‘षष्ठ अखिल भारतीय हिन्दू अधिवेशन’ : समर्थभक्त पू. सुनीलजी चिंचोलकर का संदेश
‘जिस समय भारत का विभाजन हुआ, उसी समय ‘हिन्दू राष्ट्र’ की घोषणा होनी चाहिए थी; परंतु केवल ‘मुसलमानों का तुष्टीकरण करने की नीति के कारण उस समय से असंख्य हिन्दुओं का मनोबल तोडा जा रहा है। वस्तुतः गांधीजी ने सदैव इस देश को ‘हिन्दुस्थान’ ही संबोधित किया है, तो इस देश का नामकरण ‘हिन्दुस्थान’ करने में क्या अडचन है ?
इसलिए पिछले ९० वर्षों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने निरंतर प्रयास किया है। अब सनातन संस्था के संस्थापक परात्पर गुरु डॉ. आठवले ने इस मांग को अधिक व्यापक रूप दिया है। यह अधिवेशन उस दिशा में हिन्दुओं ने उठाया महत्त्वपूर्ण कदम ही है !
‘हिन्दू राष्ट्र अर्थात मुसलमानविरोधी कुछ कार्रवाई’, ऐसा अपसमज फैलाने में कांग्रेसवाले, साम्यवादी एवं पुरोगामी सफल हुए हैं; परंतु ‘हिन्दू राष्ट्र’ में मुसलमान एवं ईसाईयों का भी अंतर्भाव रहेगा। केवल उन्हें इस देश से अप्रामाणिकता से आचरण करना असंभव होगा ! ‘हिन्दू राष्ट्र’ से अप्रामाणिकता करनेवाले हिन्दू भी इस ‘हिन्दू राष्ट्र’ में नहीं टिक पाएंगे। ‘हिन्दू राष्ट्र’ भौगोलिक नहीं, अपितु भावनात्मक अवधारणा है। सरकार अधिक काल हिन्दुओं की भावना से खिलवाड न करें एवं हिन्दुओं की भावनाओं का विस्फोट होने से पूर्व ही ‘हिन्दू राष्ट्र’ की घोषणा करें !
इस अधिवेशन को मेरी हार्दिक शुभकामनाएं !’
– समर्थभक्त पू. सुनीलजी चिंचोलकर, पुणे (८.६.२०१७)
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात