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पश्चिम बंगाल : ममता सरकार ने तृणमूल काँग्रस के फिरहाद हकीम को बनाया हिन्दुआें के तारकेश्वर मंदिर का प्रमुख

  • ममता बानो का पश्चिम बंगाल को ‘मुस्लिम राज्य’ बनाने का षड्यंत्र !

  • हिन्दुआेंका अस्तित्व नष्ट करने का ममता बानो का षड्यंत्र ! – सम्पादक, हिन्दूजागृति

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हुगली जिले के प्रसिद्ध तीर्थ तारकेश्वर मंदिर बोर्ड के अध्यक्ष पद पर राज्य के शहर विकास मंत्री फिरहाद हकीम को बिठा दिया है। मंदिर बोर्ड की अध्यक्षता पूरी तरह से धार्मिक कार्य से जुड़ा है, ऐसे में एक मुसलमान को वो जिम्मेदारी देने का क्या कारण हो सकता है ? ममता की इस हरकत से तरह-तरह की आशंकाएं उत्पन्न होना स्वभाविक है।

राष्ट्र विरोधी सोचवाले फिरहाद हकीम

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार मंत्री फिरहाद हकीम कोलकाता के अपने चुनाव क्षेत्र गार्डन रीच को मिनी पाकिस्तान तक बुला चुके हैं। सबसे बड़ी बात है कि, उन्होंने ये भारत विरोधी टिप्पणी एक पाकिस्तानी समाचार पत्र डॉन को दिए इंटरव्यू में कही थी। डॉन में हकीम के विवादास्पद बयान को प्रमुखता से जगह दी गई थी। सोचने वाली बात है कि, जो व्यक्ति दुश्मन राष्ट्र के लिए सोचता है, जिसके दिल-दिमाग में हमेशा पाकिस्तान की चिंता रहती है, वो पवित्र मंदिर की अध्यक्षता करके क्या करेंगे ? क्या कोई ये मानने के लिए तैयार हो सकता है कि अपनी अपवित्र मानसिकता से वो मंदिर की पवित्रता को नष्ट करने का कुचक्र नहीं रचेंगे ?

हिंदू को किसी मस्जिद का प्रमुख बनाएंगी ममता ?

ममता बनर्जी मुस्लिम तुष्टिकरण को छिपाने के लिए, स्वयं को धर्मनिरपेक्षता की सबसे बड़ी ठेकेदार बताती हैं। परंतु क्या वो कभी किसी चर्च या मस्जिद की व्यवस्था किसी हिंदू के हाथों में देने की सोच सकती हैं ? तब सवाल उठना स्वभाविक है कि ये छद्म धर्मनिरपेक्षता केवल हिंदुओं पर क्यों थोपी जाती है ? क्या बात-बात में हिंदुओं को अपमानित करते रहना यही असली धर्मनिरपेक्षता है ? देशविरोधी शक्तियों को बढ़ावा देते रहना ही धर्मनिरपेक्षता है ? अल्पसंख्यों के लिए किसी हद तक चले जाना ही धर्मनिरपेक्षता है ? और यदि यही धर्मनिरपेक्षता है, तो वो दिन दूर नहीं कि जब ममता बनर्जी जैसे देश विरोधी सोच रखने वाले नेता देश को और विभाजन के मुहाने पर लाकर खड़ा कर देंगे ?

मंदिरों को लूटने का घिनौना खेल

दरअसल हिंदुओं और उनके धर्म स्थानों को लूटने का षड़यंत्र अंग्रेजों के जमाने से चला रहा है। परंतु, ७० और ८० के दशकों के बाद भ्रष्टाचार और तुष्टिकरण की राजनीति ने पुरी सामाजिक व्यवस्था को गंदा कर दिया है। सरकारें मंदिरों पर कब्जा कर लेती हैं और वहां होने वाली आमदनी से मंदिर के विकास का काम नहीं करतीं। अधिकतर जगहों पर इसका कोई हिसाब-किताब मिलना मुश्किल है कि मंदिरों में श्रद्धालुओं से होने वाली कमाई आखिर जाती कहां है? कहीं राजनीतिक स्वार्थ में तुष्टिकरण करने वाली पार्टियां उसे गलत जगहों पर तो नहीं लुटाती हैं ? जो पैसे भक्तजन पुण्य समझ कर मंदिरों के विकास के लिए दे जाते हैं उसका इस्तेमाल कहीं उनकी भावनाओं के विरोध में तो नहीं किया जाता ?

कानून बनाकर मंदिरों पर मनमानी

इस गोरखधंधे की शुरुआत १९५१ में तब हुर्इ जब तत्कालीन मद्रास सरकार ने Hindu Religious and Charitable Endowments Act के माध्यम से अव्यवस्था के बहाने मंदिरों के खजाने को हथियाना शुरू किया। धीरे-धीरे इसी कानून को दूसरे राज्यों ने अपने-अपने हिसाब से ढालना शुरू कर दिया और ये सबके लिए एक मॉडल बन गया। उदाहरण के तौर पर अकेले आंध्र प्रदेश सरकार के पास २००३ में ३० हजार से अधिक मंदिरों का अधिकार था और वो वहां पुजारी की नियुक्ति से लेकर बाकी धार्मिक अनुष्ठानों में भी अपनी मनमर्जी चलाती थी।

सर्वोच्च न्यायालय ने दिया है सरकारों के खिलाफ निर्णय

६ जनवरी, २०१४ को दिए सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक निर्णय में साफ कर दिया गया कि मंदिरों का मैनेजमेंट अपने हाथ में रखने का किसी भी सरकार के पास एकाधिकार नहीं है। परंतु दुर्भाग्य से अधिकतर मंदिर ट्रस्टों पर अभी भी राजनेताओं और भ्रष्ट अधिकारीयों ने अपना दबदबा बनाए रखा है और उसे हिंदुओं को सौंपने के लिए तैयार नहीं हैं। सरकारी ट्रस्टों की करतूतों का ही परिणाम है कि पिछले अप्रैल महीने में आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने Tirumala Tirupati Devasthanams (TTD) ट्रस्ट को किसी निजी संगठन को फंड नहीं देने का निर्देश दिया। दरअसल इस मामले में राज्य के प्रिंसिपल सेक्रेट्री (राजस्व ) ने TTD को एक निजी संगठन को हर महीने ५० लाख रुपये देने का सरकारी आदेश दिया था। पिछले साल दिसंबर में मद्रास हाई कोर्ट ने भी अनियमितताओं को देखकर तमिलनाडु सरकार के हिंदू मंदिरों पर निगरानी रखने वाले विभाग और उससे संबंधित कानून को ही खत्म कर देने की चेतावनी दी थी।

ये तो कुछ झांकी है, पूरे देश में खेल जारी है

कर्नाटक के कुछ प्रसिद्ध मंदिरों की आमदनी के बारे में आरटीआई से कुछ लोगों ने जो जानकारी जुटाई है, उससे किसी के भी पैर के नीचे से जमीन खिसक जाएगी। ये तो केवल कुछ उदाहरण भर हैं। यहां सरकार ने मंदिरों की कमाई अपने पास रख लिया और मंदिरों के विकास पर ढेले भर भी खर्च नहीं किए। इन्हें सालाना करोड़ों में दान मिलता है, जिसका अधिकतर हिस्सा सरकार डकार जाती है। सवाल उठता है कि केवल हिंदुओं और मंदिरों के साथ ही ये अन्याय क्यों ?

स्त्रोत : परफॉर्म इण्डिया

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