परात्पर गुरु श्री श्री जयंत बाळाजी आठवलेजी एवं ईश्‍वर एक ही है, इसके प्रति १०० प्रतिशत आस्था रखने से साधकों का कोई भी कार्य अधुरा नहीं रहेगा ! – सप्तर्षि जीवनाडी

बच्चों (साधकों) ! आपके गुरु कौन हैं ? स्वामी चिरंजीवी (स्वामी का अर्थ त्रिभुवन के स्वामी एवं चिरंजीवी का अर्थ जिनका कार्य शाश्‍वत एवं अमर है ।), आप के गुरु सनातन धर्म के उद्धारक हैं । आप को सनातन धर्म के उद्धारकरूपी गुरुदेवजी की प्राप्ति होने से आप को उनका आशीर्वाद तो प्राप्त होने ही वाला है । आप केवल उनके प्रति आस्था रखिए । साक्षात् वैकुंठ में जो श्रीविष्णु हैं, क्षीरसागर में जो श्रीविष्णु हैं, वह श्रीविष्णु ही आप के परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी हैं ।

पृथ्वीपर अनेक आश्रम, संत, संन्यासी एवं गुरु हैं । ऐसे अनेक आश्रमों के पास बहुत धन भी है; किंतु परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ऐसे एकमात्र गुरु हैं, जिनके लिए महर्षि जीवनाडीपट्टी का यह वाचन हो रहा है । केवल वहीं एकमात्र हैं, जिनके लिए सप्तर्षिजी को इतना लेखन करने की इच्छा होती है । सप्तर्षिजी ने अन्य किसी भी आश्रम के लिए अथवा गुरुआें के लिए इतनी बडी मात्रा में लेखन नहीं किया है । इसके पीछे कोई कारण तो होगा ही । इसपर सभी साधकों को विचार करना चाहिए । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी जैसे गुरुदेवजी की प्राप्ति होना, सनातन के साधकों के लिए वरप्रसाद ही है !

पू. डॉ. ॐ उलगनाथन

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी एवं ईश्‍वर अलग नहीं, अपितु एक ही हैं । जो उनके निकट आए हैं तथा उनके द्वारा बताए गए साधनामार्ग के अनुसार साधना कर रहे हैं, ऐसे साधक गुरुदेवजी के प्रति १०० प्रतिशत आस्था रखें । जिन्होंने गुरुदेवजी के प्रति आस्था रखी है, उनका कोई भी कार्य कभी अधुरा नहीं रहेगा तथा जिनकी आस्था झुठी है, उनका कार्य कभी पूरा नहीं होगा ! जिन साधकों की गुरुदेव के प्रति १०० प्रतिशत आस्था है, ऐसे साधक ही केवल उनको प्रिय हैं । हम महर्षियों का सनातन के प्रत्येक साधक की ओर निरंतर ध्यान है तथा उनमें गुरुदेवजी के प्रति कितनी आस्था है ?, इसकी ओर भी हमारा ध्यान है ।

हम सनातन के सभी साधकों को यह बताना चाहते हैं कि, उनके लिए उनके गुरु परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ही सबकुछ हैं । ‘हमें परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के बिना अन्य कोई भी देवता अथवा अन्य कोई भी ज्ञात नहीं है’, यह भाव सभी साधक सदैव रखें । साधकों ने यदि ऐसा लक्ष्य रखा, तो विश्‍व में सनातन के साधक भी गौरवान्वित होनेवाले हैं ।

आज के दिन हम सप्तर्षि परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के चरणों में यह प्रार्थना करते हैं कि, साधकों से अनेक चूकें हुई हैं । कुछ साधकों ने आप की आलोचना भी की है, अपितु आप साधकों के सभी अपराधों को क्षमा कीजिए ! हे श्रीविष्णु, हे परमात्मा, हे वैकुंठवासी तिरुमला, हे राघवजी, हे शिवजी तथा हे ब्रह्मदेव गुरुदेवजी, हम आप से प्रार्थना करते हैं कि, आप सभी साधकों की रक्षा करें । उनकी सभी मनोवांच्छित इच्छाआें को आप पूरा करें । आप उनकी सभी चूकों को क्षमा कर आप उनको अध्यात्म के मार्गपर आगे ले जाएं ! – सप्तर्षि जीवनाडी वाचन क्र. १२७ (९.५.२०१७, रात ८.४५)

– पू. डॉ. ॐ उलगनाथन, तिरुवण्णामलई, तमिलनाडू

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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