हाल ही में मुंबई उच्च न्यायालय के याचिका का क्रमांक Civil PIL – 173/2010 निर्देशानुसार मार्ग(रास्ते) उत्सव तथा प्रार्थना के लिए न होकर परिवहन एवं पैदल चलनेवालों के लिए हैं । परंतु महाराष्ट्र सरकार ने दहीहंडी, गणेशोत्सव जैसे हिन्दुआें के उत्सवों की अवधि में सभी महानगरपालिकाआें को ध्वनिप्रदूषण नियंत्रण हेतु तथा मार्ग पर उन्हें न मनाए जाने को लेकर कुछ कठोर कदम उठाने के आदेश दिए हैं ।
त्यौहार एवं उत्सवों पर विवेक से विचार न कर प्रतिबंध लगाना यह जनता के जीवन से आनंद छीन लेने का ही एक प्रकरण है । इसके साथ ही न्यायालय द्वारा दिए गए निर्देश केवल हिन्दू धर्म के त्यौहारों के लिए नहीं हैं; किंतु महाराष्ट्र राज्य सरकार ने उसका पालन केवल हिन्दुआें के त्यौहारों के विषय में करने का एकतरफा निर्णय लिया है । मार्ग पर कहीं भी, कभी भी प्रार्थना करना, यह नागरिकों का मूलभूत अधिकार नहीं है । ऐसे में इन बातों पर सरकार द्वारा कार्यवाही करने से नागरिकों के धर्माचरण के मूलभूत अधिकारों के नामपर वह आपत्ति नहीं हो सकती है । सर्वोच्च न्यायालय ने इसे स्पष्ट किया है ।
कोलकाता में सामुहिक नमाजपठण करते हुए
सार्वजनिक स्थानोंपर नमाज पठन पर प्रतिबंध लगाने की मांग करें !
ऐसा होते हुए भी मुसलमान नागरिक पूरे मार्ग तथा रेलवे प्लेटफॉर्म को अवरुद्ध कर साथ ही अन्य नागरिकों को होनेवाले कष्ट की ओर अनदेखी कर सार्वजनिक स्थानों पर नमाज पठन करते हैं । इस प्रकार नमाज पठन से परिवहन, ध्वनिप्रदूषण तथा अन्य समस्याएं उत्पन्न होने पर भी उनपर कभी कार्यवाही नहीं की जाती । एेसे नमाज के कारण कुछ स्थानोंपर सांप्रदायिक हिंसा भी हुर्इ है । इस देश में कानून सभी के लिए समान है, तो मुसलमानों के इस कृत्य पर विधियुक्त (कानूनी) कार्यवाही क्यों नहीं ?
न्यायालय के आदेश का अनादर होने के कारण मार्ग, रेलवे प्लेटफॉर्म तथा शासकीय कार्यालय जैसे सार्वजनिक स्थानों पर नमाज पठन करने पर प्रतिबंध लगाएं इस मांग हेतु भारत के विविध शहरो में राष्ट्रीय हिन्दू आन्दोलन होने जा रहा है ।
इस विषय से संबंधित कुछ सूत्र…
१. शहर के नागरिकों के लिए पदपथ (पैदलमार्ग) खुले होने चाहिए, वह उनका मूलभूत अधिकार है, ऐसा न्यायालय ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया है । ऐसा होते हुए भी प्रत्येक शुक्रवार को, ईद के समय तथा मुसलमानों के धार्मिक त्यौहारों के अवसर सार्वजनिक स्थानों पर नमाज पठन करने हेतु मार्ग अवरुद्ध किए जाते हैं । यह सर्व पुलिस की आंखों के समक्ष होते हुए भी उसपर कोई कृत्य नहीं किया जाता ।
२. ईद ए मिलादकी अवधि में १२० डेसीबल जितना ध्वनिप्रदूषण देखा गया है, ऐसा होते हुए भी पुलिस प्रशासन ने कभी कार्यवाही नहीं की है ।
३. भारत में प्रत्येक व्यक्ति को उपासना की स्वतंत्रता है, परंतु उसका अर्थ ऐसा नहीं कि उस उपासना से अन्य धर्मियों को कष्ट हो । सार्वजनिक रूप से नमाज पठन करने से एवं उसके माध्यम से सुनाई देनेवाली प्रार्थना हिन्दुआें को जबरदस्ती सुननी पडती है । यह एक प्रकार से अन्य धर्मियों की धर्मस्वतंत्रता पर प्रहार ही है ।
४. धर्मनिरपेक्ष कहलाए जानेवाले इस शासनप्रणाली में सर्व धर्मों को समान न्याय प्राप्त हो, यह अपेक्षित होते हुए हिन्दुआें के विषय में वैसा कहीं भी दिखाई नहीं देता ।
५. वर्तमान में भारत में हिन्दुआें दुय्यम श्रेणी की नागरिकता है तथा अपने ही देश में विविध उत्सव अथवा यात्रा किसी दास के समान मनानी पडती है । उनपर बंधन लादे जाते हैं । इसके विपरीत अन्य धर्मीय अपने उत्सवों में खुलकर कानून तोडें, तो भी उनपर किसी प्रकार की कार्यवाही होती हुई दिखाई नहीं देती ।
६. सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ध्वनिप्रदूषण के संदर्भ में दिए गए निर्देशानुसार रात्रि १० से सवेरे ६ बजे तक की अवधि में किसी भी प्रकार के ध्वनिक्षेपक की ध्वनि न हो, ऐसा स्पष्ट आदेश दिया है । इस आदेश का पालन मस्जिदों पर लगे भोंपुआें के विषय में कहीं भी दिखाई नहीं देता । इस विषय में देशव्यापी आंदोलन करने पर भी प्रशासन ने उस ओर ध्यान नहीं दिया है ।
७. मुसलमानों द्वारा मार्ग अवरुद्ध कर पढी जानेवाली नमाजों की ओर अनदेखी कर केवल हिन्दुआें के सार्वजनिक त्यौहारों के मंडपों के कारण नागरिकों को पदपथ(पैदल मार्ग) पर चलने में कष्ट होता है, ऐसा मान करशासन ने उत्सव मंडलों पर बडे प्रमाण में निर्बंध लादने का प्रयास किया है ।
ऐसे में न्यायालय के आदेश की अनदेखी होने से मार्ग, रेलवे प्लेटफॉर्म, शासकीय कार्यालय जैसे सार्वजनिक स्थानों पर नमाज पठन पर प्रतिबंध लगाएं ऐसी मांग हम कर रहे हैं ।
धार्मिक कार्यक्रम से अगर व्यवस्ता में व्यवधान हो रहा है तो बेहतर है मस्जिद में किया जाये