मार्गशीर्ष शु. १३, कलियुग वर्ष ५११४
अंधा कारोबार चलता ही रहा, तो पुरी एवं ज्योतिषपीठके शंकराचार्योंका कुंभमेलेमें अनुपस्थित रहनेका निर्णय
मुसलमानप्रेमी सत्ताधारी समाजवादी पक्षका कुंभमेलेके नियोजनमें अंधा कारोबार हिंदुओ, ध्यान रखें कि, प्रयागराजके अंधे कारोबारके विषयमें बलशाली हिंदुत्वनिष्ठ संगठन एवं पक्ष अभी भी निष्क्रीय होनेके कारण अब आपको ही संगठित होकर कृति करनी पडेगी !
वाराणसी – गोवर्धनपीठके प्रतिनिधि अशोक कुमार सिंहने जानकारी दी है कि, प्रयागराजमें ७ जनवरीसे आरंभ होनेवाले कुंभमेलेके नियोजनमें गडबडीके कारण क्रोधित हुए पुरीके गोवर्धनपीठके शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती कुंभमेलेमें अनुपस्थित रहेंगे । ज्योतिषपीठके शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वतीको प्रदान किए गए स्थानमें भी परिवर्तन किया जानेके कारण विवाद निर्माण हुआ है । जबतक यह विवाद प्रशासनद्वारा सुलझाया नहीं जाता, तबतक कुंभमेलेमें अनुपस्थित रहनेका निर्णय शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वतीने भी लिया है । ( गोवर्धनपीठके शंकराचार्य तथा ज्योतिषपीठके शंकराचार्यने कुंभमेलेमें अनुपस्थित रहनेका जो निर्णय घोषित किया, उसका ही प्रथम पुनर्विचार होना चाहिए । वे अनुपस्थित रहें, तो हिंदु विरोधकोंको सहायता करनेके समान होगा, क्योंकि हिंदू धर्मगुरू एवं धर्माभिमानी हिंदू कुंभमेलेके लिए एकत्रित न हो, ऐसी ही विरोधकोंकी मानसिकता है । हिंदुओंके दिग्दर्शक ही ऐसे हिम्मत हारेंगे, तो हिंदुओंका वैश्विकस्तरपर होनेवाले इस समारोहका महत्त्व क्या हिंदूद्वारा ही न्यून होनेके समान नहीं होगा ? – संपादक )
इस प्रशासनने कुंभमेलेके स्थानपर एक ही स्थान वितरण दो-दो शंकराचार्य, संत, महंत, अखाडे, संस्थाओंको प्रदान करनेके कारण उनके बीच विवाद निर्माण हो रहे हैं । ( आजतक कुंभभेलेके नियोजनमें ऐसा ऊधम नहीं हुआ था । शंकराचार्यका ऐसा अनादर भी नहीं हुआ था; अपितु समाजवादी पक्ष सत्तापर आनेके पश्चात और कुंभमेलेके नियोजनका दायित्व आजमखान जैसे मंत्रीके पास आनेके पश्चात ही यह परिस्थिती निर्माण हुई है । इसका अर्थ हिंदुओंकी समझमें आना चाहिए । हिंदुओंके सबसे बडे धार्मिक उत्सवके नियोजनके अधिकार मुसलमान मंत्रीको देकर हिंदू संतोंका, धर्माचार्योंका, शंकराचार्योंका अनादर करनेका षडयंत्र रचनेके समान ही यह प्रकार है । हिंदुओ, इस घटनाके विरोधमें संगठित होकर सरकारको शंकराचार्योंका आदर करनेके लिए विवश करें ! – संपादक )
इस विषयमें श्री. अशोक कुमार सिंहने कहा,
१. ‘‘चारों पीठोंमी सम्मतिके पश्चात ही कुंभमेलेके अधिकारी तथा सरकारको पत्रक एवं
मानचित्र प्रदान किया गया था । अधिकारियोंद्वारा स्थान प्रदान करनेके कागजात भी दिए गए थे । तत्पश्चात पीठोंके प्रतिनिधियोंने शंकराचार्योंके आशीर्वादसे इस स्थानका पूजन कर मंडप डाला था । तत्पश्चात किसीके दबावमें आकर स्थान परिवर्तित किया गया है । यह धर्माचार्योंके विरोधका कृत्य होनेके कारण हम कभी भी इसका स्वीकार नहीं करेंगे ।
२. प्रशासनने धर्माचार्योंके मंडपमें सुख-सुविधाओंकी पूर्ति नहीं की हैं । ऐसी स्थितिमें शंकराचार्य कुंभमेलेके लिए कैसे उपस्थित रह सकते हैं ?
३. यह प्रश्न स्थानका नहीं, अपितु शंकराचार्य पीठ एवं सनातन परंपराकी रक्षाका है ।
४. किसी व्यक्तिके दबावमें आकर स्थान आबंटनका निर्णय परिवर्तित करना, यह शंकराचार्यजीके सम्मानका अनादर करनेके समान है ।
५. इस विषयमें चारों पीठ एकत्रित आकर प्रशासनके विरोधमें संघर्ष करनेके लिए सिद्ध हो सकते हैं ।’’ ( संतोंको आंदोलन करनेके लिए विवश करनेवाले मुसलमानप्रेमी सत्ताधारी समाजवादी पक्षको हिंदुओंको वैध मार्गसे फटकारना चाहिए ! – संपादक )
शंकर चतुष्पाद स्थापन करनेके लिए प्रशासनका विरोध
१. स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वतीको चारों पीठोंके शंकराचार्य एकत्रित आने हेतु अपेक्षित शंकर चतुष्पाद स्थान प्रदान करनेके लिए प्रशासनने विरोध किया है ।
२. यह स्थान वितरित करनेवालोंको ही देनेके आदेश भी प्रशासनने स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वतीको प्रदान किए हैं ।
३. शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वतीके प्रतिनिधि स्वामी अविमुक्तेश्वरानंदने १४ दिसंबरको गंगा-यमुना-सरस्वतीके संगमपर स्वामी हरिचैतन्य ब्रह्मचारीको प्रदान किए गए स्थानका पूजन कर वहां मंडप डाल दिया था । इसके अतिरिक्त वहांके तीन स्थानोंपर भी मंडप डाले गए थे ।
४. स्वामी अविमुक्तेश्वरानंदके कथनानुसार इस स्थानपर चारों शंकराचार्य एकत्रित रहेंगे । इससे श्रद्धालुओंको नकली एवं वास्तवके शंकराचार्योंके विषयमें जानकारी प्राप्त होगी । इस स्थानके विषयमें कुंभमेलेके प्रमुख अधिकारी मणिप्रसाद मिश्रने मौखिक स्वरूपमें मान्यता दी थी, ऐसे बताया ।
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ब्राह्मण ही !
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंदके विषयमें शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वतीने बताया, ‘‘हमारे शिष्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंदकी जातिके विषयमें प्रश्न किया जा रहा है । उनकी पूछताछ की गई है । अविमुक्तेश्वरानंद उच्च कुलके ब्राह्मण हैं । उनके विषयकी सर्व कागजात हमारे पास हैं । ऐसा परिवाद करनेवालोंसे संत एवं प्रशासनको सतर्क रहना चाहिए ।’’
सनातन धर्मके विरोधमें षडयंत्र ! – काशी विद्वत् परिषद
काशी विद्वत् परिषदके महामंत्री डॉ. रमाकांत पांडेने कहा, ‘‘कुंभमेलेके नियोजनके विषयमें ऐसी ही परिस्थिती रही, तो उसका महत्त्व समाप्त हो जाएगा । प्रशासनका कार्य सनातन परंपरा एवं शंकराचार्यके सम्मानके विरोधमें हैं । प्रशासन किसीके दबावमें आकर निर्णय लेगा, तो सनातन परंपरा संकटमें आएगी । शंकराचार्यका अनादर सनातन धर्मके विरोधमें किए गए षडयंत्रका ही एक भाग है ।’’
कुंभमेलेका स्थान नहीं छोडेंगे ! -ज्योतिषपीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती
शंकराचार्यने बहिष्कार करनेकी अपेक्षा हिंदुओंको मार्गदर्शन कर उनके धार्मिक अधिकार प्राप्त करने हेतु कृतीशील होना अपेक्षित हैं !
ज्योतिषपीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वतीने कहा, ‘‘कुंभमेलेकी भूमिका प्रश्न अब शेष नहीं है । अब प्रश्न है, आदि शंकराचार्यद्वारा स्थापित किए गए चार पीठोंकी मर्यादाका ! कुंभमेलेका प्रशासन किसीके दबावमें आकर सनातन परंपराके विरोधमें कृत्य कर रहा है । हम वहां जाएं अथवा नहीं जाएं; किंतु स्थान त्याग करनेका प्रश्नही निर्माण नहीं होता । चारों शंकराचार्य एकत्रित आनेपर पाखंडी शंकराचार्योंका पाखंड स्पष्ट होगा, अतः वे कुंभमेलेके अधिकारियोंपर दबाव निर्माण कर रहे हैं ।’’
कुंभमेलेकी पूर्वसिद्धतामें उत्तरप्रदेशके मुसलमानप्रेमी समाजवादी पक्षका अंधा कारोबार !
‘प्रयागराज (अलाहाबाद)में होनेवाले कुंभमेलेकी पूर्वसिद्धता अत्यंत अनियमित रूपसे चल रही है, साथ ही कुंभमेलेकी पूर्वसिद्धता करते समय सत्ताधारी समाजवादी पक्षका ढीला कार्य सामने आया है । एक ही भूखंड दो महंत अथवा अखाडेको प्रदान किया जाना, मेलेके प्रमुख अधिकारियोंकी सूचिमें किसी संस्थाका नाम होना; परंतु उस संस्थाको जिस विभागमें स्थान दिया गया है उस विभागसे संबंधित अधिकारीकी सूचिमें उसका नाम न होना, कुछ स्थानोंपर पहलेसे ही अतिक्रमण किया जाना, ऐसी अनेक समस्याओंका सामना हिंदू धर्माधिकारी एवं हिंदुत्वनिष्ठ संस्थाओंको करना पड रहा है ।
हिंदू कुंभमेलेकी सिद्धताका ब्यौरा ले रहे हैं सत्ताधारी समाजवादी पक्षके मंत्री आजमखान !
विश्वके सबसे बडे धार्मिक समारोहका, अर्थात् हिंदू कुंभमेलेकी सिद्धताका ब्यौरा उत्तरप्रदेशके मुख्यमंत्री अखिलेश यादवके अत्यंत विश्वासपात्र (?) मंत्री आजमखान ले रहे हैं । अक्टूबर २०१२ में ब्यौरेकी बैठकमें आजमखानने कहा था, ‘कुंभमेलेकी पूर्वसिद्धतामें किसी भी प्रकारकी असुविधा सहन नहीं की जाएगी ।’ प्रत्यक्षमें १४ जनवरीको प्रथम स्नान है, फिर भी अभीतक स्थानका वितरण पूर्ण नहीं हुआ है । जो हुआ है, उसमें अधिकांश गडबडी है । अतः २ शंकराचार्य एवं अनेक महंतोंने समय आनेपर कुंभमेलेपर बहिष्कार करनेका और समय आनेपर प्रयागमें न आनेका वक्तव्य किया है।’ ( हिंदू कुंभमेलेकी सिद्धताका ब्यौरा लेने हेतु मुसलमान मंत्रीका नियोजन करनेवाले उत्तरप्रदेशके धर्मनिरपेक्ष राजनेता मुसलमानोंके उर्स अथवा हज यात्रा हेतु क्या किसी हिंदू मंत्रीका कभी नियोजन करेंगे ? साथ ही हज अथवा मक्काकी यात्राके समन्वयके लिए हिंदू मंत्रीका नियोजन मुसलमान कभी स्वीकार करेंगे ? – संपादक )
स्त्रोत – दैनिक सनातन प्रभात