केवल भारतद्वेष से भरे ऐसे शत्रु को बॉल तथा बैट की नहीं, अपितु बम एवं गोलियों की बारिश से मारा करने की ही भाषा समझ में आती है, ये बात जिस दिन भारत ध्यान में लेगा, वह सुदिन होगा !
वाहिनि, आकाशवाणी एवं अन्य प्रसारमाध्यमों के माध्यम से ४ जून को लंदन में हुए भारत-पाक क्रिकेट चॅम्पियन ट्रॉफी के संदर्भ में अत्यधिक चर्चा हुई। यह क्रिकेट जगत का ध्यान आकर्षित करनेवाला सामना होनेवाला था। इसी खेल का प्रतिद्वंदी शत्रुदेश प्रतिदिन हमसे लडता एवं बखेडा करता रहता है। क्या, ऐसी स्थिति में उनके साथ खेलना उचित होगा ?, इसका विचार कितने लोगोंने किया है ?
इन खेलों के आयोजकों का उद्देश्य था भरपूर पैसा कमाना एवं उसके लिए इन खेलों की वाहिनि, प्रसारमाध्यमोंद्वारा विज्ञापनों की बारिश शुरू हो गई थी। इन विज्ञापनों के लिए पहले निवेश करना पडा, तो भी उसका अनेक गुना वापिस मिलेगा इसकी निश्चिति के लिए किसी अर्थतज्ञ अथवा व्यावसायिक व्यवस्थापक की आवश्यकता नहीं है ! परंतु आवश्यकता है, स्वार्थी मानसिकता से परे हो कर भारतीय क्रिकेटप्रेमियों को देश का विचार करने की !
सीमा पर जवानों को शत्रु के साथ हर क्षण जानलेवा खेल करना पडता है। अपने कर्तव्य में कोई कमी न रख वे देश की रक्षा हेतु सेवारत हैं। अतिरेकी, पाकिस्तानी सैन्य, पथराव एवं सैनिकों को मारपीट करनेवाले इन सभी लोगों से देश के जवान साहसपूर्वक संघर्ष कर रहे हैं। एक ओर शत्रु के साथ क्रिकेट तथा कला को मनोरंजन के साधन के रूप में देखना एवं दूसरी ओर शत्रुद्वारा नियमित रूप से होनेवाली हानि के संदर्भ में दु:ख व्यक्त करना ऐसे दोगलेपन का क्या, उपयोग ?
राष्ट्रप्रेमी नागरिकों के लिए देश के सैनिक ही खरे चॅम्पियन हैं, होने चाहिए। क्रिकेट के मैदान में शत्रु पर विजय पाने का अर्थ यह नहीं कि बहुत बडा तीर मारा, अपितु प्रत्यक्ष रणांगण में शत्रु के चिथड़े उड़ा कर उन पर विजय प्राप्त करना इसीको ‘पराक्रम दिखाना’ ऐसा कहना होगा ! केवल भारतद्वेष से भरे ऐसे शत्रु को बॉल तथा बैट की नहीं, अपितु बम एवं गोलियों की बारिश से माराने की ही भाषा समझ में आती है, ये बात जिस दिन भारत ध्यान में लेगा, वह सुदिन होगा !
– श्री. राहुल पाटेकर, परळ, मुंबई.
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात