Menu Close

खतरनाक प्रदूषण के बाद भी गंगाजल प्राणदायक : रिसर्च

वाराणसी : गंगा में लगातार बढ़ते प्रदूषण को लेकर देशभर की चिंता के बीच एक अच्छी खबर आई है। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल सायेंस (आईएमएस) में चल रहे रिसर्च से पता चला है कि, खतरनाक प्रदूषण के बावजूद गंगाजल में खासी तादात में मौजूद बैक्टीरियोफेज (जीवाणुभोजी) घातक बीमारियों के बैक्टीरिया पर हमला कर उसे पूरी तरह परास्त करने की क्षमता रखते हैं। बैक्टीरिया से इनके लड़ने की ताकत वैज्ञानिकों द्वारा तैयारी की गई एंटीबायोटिक दवाओं से कई गुना ज्यादा है। बस आवश्यकता है अलग-अलग बैक्टीरिया से लड़ने वाले बैक्टीरियोफेज को खोज निकालने की। ऐसा होने पर एंटीबायोटिक के खतरे या फिर उसके बेअसर होने के चलते लोगों को मौत के मुंह में जाने से बचाया जा सकेगा।

बीएचयू आईएमएस के माइक्रोबॉयोलाजी डिपार्टमेंट में अत्याधुनिक बैक्टीरियोफेज रिसर्च लेबोरेटरी में इन दिनों गंगाजल पर रिसर्च का काम जोरों पर है। लेबोरेटरी इंचार्ज प्रोफेसर गोपालनाथ ने बताया कि, दिन पर दिन प्रदूषण बढ़ने के कारण गंगाजल की कई चरणों में लैब टेस्टिंग की गई है जिसकी रिपोर्ट अब सामने आने लगी है। इसके अनुसार, गंगाजल में प्रदूषण के चलते बैक्टीरिया बढ़े हैं तो उनके मुकाबले के लिए जीवाणुभोजियों की संख्या भी कम नहीं है। इसका अर्थ है कि, जीवनदायिनी गंगा का जल आज भी अपनी उस पहचान को बरकरार रखे हुए है। प्रदूषण को नियंत्रित कर गंगा की ‘नेचुरल फूड चेन’ बैक्टीरियोफेज की प्रकृति को बरकरार रखा जा सकता है। यह आज के दौर की घातक बीमारियों से लड़ने का नया हथियार होगा।

प्रो. गोपाल ने बताया कि, बैक्टीरियोफेज के एंटीबायोटिक से ज्यादा ताकतवर होने से बगैर दवा के इलाज संभव है। अब तक हुए कई प्रयोग सफल रहे हैं। एशिया में महामारी का रूप ले चुके काॅलारा, टायफाइड, डायरिया, आदि के सलमोनेला टायफी, वाइब्रियो कॉलेरी, एसिनेटोबैक्टर बामनी, इरेकिया कोलाई, लेबसिला न्यूमोनिया जैसे तमाम बैक्टीरिया गंगा में मिले हैं तो इनको खत्म करने वाले बैक्टीरियोफेज भी खोज निकाले गए हैं। इतना ही नहीं मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट के चलते मायकोबैक्टीरियम प्रजातियों से होने वाले एक्सडीआर ट्यूबरकुलोसिस (टीबी) पर प्रभावी नियंत्रण के लिए गंगाजल में बैक्टीरियोफेज की खोज का काम अंतिम दौर में है।

सेप्टीसीमिया का इलाज- माइक्रोबायोलॉजिस्ट गोपाल नाथ का दावा है कि देश के कई शहरों में सेप्टीसीमिया को मौत के दूसरे नाम के रुप में जाना जाता है। इसके भी बैक्टीरियोफेज की खोज पूरी हो चुकी है। इससे मरीज सौ फीसद ठीक हो सकता है। इसके लिए आईसीयू में मरीज को बैक्टीरियोफेज इंजेक्ट करना होगा। फेफड़े की टीबी को ठीक करने के लिए इनहेलर और घाव भरने के लिए बैक्टीरियोफेज स्प्रे करना होगा।

स्त्रोत : नवभारत टाइम्स

Related News

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *