रामनाथी (गोवा) – यहां हो रहे छठे हिन्दू अधिवेशन में हिन्दू जनजागृति समिती के डॉ. उदय धुरी ने कहा कि, आयुर्वेद का महत्त्व जानकर अब पश्चिमी देश आयुर्वेदिक औषधियों का ‘पेटंट’ ले रहे हैं । ऐसा होते हुए भी ‘आयुर्वेद शास्त्र नहीं है’, ऐसा युक्तिवाद करते हुए आयुर्वेदिक उपचार लेनेवाले रोगियों को बीमा प्रतिष्ठानों से चिकित्सा बीमा राशि नहीं दी जाती । ‘एलोपैथी’ के समान ही आयुर्वेदिक उपचार पद्धति के लिए भी चिकित्सा बीमा किया जाता है । उसके लिए लाभांश (प्रीमियम) भी लिया जाता है । प्रत्यक्ष में चिकित्सा बीमा राशी देते समय बीमा प्रतिष्ठान स्वयं का दायित्व झटक देते हैं, ऐसा कटु अनुभव आयुर्वेदिक उपचार लेनेवालों को हो रहा है । बीमा प्रतिष्ठान आयुर्वेदिक रोगियों के सामने जिस प्रकार की शर्त रखते हैं, वैसी शर्त एलोपैथी के रोगियों के सामने नहीं रखी जाती । प्राचीन और परिपूर्ण आयुर्वेद उपचारों की उपेक्षा कर रोगियों को उससे वंचित रखनेवाले बीमा प्रतिष्ठान समाजद्रोही ही हैं । आनेवाली १ जुलाई से भारत में वस्तु सेवा और जी.एस.टी लागू होनेवाला है । उसके अनुसार ‘ऐलोपैथी’ की केवल जीवनावश्यक औषधियों पर लगभग ५ प्रतिशत तथा आयुर्वेद की सभी औषधियों पर १२ प्रतिशत कर लगाने का निर्णय लिया गया है । एक ओर आयुष मंत्रालय आयुर्वेद का प्रचार करता है, तो दूसरी ओर अर्थ मंत्रालय द्वारा आयुर्वेदीय औषधियों का मूल्य बढाना, यह दोगलापन है ।