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हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए अपनी चैतन्यशक्ति जागृत कर उसके माध्यम से कार्य करना आवश्यक !

प.पू. परशराम पांडे महाराजजी ने षष्ठ अखिल भारतीय हिन्दू अधिवेशन के लिए दिया संदेश !

प.पू. परशराम पांडे महाराजजी

‘उपस्थित मान्यवर, सज्जन, देशप्रेम के लिए आहुति देनेवाले, सनातन धर्म राज्य (हिन्दू राष्ट्र) स्थापना की उत्कंठा रखनेवाले, अपने कार्य में समृद्ध और अनुभवसिद्ध, परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के चरणों में लीन होकर कार्य करनेवाले, उनकी कृपा प्राप्त करनेवाले, हे धर्माभिमानी हिन्दुओ, आज मुझे आपके सामने आत्मनिवेदन करने का अवसर मिला है, इसे मैं अपना सौभाग्य समझता हूं । सनातन धर्म राज्य की स्थापना के लिए यह हिन्दू अधिवेशन प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी आयोजित किया जा रहा है । इसके लिए आज हम छठवीं बार एकत्र हो रहे हैं ।

अब तक हुए अधिवेशन आप सभी ने मिलकर भलीभांति संपन्न किए हैं और उसका प्रभाव भी आज बडी मात्रा में दिखाई दे रहा है ।

१. हिन्दू राष्ट्र स्थापना के कार्य में सम्मिलित होना, अपना भाग्य चमकाने समान है : परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने सनातन धर्म राज्य की संकल्पना सनातन संस्था की स्थापना से पहले ही दी है । उन्होंने कहा है, ‘वर्ष २०२३ में सनातन धर्म राज्य अवश्य स्थापित होगा ।’ इस दृष्टि से उसकी पूर्वतैयारी हो चुकी है । इसमें हमें केवल सहभागी होकर साधना करनी है और अपना भाग्य चमकाना है । आज की स्थिति में हिन्दुआें पर हो रहे अत्याचार तथा देश की भयानक एवं दयनीय स्थिति को देखते हुए आपके जैसे धर्माभिमानी इस कार्य में सहयोग कर रहे हैं, यह महान भाग्य है । सनातन धर्म राज्य की स्थापना होने पर हिन्दू धर्माभिमानियों द्वारा किए जा रहे विविध प्रकार के धर्मकार्य एक छत्र के तले होंगे । इसके लिए सभी संगठनों को एकजुट होकर सनातन धर्म राज्य की स्थापना करने को अपना कर्तव्य समझकर उसके अनुसार कार्य करना होगा । आज हम सभी अपने-अपने अलग-अलग ध्येय रखकर कार्य कर रहे हैं । हम यदि प्रथम ‘हिन्दू राष्ट्र’ स्थापना का ध्येय सामने रखकर कार्य करेंगे, तो हमारी संगठित शक्ति के प्रभाव से हिन्दू राष्ट्र अवश्य स्थापित होगा । हिन्दू राष्ट्र स्थापित होने पर आज हममें से प्रत्येक व्यक्ति जिस अलग-अलग ध्येय को पूर्ण करने के लिए कार्य कर रहा है, वह हमें सहज-सुलभ साध्य होगा ।

२. श्रीमद्भगवद्गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिए वचनानुसार कार्य करना आवश्यक ! : ऐन युद्ध के समय अर्जुन जैसा सामर्थ्यशाली क्षत्रिय जब शक्तिहीन हो गया था, तब श्रीकृष्ण ने उसे युद्ध के विषय में कुछ बताए बिना केवल साधना के विषय में ही बताया ।

२ अ. ‘स्व’का विचार न कर पूर्ण मन लगाकर कार्य करना 

हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम् ।
तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्‍चयः॥

– श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय २, श्‍लोक ३७

अर्थ : युद्ध में तुम मारे गए, तो स्वर्ग जाओगे और युद्ध में जीतोगे, तो पृथ्वी के राज्य का उपभोग करोगे; इसलिए हे कुंतीपुत्र अर्जुन, तुम युद्ध का निश्‍चय कर खडे हो जाओ । ‘भगवान श्रीकृष्ण एवं परात्पर गुरु डॉ. आठवले, आपके चरणों में कोटि-कोटि   प्रार्थना करता हूं कि आप ही हमसे सामर्थ्यपूर्वक कार्य करवा लीजिए और उसमें सफलता प्राप्त करवाइए ।’

– प.पू. परशराम पांडे, सनातन आश्रम, देवद, पनवेल. (५.६.२०१७)

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