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घाटी में आर्मी के स्कूलों की ‘गुडविल’ पर अलगाववादियों की तिरछी नजर

नई देहली : कश्मीर घाटी में मासूमों को कट्टरपंथ की ओर झोंकने का षडयंत्र नाकाम करने के लिए सुरक्षा शाखा बच्चों की अच्छी शिक्षा का प्रबन्ध कर रही हैं। अशांति वाले प्रदेशों, क्षेत्रों में आर्मी के गुडविल स्कूलों की संख्या लगातार बढ़ रही है, इसके बावजूद इन्हें और संख्या में खोले जाने की मांग हो रही है। इससे अलगाववादी नेता परेशान हैं। नाजुक हालात को देखते हुए इन विद्यालयों की सुरक्षा का विशेष प्रबन्ध किया गया है।

हाल में बड़े अलगाववादी नेताओं ने आरोप लगाया कि, इन विद्यालयों में छात्रों को उनके धर्म और विशिष्ट संस्कृति के प्रति उदासीन बनाया जा रहा है। मातापिता से कहा जा रहा है कि वे इन विद्यालयों में बच्चों को न भेजें। सेना के सूत्रों का कहना है कि, ज्यादातर आर्मी गुडविल स्कूल जम्मू-कश्मीर स्टेट एजुकेशन बोर्ड से जुड़े हुए हैं। केवल २ रेजिडेंशल स्कूल ही सीबीएसइ से संबधित हैं। स्टेट बोर्ड ने स्थानीय लोगों की आकांक्षाओं का पूरा ध्यान रखा है। इन विद्यालयों की लोकप्रियता की वजह यह है कि २०१६ की अशांति में जब सारे स्कूल बंद हो गए थे, तब भी ये स्कूल खुले हुए थे। स्थानीय जनसंख्या लगातार और विद्यालयों की मांग कर रही है परंतु बजट की सीमा के कारण यह संभव नहीं हो पा रहा है।

ऑपरेशन सद्भावना के तहत पहला आर्मी गुडविल विद्यालय १९९९ में उड़ी में बनाया गया था, उसके बाद से ४५ विद्यालय (स्कूल) स्थापित हुए, जिसमें लगभग १५ हजार बच्चे पढ़ रहे हैं। अब तक एक लाख से ज्यादा बच्चे इन स्कूलों में शिक्षा प्राप्त कर चुके हैं। रक्षा मंत्रालय की ओर से चलाए जा रहे इन विद्यालयों से काफी प्रतिभावान बच्चे सामने आए हैं।

इन विद्यालयों की गुडविल की कई और कारण हैं। ९७ प्रतिशत से ज्यादा बच्चे बारहवीं में पास हुए हैं। इनके इन्फ्रास्ट्रक्चर में सुधार के लिए पिछले साल २० करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम खर्च की गई। गरीबों को बच्चों की शिक्षा मुफ्त की गई। इन विद्यालयों में लगभग १००० स्थानीय लोगों को भी रोजगार मिला हुआ है। हाल ही में अशांत कुलगाम जिले में एक और स्कूल स्थापित किया गया, जिसका नाम लेफ्टिनेंट उमर फैयाज के नाम पर रखा गया है, जिनकी हाल में आतंकवादियों ने अगवा करके हत्या कर दी थी।

जम्मू-कश्मीर में गूजरों और बकरवालों की अच्छी-खासी जनसंख्या है, जो गर्मी में ऊंचाई वाले प्रदेशों, क्षेत्रों में रहते हैं, जबकि सर्दियों में नीचे आ जाते हैं। लगातार घूमते रहने से इनके बच्चों की पढ़ाई प्रभावित न हो, इसके लिए आर्मी शेफर्ड विद्यालय भी चला रही है। आर्मी ने इसके अलावा राज्य सरकार के १९०० स्कूलों को आधुनिकीकरण में सहायता दी है। श्रीनगर में १९८३ में आर्मी पब्लिक विद्यालय बनाया गया था, ताकि आर्मी के लोगों के बच्चे इसमें पढ़ाई कर सकें। परंतु यहां स्थानीय लोगों के बच्चों की संख्या ज्यादा है।

स्त्रोत : नवभारत टाइम्स

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