंभव, सायंकाल में झाडू न लगाएं ।’ त्रिकालसंध्या से पूर्व झाडू लगाते समय उत्पन्न नाद से रज-तमात्मक तरंगें कम आकृष्ट होती हैं ।
ऐसा कहते हैं कि, त्रिकालसंध्या के समय घर में लक्ष्मी आती है । अर्थात् त्रिकालसंध्या से पूर्व झाडू लगाकर त्रिकालसंध्या के समय तुलसी के निकट दीप जलाने से शक्तिरूपी तरंगें दीप की ओर आकृष्ट होकर वास्तु में प्रवेश करती हैं । इस तेजदायी देवत्व के कारण सायंकाल के कष्टदायक स्पंदनों से रक्षण होता है ।’
– एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळ के माध्यम से, २६.१०.२००७, दोपहर ५.२०)
२. झाडू से कूडा कैसे निकालें ?
२ अ. झाडू लगाते समय कमर की दाहिनी ओर झुककर दाहिने हाथ में झाडू लेकर, पीछे से आगे की ओर कूडा धकेलते हुए ले जाएं ।
कमर झुकाने से होनेवाली प्रक्रिया : ‘कूडा निकालते समय कमर से झुकने से नाभिचक्रपर दबाव पडने से पंचप्राण जागृत होते हैं । घुटने झुकाकर कभी भी कूडा न निकालें; क्योंकि इस मुद्रा से घुटने के रिक्त स्थान में संग्रहित अथवा घनीभूत रज-तमात्मक वायुधारणा को गति प्राप्त होने की आशंका रहती है । इस मुद्रा से झाडू लगानेपर पाताल से वायुमंडल में ऊत्सर्जित कष्टदायक स्पंदन देह की ओर आकृष्ट होने का भय रहता है । इसलिए यथासंभव, देह में रज-तमात्मकता का संवर्धन करनेवाली ऐसी कृति न करें ।
दाहिनी ओर से झुकने से होनेवाली प्रक्रिया : दाहिनी ओर झुककर कूडा निकालने से देह की सूर्य नाडी जागृत रहती है तथा तेज के स्तरपर, भूमि से उत्सर्जित कष्टदायक स्पंदनों से रक्षण होता है ।’ – एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळ के माध्यम से, २६.१०.२००७, दोपहर ५.२०)
२ आ. पूर्व दिशा के अतिरिक्त अन्य किसी भी दिशा की ओर कूडा ढकेलें ।
‘पूर्व दिशा की ओरसे देवताओं की सगुण तरंगों का पृथ्वीपर आगमन होता है । कूडा रज-तमात्मक होता है, इसलिए पश्चिम से पूर्व की ओर कूडा ढकेलते समय कूडा और धूल का प्रवाह पूर्व दिशा में होता है तथा इसके माध्यम से रज-तम कण एवं तरंगों का प्रक्षेपण होता है । इससे पूर्व दिशा से आनेवाली देवताओं के सगुण तत्त्व की तरंगों के मार्ग में बाधा निर्माण होती है । अतः झाडू लगाते हुए पूर्व की ओर जाना अयोग्य है । पूर्व दिशा के अतिरिक्त अन्य किसी भी दिशा की ओर झाडू लगाते हुए जा सकते हैं ।’ – ईश्वर (कु. मधुरा भोसले के माध्यम से, २८.११.२००७, रात्रि १०.५५)
झाडू लगाते समय अंदर से बाहर की दिशा में, अर्थात् द्वार की दिशा में ढकेलते हुए आगे ले जाएं ।
२ इ. कूडा आगे ढकेलते समय झाडू को भूमि से विपरीत दिशा में रगडकर न ले जाएं ।
‘झाडू लगाते समय उसे आगे की ओर ढकेलते हुए ले जाएं । एक बार कूडा आगे करने के उपरांत झाडू को पुनः पीछे की ओर घिसते हुए झाडू न लगाएं; क्योंकि इस घर्षणात्मक क्रिया से भूमिपर घडी की सुइयों की विपरीत दिशा में घूमनेवाले गतिमान भंवरों की निर्मिति होती है । झाडू लगाते समय भूमि के निकट के पट्टे से पाताल से उत्सर्जित कष्टदायक स्पंंदन इन भंवरों में घनीभूत होते हैं । इस कारण कूडा निकालने के उपरांत भी सूक्ष्म दृष्टि से वास्तु में अशांति ही रहती है । अतः झाडू विपरीत दिशा में, पीछे ले जाकर कूडा न निकालें । प्रत्येक बार आगे से पीछे आते समय झाडू भूमिको बिना घिसे उठाकर पीछे ले जाएं, फिर उसे भूमिपर रखकर कूडा निकालें ।’ – एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळ के माध्यम से)
२ ई. झाडू भूमिपर न पटकें और न ही उसे बलपूर्वक घिसकर कूडा निकालें ।
‘कूडा निकालते समय झाडू भूमिपर मारने अथवा बलपूर्वक घिसकर कूडा निकालने जैसी कृतियों से कष्टदायक नाद उत्पन्न होते हैं । इससे पाताल के तथा वास्तु के कष्टदायक स्पंदन कार्यरत होते हैं । कालांतर से इन तरंगों का वातावरण में प्रक्षेपण आरंभ होता है एवं वास्तु में अनिष्ट शक्तियों का संचार भी बढता है । इसलिए ऐसी कृतियां न करें । उपरोक्त सभी कृतियां तमोगुणी वृत्ति की प्रतीक हैं ।’ – एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळ के माध्यम से)
३. कूडे का विनियोग कैसे करें ?
‘कूडा निकालने के उपरांत उसे घर के बाहर रखे कूडेदान में डालकर अग्नि की सहायता से जलाएं ।
कूडा यदि तत्काल बाहर फेंकना संभव न हो तो घर के कोने में रखे कूडेदान में फेंकें । कोने में विद्यमान इच्छाशक्तितत्त्वात्मक तरंगों की घनीभूत धारणा में कूडे की कष्टदायक स्पंदनों को एकत्र करने की क्षमता रहती है । इससे कूडे के कष्टदायक स्पंदन सर्वत्र नहीं फैलते ।’
– एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळ के माध्यम से)
संदर्भ पुस्तक : सनातन का सात्विक ग्रन्थ ‘आदर्श दिनचर्या (भाग १) स्नानपूर्व आचार एवं उनका अध्यात्मशास्त्रीय आधार‘