आलोचना : यूरोप की रिफॉर्मेशन (धर्मसुधार का आंदोलन) एवं वैदिक प्रणाली के वारकरी पंथ में समानता है ! – स्टैलिनिस्ट इतिहासकार
खंडन : कैथोलिक धर्मगुरु तिसरे पोप ने ८वें हेनरी राजा को बहिष्कृत किया, तब उसने प्रोटेस्टंट पंथ की स्थापना की। उसके लिए उसने चर्च ऑफ इंग्लैंड की स्थापना की। प्रोटेस्टंट केवल बाइबल को ही अपना धर्मग्रंथ मानते हैं; जबकि कैथोलिक बाइबल के साथ अन्य ग्रंथों को भी मानते हैं। प्रोटेस्टंट मानते हैं कि, जिसकी ईश्वर के प्रति श्रद्धा है, उसकी रक्षा तो होती ही है; किंतु कैथौलिकों की मान्यता के अनुसार, आस्था के साथ ही जिसका बाप्तिस्मा हुआ है, जिसने प्रायश्चित्त किया है, उसीकी रक्षा होती है ! प्रोटेस्टंट पोप को नहीं मानते। प्रोटेस्टंट और कैथोलिकों में बार-बार संघर्ष पाया जाता है।
प्रोटेस्टंट पंथ की भांति वैदिक प्रणाली का वारकरी पंथ तो मूल सनातन वैदिक हिन्दू धर्म के २ टुकडे होकर उत्पन्न नहीं हुआ है। प्रोटेस्टंट एवं कैथोलिकों में जिस प्रकार से संघर्ष हुआ, उस प्रकार का संघर्ष अथवा भेद हिन्दू धर्म के वारकरी पंथ और अन्य पंथों के बीच नहीं हुआ। वारकरी पंथ भक्तिभाव का मार्ग है। ईश्वर ने गोपियों की रासलीला के माध्यम से समाज को यही मार्ग दिखाया है। उसीका ही पुनर्जिवन वारकरी पंथ में है। यहां किसी भी प्रकार का नवनिर्माण नहीं है !
‘सर्वत्र की स्थिति हमारी संस्कृति की भांति ही है’, ऐसा दिखाकर अपनी संस्कृति का समर्थन करने हेतु इन इतिहासकारों ने यह प्रयास किया है। अतः ‘यूरोप की रिफॉर्मेशन (धर्मसुधार का आंदोलन) एवं वैदिक प्रणाली के वारकरी पंथ में समानता है, ऐसा कहना कितना मूर्खतापूर्ण है, यही समझ में आता है !’
– गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी (साप्ताहिक ‘सनातन चिंतन’, २६.५.२०११)
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात