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हिन्दू धर्म ने लोगों को दैवाधीन एवं आलसी बनाया है !

टिपणी : हिन्दू धर्म ने लोगों को दैवाधीन एवं आलसी बनाया है ! – आधुनिकतावादी

खंडन : १. हिन्दू धर्म ने लोगों को दैवाधीन, अर्थात प्रारब्धाधीन नहीं किया है, अपितु यह सिखाया है कि, ‘यह बात सत्य है कि, जीवन में कुछ बातें प्रारब्धाधीन रहती है !’ साथ ही यह भी सिखाया है कि, ‘साधना करने से प्रारब्ध सुसह्य होता है तथा प्रारब्ध भुगत के ही समाप्त करना पडता है। गत जन्म में कुछ किया है, उसे इस जन्म में भुगतना पड रहा है, यह ज्ञात होने के कारण मनुष्य इस जन्म में सदाचरणी होता है। साथ ही हिन्दू धर्म ने यह भी सिखाया है कि, ‘यदि कर्म-फलन्याय लागू नहीं करना है, तो निष्काम कर्म करना आवश्यक है !’ कहां भोगवादी पश्चिमी संस्कृति का गुणगान करनेवाले आधुनिकतावादी और कहां ‘जो सामने दिखाई देगा वह कर्तव्य तथा जो भुगतना पडे वह प्रारब्ध’, ऐसा सिखानेवाले सनातनी !

२. जो धर्म सनातन है, अर्थात जो शाश्वत की प्राप्ति करवाता है, जो नित्य नूतन है तथा जो धर्म ईश्वर का ज्ञान देता है, वह धर्म आलसी कैसे बना सकता है ? सााथ ही जो हिन्दू धर्म कनिष्ठ माने जानेवाले रज-तम गुणों का नाश करता है तथा जो मानव को साधक बनाता है, वह हिन्दू धर्म आलसी कैसे हो सकता है ?

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