देवालय, अर्थात देवता का घर, जहां देवता प्रत्यक्ष वास करते हैं । देवालय में जाने से हमारी इच्छाआें की पूर्ति होती है और मानसिक शांति मिलती है । कहा भी जाता है, जहां भाव है वहां भगवान हैं । श्रद्धालु किसी भी भाव से देवता की पूजा करें, उसे ईश्वरीय कृपा की अनुभूति अवश्य होती है । वास्तविक, साधारण मनुष्य में आवश्यक भाव नहीं होता । इसलिए, उसे शास्त्रोचित पद्धति से देवता के दर्शन करने चाहिए । इस लेख में देवालय की प्रत्येक सीढी को नमस्कार करना, प्रत्येक सीढी को स्पर्श करने का महत्त्व एवं दर्शनार्थी द्वारा देवालय की सीढी को दाहिने हाथ से स्पर्श कर वह हाथ आज्ञाचक्र पर रखने से हुए सूक्ष्म-स्तरीय लाभ इसकी जानकारी दी है ।
१. देवालय की प्रत्येक सीढी को नमस्कार करना
देवालय में प्रवेश करने के लिए यदि सीढियां हों, तो उन्हें चढते समय प्रत्येक सीढी को दाहिने हाथ की उंगलियों से स्पर्श कर उन उंगलियों से आज्ञाचक्र को (छठा चक्र, जो दोनों भ्रुकुटियों के मध्य पर होता है) स्पर्श करें, पश्चात आगे बढें । ऐसा कर, हम देवालय की पावनभूमि से चैतन्य ग्रहण कर सकते हैं । सीढियों को नमन करनेसे, उस भूमिका चैतन्य सक्रिय होकर जीव के शरीर की ओर आकर्षित होता है । इससे उसकी देहपर बना रज-तम कणों का आवरण हटने में सहायता होती है । सीढियां जीव को द्वैतसे अद्वैत, अर्थात ईश्वर की ओर ले जाने की कडी भी हैं ।’
२. दर्शनार्थी द्वारा देवालय की सीढी को दाहिने हाथ से स्पर्श कर नमस्कार करने के लाभ दर्शानेवाला चित्र
सूक्ष्म-ज्ञानसंबंधी चित्रमें स्पंदनोंकी मात्रा : भाव ४ प्रतिशत, देवतातत्त्व १.२५ प्रतिशत, चैतन्य १ प्रतिशत एवं शक्ति २ प्रतिशत
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अ. देवालय की सीढी को स्पर्श करने से अहं घटना, देवता के दर्शन शीघ्र होना पश्चात शरणागत भाव जागृत होना
‘व्यक्ति जब देवालय की सीढियों को स्पर्श करता है, तब उसका अहं घटने लगता है । अहं घटने से ‘जीवभाव’ (‘मैं पन’) घटता है । इससे उसे देवता की अनुभूति होती है । यह सब जीव के कारण नहीं, अपितु भगवान ही अपने दर्शन करवाते हैं । जिस प्रकार, कर्पूर के जलने के पश्चात कुछ भी शेष नहीं रहता, उसी प्रकार अहं नष्ट होने पर जीव में कुछ भी शेष नहीं रहता । इसलिए उसे देवता के दर्शन होकर उसमें शरणागत भाव जागृत होता है ।
आ. इस प्रक्रिया के अंतिम चरण में जीव अंतर्मुख होता है एवं माया के विश्व से ब्रह्म की ओर प्रस्थान करता है ।
इ. सूर्यनाडी कार्यरत होकर देहपर आया काली शक्ति का आवरण दूर होना : जब व्यक्ति देवालय की सीढियों को स्पर्श करने के लिए झुकता है, उस समय उसकी सूर्यनाडी कार्यरत होती है, जिससे उसकी देह पर आया काली शक्ति का आवरण दूर होता है ।
ई. ईश्वरप्राप्ति के ध्येय का स्मरण होना : देवालय की सीढी को स्पर्श करने से व्यक्ति में आनेवाली विनम्रता से उसे इस बात का ज्ञान होता है कि ‘इसी प्रकार एक-एक सीढी चढते हुए ईश्वर तक पहुंचना है ।’ सीढी के स्पर्श से व्यक्ति में नम्रता, विनयशीलता, लीनता तथा कालांतर में ईश्वर से एकरूपता भी आती है ।
उ. व्यक्ति प्रत्येक सीढी पर अपने षड्रिपुओं का नाश कर ईश्वरप्राप्ति की दिशा में बढने हेतु गुणों की सीढियां चढने लगता है एवं अंत में उसे देवतादर्शन अर्थात मोक्ष की प्राप्ति होती है ।
ऊ. भूमि-तत्त्व प्राप्त होना : देवालय की सीढियों को स्पर्श करने का तात्पर्य है, देवालय में स्थित देवता के दर्शन करने से पहले भूमाता के दर्शन कर उनका पूजन करना और आर्शीवाद लेना । इससे व्यक्ति को भूमि-तत्त्व मिलता
है ।’
३. दर्शनार्थी द्वारा देवालय की सीढी को दाहिने हाथ से स्पर्श कर वह हाथ आज्ञाचक्र पर छूने के सूक्ष्म-स्तरीय लाभ दर्शानेवाला चित्र
सूक्ष्म-ज्ञानसंबंधी चित्र में स्पंदनों की मात्रा : भाव २ प्रतिशत, चैतन्य २.२५ प्रतिशत, शक्ति १ प्रतिशत एवं कष्टदायक शक्ति दूर होना १ प्रतिशत
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अ. दर्शनार्थी द्वारा सीढी को दाएं हाथ की उंगलियों से स्पर्श कर उन्हें आज्ञाचक्र पर रखने से देवालय की सीढी से प्रक्षेपित होनेवाला भू-तत्त्व उंगलियों के माध्यम से पंचतत्त्व के स्तरपर देह में प्रवेश करता है ।
आ. आज्ञाचक्र द्वारा ग्रहण किए गए भू-तत्त्व से दर्शनार्थी के शरीर, मन एवं बुद्धि पर पाताल के मांत्रिकों द्वारा निर्मित कष्टदायी आवरण हट जाता है । परिणामस्वरूप, दर्शनार्थी देवता से प्रक्षेपित आशीर्वादरूपी तरंगें सहजता से ग्रहण कर पाता है ।
इ. दर्शनार्थी के मन में आनेवाले अनावश्यक विचार एवं इन विचारों को बढानेवाली बुद्धि आज्ञाचक्र से संबंधित होती है । अतएव, देवालय की सीढी को स्पर्श कर उंगलियों को आज्ञाचक्र पर रखने से विचारों की मात्रा न्यून होती है ।’
४. क्या देवालय की सीढी को एक हाथ से नमन करना उचित है ?
देवालय की सीढियां चढते समय उन्हें एक हाथ से स्पर्श कर नमस्कार करना, अल्पावधि में संभलकर आगे बढने का एक सात्त्विक कृत्य है । सीढियां चढना एक रजोगुणी कार्य है, जिससे जीव की देह में रजोगुण सक्रिय होता है । एक हाथ से, अर्थात दाहिने हाथ की उंगलियों से स्पर्श करने पर पावन भूमि की सात्त्विक एवं शांत तरंगें हाथ की उंगलियों के माध्यम से शरीर में जाती हैं । इससे जीव की देह का रजोगुण जागृत सूर्यनाडी के माध्यम से नियंत्रण में रहता है । अर्थात सूर्यनाडी के कार्य का क्षणिक शमन संभव होता है । इस प्रक्रिया में जीवको रजोगुण के माध्यम से सात्त्विकता का संवर्धन सिखाया जाता है । इसीलिए, उसके अनुसार उचित आचरण करना श्रेयस्कर है ।’
संदर्भ – सनातन-निर्मित ग्रंथ ‘देवालयमें दर्शन कैसे करें ? (भाग १)‘ एवं ‘देवालयमें दर्शन कैसे करें ? (भाग २)‘