संत सावता महाराज अपने खेत में सब्जी एवं अन्य बागबानी फसलें करते समय प्रभु के नामस्मरण में इतने लीन हो जाते थे कि उनको प्रभुकर्म करते समय आत्मानंदकी ही अनुभूति होती थी। तब उनको प्रभु का दर्शन होता था ! – प.पू. परशराम पांडे महाराज
कांदा, मुळा भाजी । अवघी विठाई माझी ॥
लसण मिरची कोथंबिरी । अवघा झाला माझा हरि ॥
स्वकर्मात व्हावे रत । मोक्ष मिळे हातो हात ॥
सावत्याने केला मळा । विठ्ठल देखियला डोळा ॥
गृहस्थि जीवन के निहित कर्मों को विठ्ठलस्वरूप में करते रहने को ही, संत सावता महाराज, ‘कांदा, मुळा भाजी । अवघी विठाई माझी ॥’ (प्याज प्याज मूला सब्जी। यही विठाई मेरी॥) ऐसा कहते हैं !
सावत्या माळ्याने हो, माळ्याने लाविला मळा ।
प्रेमभक्तीचा मळा लावूनी नाम ठेविले ‘विठ्ठल’ मळा ॥
संत सावता महाराज (संत सावता माली) का जीवनकाल वर्ष १२५० से १२९५ का है। कर्तव्य एवं कर्म करते रहना ही वास्तविक ईश्वरसेवा है’, ऐसे प्रवृत्तिमार्ग की शिक्षा देनेवाले संत ! वारकरी संप्रदाय में निहित एक वरिष्ठ एवं श्रेष्ठ संत, ऐसी उनकी ख्याती है। श्री विठ्ठल ही उनके परमदेवता थे। वे कभी पंढरपुर नहीं गए, अपितु प्रत्यक्षरूप से श्री विठ्ठल ही उनसे मिलने आ गए। फूल, फल, सब्जियों की खेती करना उनका पारंपरिक व्यवसाय था। एक अभंग में वे कहते हैं, ‘‘हमारी बागबान की जाति, खेत लगाएंगे सींचकर।’ लौकिक जीवन में कर्तव्यकर्म करते-करते शरीर, वाणी एवं मन से ईश्वरभक्ति करना संभव होता है। और वह सभी का अधिकार है ! इसके लिए ‘न लगते हैं परिश्रम, नहीं होता संकट, नामस्मरण का मार्ग वैकुंठ का’, ऐसा वे कहते थे। उन्होंने धार्मिक उद्बोधन एवं ईश्वरभक्ति के प्रसार कार्य का अत्यंत निष्ठा के साथ एवं व्रत के रूप में पालन किया। उनके व्यक्तित्व में समरसता एवं अलिप्तता का एक विलक्षण संतुलन प्रतीत होता है !
आज के दिन उनकेद्वारा रचित केवल ३७ अभंग (भक्तिगीत) ही उपलब्ध हैं। अरण, तहसिल माढा, जिला सोलापुर में आषाढ कृष्ण पक्ष चतुर्दशी, शके १२१७ में (१२ जुलाई १२९५) को संत सावता महाराज अनंत में विलीन हो गए। आज भी पंढरपुर के श्री विठ्ठल की पालकी वर्ष में एक बार उनसे विशेषरूप से मिलने आती है !
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात