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५ सहस्र वर्ष उपरांत मैं हिन्दू धर्म में ‘श्रेष्ठ हिन्दू’ ऐसा परिवर्तन ला रहा हूं ! – अशोक पाटोळे

पूरे जगत के लिए वंदनीय हिन्दू धर्म अनादि है, अनंत है !

आलोचना : ‘मैं ५ सहस्र वर्ष उपरांत हिन्दू धर्म में ‘श्रेष्ठ हिन्दू’ ऐसा परिवर्तन ला रहा हूं। मुझे हिन्दू धर्म पूजनीय है। इसलिए मैं उसे पूरी तरह परिवर्तित नहीं करना चाहता !’ – अशोक पाटोळे

खंडन : हिन्दू धर्म के मूल्यों में परिवर्तन करने की इच्छा रखनेवाले व्यक्ति के विचारों में चैतन्य न होने के कारण वे कुछ दिनों से अधिक नहीं टिक सके ! अशोक पाटोळे ने २६.१०.२००१ अर्थात दशहरे के दिन ‘जातिभेद रहित श्रेष्ठ हिन्दू धर्म’ की घोषणा तो की; परंतु वस्तुस्थिति यह है कि, उन्हें शिष्य मिलना तो दूर, आज ९ वर्ष उपरांत उनके ये विचार भी समय की कसौटी पर नहीं टिक सके !

पूरे जगत के लिए वंदनीय हिन्दू धर्म अनादि है ! वेदों से लेकर अनेक साधु-संत, ऋषि-मुनि एवं तत्त्वज्ञ जैसे अनेक लोगों के वाङ्मय में हिन्दू धर्म की अद्वितीयता विशद की गई है। ऐसे महान हिन्दू धर्म के मूल्यों में परिवर्तन लाने हेतु कुछ लिखना अथवा उसके लिए सक्रिय होना उद्दंडता ही है ! ऐेसा ‘कुछ लिखने अथवा करने’, की इच्छा होने का महत्त्वपूर्ण कारण है हिन्दुओं का धर्म के विषय में घोर अज्ञान ! ‘अशोक पाटोळे’ भी धर्म के विषय में ऐसा ही एक अज्ञानी व्यक्तित्व है !

और यहां एक महत्त्वपूर्ण सूत्र यह है कि, हिन्दू धर्म में शाश्वत तत्त्वज्ञान के हर अंग एवं उपांग का भान रखनेवाले एवं उसकी अनुभूति प्राप्त संत ही खरे धर्माधिकारी होते हैं। इसलिए वे धर्म संबंधी मूल्यों एवं मूलभूत मानसिकता में नहीं, अपितु आचारधर्म में काल के अनुसार थोडा-बहुत परिवर्तन कर पाते हैं !

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