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हिन्दुओं के धर्मग्रंथों में ‘हिन्दू’ शब्द नहीं है, ऐसा कारण बताकर ‘हिन्दू राष्ट्र’ एवं ‘हिन्दुत्व’ का विरोध करनेवाली लेखिका के विचारों का खंडन

२२.८.२०१४ को महाराष्ट्र टाईम्स में ‘बहुतांची अंतरे’ स्तंभ में ‘यांना कोण सांगणार ? (अर्थ : इन्हें कौन समझाए ?)’ इस शीर्षक से उज्ज्वला सूर्यवंशी का लेख प्रकाशित हुआ है। पुराण, महाभारत आदि ग्रंथों में ‘हिन्दू’ शब्द का उल्लेख न होने को आधार बताकर उन्होंने मोहन भागवत के ‘हिन्दू राष्ट्र’ एवं ‘हिन्दुत्व’ का विरोध किया है !

श्री. अनंत बाळाजी आठवले

किसी भी भाषा में नए शब्द आते ही रहते हैं। पुराणकाल तो दूर, केवल २०१५ वर्ष पूर्व ईसाई, क्रिश्चयन ये शब्द नहीं थे। संभवतः १ सहस्त्र ५०० वर्ष पूर्व ‘इस्लाम’ शब्द भी नहीं होगा। १०० से १२५ वर्ष पूर्व ‘रेडियो’, ‘टेलीविजन’ ये शब्द भी नहीं थे, तो ‘हिन्दू’ शब्द के संदर्भ में आपत्ति किसलिए ? पुराण का ही प्रमाण देना चाहें, तो सर्वत्र प्रचलित शब्द ‘इंडिया’ भी पुराण में नहीं तथा प्रस्तुत लेखिकाद्वारा उल्लेखित ‘यदा यदा हि धर्मस्य’ गीता के इस श्लोक में ‘भारत’ शब्द अर्जुन के संदर्भ में उपयोग किया हुआ है, देश के लिए नहीं !


आलोचना : वेदों में सनातन धर्म को ‘हिन्दू’ नाम नहीं है अथवा वह शब्द वेद में नहीं है, इसलिए ‘हिन्दू’ शब्द का उपयोग न करें !

खंडन : वेदों में ‘हिन्दू’ शब्द नहीं है, इसलिए उसका आस्तित्व ही अस्वीकार करना अनुचित है,

क्योंकि . . .

१. कोई बालक जन्म लेता है, तब उसका कोई नाम नहीं होता। आगे उसका नामकरण करने पर उसे नाम प्राप्त होता है। उसका नक्षत्र के आधार पर रखा नाम उससे अलग हो सकता है। जैसे किसी बालक का नाम ‘विजय’ है, तो बचपन में माता-पिता उसे ‘विजू’ के नाम से पुकारते हैं। बाद में सामाजिक प्रतिष्ठा बढने पर उसे ‘विजयप्रसाद’ कहते हैं। आगे उसे बच्चे होने पर उसे ‘बाबा’ कह कर पुकारते हैं। इस प्रकार जन्म लेते ही यह ‘विजय’ बाबा के नाम से नहीं पहचाना जाता। हिन्दू धर्म के संदर्भ में वेदों में ‘हिन्दू’ शब्द न होने पर भी आगे इस धर्म को हिन्दू नाम रखा गया़, तो वह अनुचित है ऐसा कहना निरर्थक है !

२. वेदों में सिमेंट के घर एवं मोटरगाडियों का उल्लेख नहीं है; परंतु आज भी लोग इसे मानते हैं !

३. वेद का ज्ञान गूढ है। १९ वीं शताब्दी में पूरी पीठ के शंकराचार्य स्वामी भारती कृष्णतीर्थ ने इन वेदों के माध्यम से ही वैदिकी गणित का शोध किया। किसी को भी इससे पूर्व गणित के सूत्र ज्ञात नहीं थे। तब तक गणित वेदांग है यह कितने लोगों को ज्ञात था ?

वेदों का केवल शब्दार्थ समझने से नहीं चलेगा। उसे समझने के लिए आध्यात्मिक पात्रता भी आवश्यक है। बिना पात्रता के केवल ‘हिन्दू’ शब्द वेदों में नहीं है, ऐसी खिलवाड करने में कोई अर्थ नहीं है !

पू. डॉ. चारुदत्त पिंगळे, राष्ट्रीय मार्गदर्शक, हिन्दू जनजागृति समिति (३१.३.२०१५)

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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