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सनातन के चैतन्यदायी और शास्त्रबद्ध जानकारी देनेवाले ग्रंथों की पुणे शहर में बढती मांग !

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के अमृतमहोत्सव के उपलक्ष्य में ‘हिन्दू राष्ट्र जागृति अभियान’ के अंतर्गत विविध उपक्रम

पुणे : परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के अमृतमहोत्सव के उपलक्ष्य में किए जा रहे प्रसार के उपलक्ष्य में समाज की ओर से सनातन संस्था एवं हिन्दू जनजागृति समितिद्वारा प्रकाशित विविध ग्रंथों की मांग बढ रही है !

‘नामजप का महत्त्व’, ‘पारिवारिक धार्मिक कृत्य’, ‘राष्ट्र एवं धर्मप्रेमी बनें !’, ‘बोधकथा’, ‘धर्मशिक्षा फलक’, ‘हिन्दू राष्ट्र क्यों चाहिए ?’, ‘संमोहन चिकित्सा’, ‘बिंदु दाबन के संदर्भ में सभी प्रकार के ग्रंथ’, आयुर्वेद से संबंधित सभी ग्रंथों के वितरण को अच्छा प्रतिसाद प्राप्त हो रहा है। साथ ही लघुग्रंथ ‘पूजाघर की रचना’ एवं ‘देवीपूजन’ लघुग्रंथों की मांग भी की जा रही है !

सनातन के ग्रंथ छात्रों के लिए उपयुक्त होने का अध्यापकों का मतप्रदर्शन !

१. गावठाण के रविवार पेठ के अगरवाल हिन्दू विद्यालय के अध्यापकों ने बताया, ‘सनातन के ग्रंथ आज के छात्रों के लिए आवश्यक हैं। हमें कुछ ग्रंथों की आवश्यकता हैं, उन्हें शीघ्र उपलब्ध करा दें !’

२. गावठाण के आगरकर छात्राओं के विद्यालय की श्रीमती भाडळकर ने कहा, ‘स्वभावदोष निर्मूलन’ इस संदर्भ की ग्रंथशृंखला छात्र एवं अध्यापकों के लिए भी आवश्यक है। अध्यापकों को ग्रंथों को पढना संभव हो; इसलिए विद्यालय में ग्रंथ रखे जाएं, मैं संबंधितों से कहूंगी !’

३. कोथरूड का मोरे विद्यालय एवं महानगरपालिका विद्यालय क्र. ४६ की अध्यापिकाओं ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि, ‘सनातन के ग्रंथ अच्छे हैं। हम उनका क्रय कर उनको छात्रों के लिए उपलब्ध करा देंगे !’

‘सनातन विद्वेषपूर्ण लेखन प्रकाशित करती है’, ऐसा कहनेवालों को तमाचा !

केवल पुणे परिसर ही नहीं, अपितु पूरे भारत में जिन जिन जिज्ञासुओं ने सनातन के ग्रंथ लिए, वो सभी ग्रंथ में निहित शास्त्रबद्ध, सुलभ एवं वैज्ञानिक भाषा से युक्त जानकारी को पढकर प्रभावित हो गए। इतना ही नहीं, अपितु अनेक जिज्ञासुओं ने ग्रंथ पढकर साधना आरंभ की। कुछ जिज्ञासुओं ने स्वयं भी ग्रंथों का क्रय किया और अपने परिजन एवं मित्रों को भी ग्रंथ लेने के लिए प्रेरित किया। जिस को अध्यात्म के संदर्भ में जिज्ञासा है, उसको सनातन के ग्रंथों का महत्त्व ज्ञात होता ही है ! इसके विपरीत भारत के कथित पुरो(अधो)गामी, निधर्मीवादी तथा बुद्धिजीवी ‘सनातन का लेखन विद्वेषपूर्ण होता है’, ऐसा आक्रोश करते हैं। उनका यह वक्तव्य कितना झूठा और द्वेषमूलक है, यह जिज्ञासुओंद्वारा प्राप्त प्रतिक्रियाओं से हमारे ध्यान में आता है !

‘हिन्दू राष्ट्र’ ही ध्येय होने की बात बतानेवाले सनातन प्रभात के पाठक !

• सिंहगड मार्ग के साप्ताहिक सनातन प्रभात के पाठक श्री. खाडे को ‘हिन्दू राष्ट्र क्यों चाहिए ?’ ग्रंथ देनेपर उन्होंने कहा, ‘‘हिन्दू राष्ट्र की स्थापना हेतु आप सभी लोक कितना कुछ कर रहे हैं ! मेरा आप से संपर्क हुआ, यह मेरा सौभाग्य है। हिन्दू राष्ट्र ही मेरा ध्येय है !’

• कोथरूड के एक जिज्ञासु ने कहा कि सनातन के ग्रंथ में शास्त्र विशद किया जाता है। इसलिए हमें ये ग्रंथ बहुत अच्छे लगते हैं !

जनप्रतिनिधियों को भी सनातन के ग्रंथ भा गए !

गावठाण की शिवसेना की पूर्व पार्षद श्रीमती सोनम झोंडे को ग्रंथ दिखानेपर उन्होंने कहा, ‘बच्चों को संस्कारित बनाने हेतु ‘संस्कार ही साधना’, ‘अध्ययन कैसे करें ?’, ’रामरक्षा’ जैसे ग्रंथ बहुत उपयुक्त हैं !’

अप्रैल २०१७ तक सनातन के १५ भाषाओं में ३०० ग्रंथों की ६८ लाख ५१ सहस्र प्रतियों का प्रकाशन !

स्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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