परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के अमृतमहोत्सव के उपलक्ष्य में ‘हिन्दू राष्ट्र जागृति अभियान’ !
• सिंधुदुर्ग जिले के विविध स्थानों पर सामाजिक उपक्रम
• साळगाव तथा सिंधुदुर्ग के धर्मशिक्षावर्ग के युवक-युवतियोंद्वारा आयोजन
• जोरदार वर्षा में भी व्याख्यान में ग्रामवासी उपस्थित
मळावाडी तथा साळगांव में ‘साधना एवं ‘हिन्दू राष्ट्र्र’ स्थापित करने की आवश्यकता’ विषय पर आयोजित व्याख्यान में ८० ग्रामवासी उपस्थित
साळगांव : कुडाळ तहसिल के मळावाडी तथा साळगांव में ४ मई को ‘हिन्दू राष्ट्र जागृति अभियान’ के अंतर्गत यहां के धर्मशिक्षा वर्ग एवं प्रशिक्षण वर्ग के युवक-युवतियों ने ‘साधना एवं हिन्दू राष्ट्र की आवश्यकता’ इस विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया था। मळावाडी के श्री. दत्तगुरु सावंत के निवासस्थान में आयोजित इस व्याख्यान में ८० ग्रामस्थ उपस्थित थे। इस अवसर पर हिन्दू जनजागृति समिति के सिंधुदुर्ग जिला समन्वयक श्री. हेमंत मणेरीकर ने उपस्थितों को मार्गदर्शन किया।
व्याख्यान की जगह ग्रामीण भाग में थी। व्याख्यान से पूर्व १ घंटा जोरदार वर्षा आरंभ हो गई थी। फिर भी ग्रामवासी अपना सभी कामकाज बाजू में रख कर उपस्थित थे !
इस अवसर पर श्री. हेमंत मणेरीकर ने कहा कि, सनातन संस्था के संस्थापक परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने भक्तियोग, कर्मयोग, ध्यानयोग एवं ज्ञानयोग इन साधनामार्गों का संगम एवं शीघ्र गति से आध्यात्मिक उन्नति करा देनेवाला ‘गुरुकृपायोग’ यह साधनामार्ग विकसित किया है। उन्होंने काल के अनुसार साधना का महत्त्व बताते हुए कहा कि, ‘हिन्दू राष्ट्र’ की स्थापना कार्य में सम्मिलित होना काल के अनुसार साधना ही है। हिन्दू धर्म की गुरुपरंपरा ने राष्ट्र एवं धर्म संकट में रहते समय धर्मरक्षा हेतु योगदान दिया था। महाभारतीय युद्ध में गुरुरूपी श्रीकृष्ण ने शिष्यरूपी अर्जुन को बताया कि सज्जनों की रक्षा एवं दुर्जनों के विनाश के लिए एवं धर्मसंस्थापना के लिए मैं हर युग में पुनः पुनः अवतार धारण करता हूं !
भगवान श्रीकृष्ण का यह वचन सूचित करता है कि, धर्मग्लानि होने पर साधकों को ‘क्षात्रधर्म’ का स्वीकार करना चाहिए !
धर्मसंस्थापना का यही आदर्श आंखो के सामने रख कर आर्य चाणक्य-चंद्रगुप्त, विद्यारण्यस्वामी-हरिहरराय, समर्थ रामदासस्वामी-छत्रपति शिवाजी महाराज आदि गुरु-शिष्यों ने धर्मसंस्थापना का ऐतिहासिक कार्य किया है। वर्तमान में ‘हिन्दू राष्ट्र’ स्थापित करने हेतु ऐसा ही कार्य करना अपेक्षित है !
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात