नई देहली : कांग्रेस की अगुवाई वाली कर्नाटक सरकार ने सूबे में गोहत्या पर रोक लगाने के लिए गोरक्षकों को सुरक्षा प्रदान करने वाले अपने कानून का उच्चतम न्यायालय में बचाव किया है। राज्य सरकार ने कानून की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली जनहित याचिका को न्यायालय से खारिज करने की मांग की है।
कर्नाटक उन ६ राज्यों में शामिल है जो गोरक्षक दलों की रक्षा के लिए कानून बनाए हैं। इन राज्यों में कर्नाटक के अलावा गुजरात, राजस्थान, यूपी, महाराष्ट्र और झारखंड शामिल हैं। जस्टिस दीपक मिश्र, जस्टिस ए. एम. खानविलकर और जस्टिस एम. एम. शांतनागौधर की उच्चतम न्यायालय न्यायालय की बेंच ने इन सभी राज्यों और केंद्र सरकार से जवाब मांगा है कि, क्यों न गोरक्षक सरीखे समूह पर बैन लगा दिया जाए क्योंकि ये कथित तौर पर विभिन्न समुदायों और जातियों में कटुता बढ़ा रहे हैं।
६ राज्यों में से केवल कर्नाटक ने ही उच्चतम न्यायालय में अपना जवाब ताखिल किया है और अपने कर्नाटक प्रिवेंशन ऑफ काउ स्लाटर ऐंड कैटल प्रेजर्वेशन ऐक्ट का बचाव किया है। यह कानून गोरक्षक दलों को छूट देता है।
हालांकि कांग्रेस सरकार ने यह कहा है कि, उसका कानून केवल उन्हीं गोरक्षकों को सुरक्षा प्रदान करता है जो ‘अच्छी नीयत’ से काम कर रहे हैं और हिंसक या आपराधिक गतिविधियों या समुदायों के बीच सौहार्द बिगाड़ने के लिए काम करने वालों को कोई सुरक्षा नहीं दी गई है। कर्नाटक सरकार ने साथ में यह भी कहा है कि, कानून के तहत मान्यता प्राप्त समूहों पर ही यह लागू होता है।
कर्नाटक का उच्चतम न्यायालय में गोरक्षकों का बचाव इसकी समय के कारण से काफी अहम है। यह बचाव ऐसे समय में किया गया है जब कांग्रेस और दूसरे दलों ने भाजपा पर गोरक्षकों को खुली छूट देने का आरोप लगाया है।
कर्नाटक सरकार ने अपने हलफनामे में कहा है, ‘कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि, अवैध और आपराधिक गतिविधियों को अंजाम देने वाले किसी शख्स को सुरक्षा प्रदान की जाए।’ राज्य का तर्क है कि, इस कानून गायों, बछड़ों और भैंस की हत्या पर रोक लगाने और राज्य में दूसरे मवेशियों के संरक्षण के उद्देश्य से बनाया गया है।
स्त्रोत : नवभारत टाइम्स