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बिछौने के प्रकार और उनसे प्राप्त लाभ एवं हानि

        आजकल हम विज्ञापनों में विविध प्रकार के बिछाने देखते हैं, उनमें से जो हमें पसंद आ जाए हम उसे क्रय कर लेते हैं । किन्तु आध्यात्मिक स्तर पर क्या हमारे द्वारा चयनित बिछावन एवं पलंग हमारे लिए लाभदायक है अथवा नहीं, इसका विचार हम कभी नहीं करते, इस लेख से हम समझेंगे कि हमें किस प्रकार के बिछौने का प्रयोग करना चाहिए तथा उनसे होनेवाले लाभ क्या हैं, अनुचित प्रकार के बिछौने से होनेवाली हानि से बचने हेतु क्या करना आवश्यक है इत्यादि ।

        सोने हेतु प्रयुक्त वस्तु को ‘बिछौना’ अथवा ‘शय्या’ कहते हैं । प्राचीन काल से मनुष्य निद्रा के लिए भूमि से लेकर स्वर्ण के रत्न जडित मंच तक विविध वस्तुओें का प्रयोग करता आया है । ऋग्वेद, तैत्तरीय ब्राह्मण, अथर्व वेद, वाजसनीय संहिता जैसे प्राचीन वाङ्मयों में इसका वर्णन पाया जाता है । सीता की खोज में हनुमान लंका गए थे, तब उन्होंने रावण का शयनकक्ष देखा, जिसका विस्तृत वर्णन श्री वाल्मीकि रामायण के सुंदरकांड में मिलता है ।

१. बिछौने के प्रकार

अ. विविध वस्तुओं से निर्मित विविध प्रकार की शय्याओं को अलग-अलग नामों से संबोधित किया जाता है, उदा. ‘तल्प’ अर्थात मंचक अथवा बिछौना, ‘नड्वला’ अर्थात बेंत का बिछौना, बांस अथवा बेंत से बना पलंग अर्थात ‘बिडालमंचक’, आजकल का ‘सोफा-कम-बेड’ ।

आ. राजा-महाराजाओं के लिए हस्तिदंत से बने, कलाकारी युक्त, स्वर्ण से मढे एवं रत्न जडित पलंग बनाए जाते थे । तदुपरांत उस पर कपास एवं कोमल पंख भरकर बनाए गद्दे, उस पर कौशेय (रेशमी) वस्त्र (पलंगपोश) एवं फूलों का प्रयोग किया जाता था ।

इ. साधारण व्यक्ति ऊन, कपास, घास, पत्ते, कोमल पंख अथवा वल्कल (वृक्ष की अंतर्छाल) भरकर गद्दे एवं तकिए बनाते थे । पलंग पर टाट की चटाइयों का भी प्रयोग किया जाता था ।

ई. ऐसा होते हुए भी, प्राचीन काल से लेकर वर्तमान काल तक सामान्य लोग भूमि पर बिछौना बिछाकर सोते हैं ।

उ. शास्त्रों में कहा गया है कि साधु, ब्रह्मचारी, वानप्रस्थाश्रमी एवं विधवा को पलंग पर सोने की अपेक्षा भूमि पर मृगाजिन डालकर सोना चाहिए ।

२. गद्दे पर सोने और केवल भूमि पर सोने के लाभ एवं हानि तथा पलंग पर सोना

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अ. गद्दे पर सोए व्यक्ति की देह से प्रक्षेपित रज एवं तम तरंगों के कारण व्यक्ति के आसपास का वातावरण दूषित होना : गद्दे पर सोए व्यक्ति की देह से तमो-गुणी तरंगें प्रक्षेपित होती हैं । ये तरंगें व्यक्ति के सर्व ओर फ़ैलने से तमो-गुणी आवरण निर्मित होता है । व्यक्ति की देह से प्रक्षेपित रजो-गुणी तरंगें व्यक्ति के सर्व ओर घूमती हैं । इन दोनों तरंगों के कारण व्यक्ति के सर्व ओर का वातावरण दूषित होता है ।

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आ. भूमि पर सोए व्यक्ति की देह में भूमि की सात्त्विक तरंगों के प्रवेश करने से उसमें विद्यमान रजो-तरंगें ऊर्ध्व दिशा में प्रक्षेपित होकर नष्ट होना : भूमि पर सोए व्यक्ति द्वारा भूमि से प्रक्षेपित सात्त्विक तरंगें ग्रहण की जाती हैं और उसकी देह से प्रक्षेपित तमो-गुणी तरंगें भूमि द्वारा ग्रहण की जाती हैं । व्यक्ति की देह में भूमि में विद्यमान सात्त्विक तरंगों के प्रवेश से व्यक्ति की देह की रजो-गुणी तरंगों को गति प्राप्त होती है और वे ऊर्ध्व दिशा में प्रक्षेपित होती हैं । वायुमंडल में प्रवेश करने के उपरांत ये तरंगें नष्ट होती हैं ।

इ. जीव का आध्यात्मिक स्तर ५० प्रतिशत से न्यून हो, तो भूमि पर न सोकर गद्दे पर अथवा पलंग पर सोने से पाताल से हो रहे अनिष्ट शक्तियों के आक्रमणों से रक्षा होना : ५० प्रतिशत से निम्न आध्यात्मिक व्यक्ति के लिए भूमि पर सोने से, रात्रि में पाताल से बडी मात्रा में होने वाले अनिष्ट शक्तियों के आक्रमणों का सामना करना कठिन होता है । कलियुग में पाताल से अनिष्ट शक्तियां अधिक मात्रा में आक्रमण करती हैं । इसलिए कलियुग के जीव का आध्यात्मिक स्तर ५० प्रतिशत से न्यून हो, तो उसे भूमि पर न सोकर, गद्दे अथवा पलंग पर सोना चाहिए । इससे पाताल से होनेवाले आक्रमणों से उसकी रक्षा हो सकती है । पलंग के नीचे की रिक्तिके कारण पलंग पर सोए व्यक्ति पर रात भर आध्यात्मिक उपाय होते हैं

        यहां ध्यान देनेयोग्य सूत्र यह है कि कलियुग के जीव का आध्यात्मिक स्तर न्यून है । इसलिए भूमि पर सोने से पाताल से होने वाले आक्रमणों का कष्ट, बिछौने पर सोने से होने वाले आध्यात्मिक कष्ट की अपेक्षा अधिक हानिकारक है । इसीलिए अल्प आध्यात्मिक स्तर के जीवों का भूमि पर नहीं अपितु गद्दे पर अथवा पलंग पर सोना उचित है । ऋषियों की (अच्छे आध्यात्मिक स्तरवालों की) अंगभूत सात्त्विकता होती है । इसलिए भूमि पर सोने के उपरांत भी पाताल के आक्रमणों से उनकी रक्षा होती है; साथ ही वे भूमि में विद्यमान सात्त्विक तरंगें भी ग्रहण कर सकते हैं ।

        प्रत्येक व्यक्ति में सत्त्व, रज और तम, ये त्रिगुण होते हैं । व्यक्ति के साधना अर्थात ईश्वर प्राप्ति हेतु प्रयास आरंभ होने पर उसमें विद्यमान रज-तम गुणों की मात्रा घटने लगती है और सत्त्वगुण की मात्रा बढने लगती है । सत्त्वगुण की मात्रा पर आध्यात्मिक स्तर निर्भर होता है । व्यक्ति के सत्त्वगुण की मात्रा जितनी अधिक होगी, उतना उसका आध्यात्मिक स्तर अधिक होता है । सामान्य व्यक्ति का आध्यात्मिक स्तर २० प्रतिशत होता है, जबकि मोक्ष प्राप्त व्यक्ति का आध्यात्मिक स्तर १०० प्रतिशत होता है और तब वह त्रिगुणातीत हो जाता है ।

३. भूमि, पलंग, बांसकी चटाई एवं दर्भासन पर सोना

अ.  भूमि पर सोते समय भूमि से प्रक्षेपित प्रत्यक्ष जडत्वदर्शक कष्टदायी स्पंदनों का सामना करना पडता है।

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आ. पलंग पर सोते समय मध्य मंडल के जडत्वदर्शक वायु रूपी कष्टदायी स्पंदनों का सामना करना पड़ता है। पलंग के नीचे की रिक्ति के कारण देह की प्रत्यक्ष जडत्वदर्शक पाताल युक्त धारणा से रक्षा होती है । इस रिक्ति को अगरबत्ती अथवा धूप दिखाकर उसमें विद्यमान देवत्व जागृत करने से मध्य मंडल में विद्यमान सात्त्विक तरंगों का जीव को लाभ प्राप्त होता है । इस रिक्ति में कुछ मात्रा में जडत्वदर्शक कष्टदायी वायुरूपी तरंगें घनीभूत होने की संभावना होती है, अत: इन तरंगों से रक्षा हेतु पलंग पर विभूति फूंककर सोना, तथा देवता का सात्त्विक चित्र पलंग के नीचे रखना, इस प्रकार के उपाय करने चाहिए ।

इ. यदि हम बांस की चटाई पर सोएं तो कुछ मात्रा में भूमि से प्रक्षेपित जडत्वदर्शक कष्टदायी तरंगें बांस की चटाई की रिक्ति में घनीभूत होने की संभावना हो सकती है। विभूति फूंककर अथवा तीर्थ छिडककर भूमि की शुद्धि कर सोना, नामजप का मंडल बनाकर तथा ‘अंतर्मन में नामजप निरंतर चलता रहे’, ऐसी प्रार्थना कर सोने से अधिक लाभ मिलता है ।

ई. दर्भासन पर सोते समय तेज से निर्मित दर्भासन के घर्षण युक्त नाद का कष्टदायी स्पंदनों से युद्ध  होता है ; परिणामस्वरूप शरीर भारी अथवा उष्ण होता है व उसके कारण अस्वस्थता लग सकता है ।

        कलियुग में रज-तमात्मक तरंगों का प्रकोप बढने के कारण, किसी भी प्रकार से सोना, तमोगुणी निद्रा में ही आता है । अतः निरंतर जप कर स्वयं में विद्यमान देवत्व बढाने पर ही बल देना और सभी स्तर की अनिष्ट शक्तियों से अपनी रक्षा करना आवश्यक है ।

४. आदर्श बिछौना

अ. आदर्श बिछौना स्वच्छ, कोमल, सुखदायी एवं ऋतु के अनुसार होना चाहिए ।

आ. सोने के लिए पलंग हो, तो उसकी ऊंचाई घुटने तक होनी चाहिए । उससे किसी भी प्रकार की ध्वनि न आए । पलंग से होने वाली ध्वनि के कारण उसकी ओर अनिष्ट शक्तियां आकर्षित होती हैं एवं पलंग पर सोए व्यक्ति को उससे कष्ट हो सकता है ।

संदर्भ ग्रंथ : सनातन का ग्रन्थ ‘शांत निद्राके लिए क्या करें ?

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