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देखे छत्रपति शिवाजी महाराज से जुडे महाराष्ट्र के किले

महाराष्ट्र अपने खूबसूरत पर्यटन क्षेत्रों के साथ ही किलों के लिए भी जाना जाता है। देश में सर्वाधिक किले इसी राज्य में हैं। यहां के अधिकतर किलों का निर्माण छत्रपति शिवाजी महाराज ने किया था। इन्हीं में से एक सिंधुदुर्ग का किला है जो मालवा तट के एक द्वीप पर स्थित है।

सिंधुदुर्ग किले को १६६४ ई. को छत्रपति शिवाजी महाराज ने बनवाया था। यह किला मराठा साम्राज्य के स्वर्णिम युग का मूक गवाह और अरब सागर में मराठों के आधिपत्य का प्रत्यक्ष प्रमाण है। किले में शिवाजी महाराज को समर्पित एक मंदिर भी है जिसे राजाराम ने बनवाया था। किले की दीवारों पर राजा के हाथ और पैरों के निशान देखे जा सकते हैं।

औरंगाबाद में स्थित है मध्यकालीन भारत का सबसे ताकतवर किला जिसे सभी दौलताबाद किले के नाम से जानते हैं। दौलताबाद औरंगाबाद से १४ किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में बसा एक १४वीं सदी का शहर है। शुरू में इस किले का नाम देवगिरी था जिसका निर्माण कैलाश गुफा का निर्माण करने वाले राष्ट्रकुट शासक ने किया था। अपने निर्माण वर्ष (११८७-१३१८) से लेकर १७६२ तक इस किले ने कई शासक देखें। इस किले पर यादव, खिलजी, तुगलक वंश ने शासन किया। मोहम्मद बिन तुगलक ने देवगिरी को अपनी राजधानी बनाकर इसका नाम दौलताबाद कर दिया। आज दौलताबाद का नाम भारत के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में वर्णित है।

पन्हाला किला को पन्हालगढ, पाहाला और पनाल्ला के नाम से भी जाना जाता है। इसका शाब्दिक अर्थ है ‘सांपों का घर’। पन्हाला किला महाराष्ट्र के कोल्हापुर से उत्तर-पश्चिम दिशा में २० किलोमीटर दूर स्थित है।

११७८ से १२०९ ईस्वी के दौरान भोज द्वितीय के द्वारा निर्मित पन्हाला किले का अधिकांश अदरूनी हिस्सा आज भी अखंड मौजूद है।

महाराष्ट्र के अमरावती जिले में चीकलधारा के समीप स्थित है गविलगढ़ किला।

गविलगढ़ का किला लगभग ३०० साल पुराना है और इसपर हिंदू और मुगल शासकों ने राज किया है।

गविलगढ़ किले में अनेक खूबसूरत मूर्तियां है, जिन्हें निजाम के काल में बनाया गया था। किले में लोहे, तांबे और पीतल की बनी कई तोपें भी देखी जा सकती हैं। किले के भीतर ही बमनीतलाव और खंबतलाव नामक दो झील भी हैं।

महाराष्ट्र में स्थित नरनाल किला को शाहनूर किला के नाम से भी जाना जाता है। इस किले का नाम राजपूत शासक नरनाल सिंह स्वामी के नाम पर रखा गया है। इस किले का निर्माण गोंड शासकोंद्वारा १०वीं ईस्वी में करवाया गया था।

नरनाल किले में तीन छोटे किले समाहित हैं। इस किले के पूरब में जाफराबाद, पश्चिम में तेलियागढ़ और केंद्र में नरनाल किला स्थित है। नरनाल या शाहनूर किले का कई बार पुनर्निर्माण किया गया। सबसे पहले सुल्तान महमूद गजनवी ने फिर मुगल बादशाह अकबर ने इसका पुनर्निर्माण कराया।

महाराष्ट्र के अकोला जिले में है असादगढ़ किला जिसे अकोला किले के नाम से भी जाना जाता है।

अरब सागर के तट पर बसा बनकोट का किला आज अपने खूबसूरत समुद्र तटों के लिए विख्यात है। इसके नाम का मराथी अर्थ है ‘बावन कोट’ अर्थात ५२ किला। दरअसल शिवाजी महाराज ने इस छोटे से किले पर विजय प्राप्त कर इसे स्वराज्य दिया था और यह उनकेद्वारा विजयी ५२वां किला था इसलिए इसका नाम बनकोट किला पड़ गया।

नगरधन किला को नंदीवर्धन किले के रूप में भी जाना जाता है। यह नागपुर से ३४ किलोमीटर उत्तर-पूर्व में स्थित है। रामटेक से इसकी दूरी महज ५ किलोमीटर है। यह किले की चाहरदीवारी में मौजूद मंदिर के लिए विख्यात है। किले के अंदर जमीन के नीचे एक कुएं के समान आकारवाले उभरे हुए भाग पर एक मूर्ति स्थापित है।

स्त्रोत : आज तक

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