पौष कृ. २, कलियुग वर्ष ५११४
अखाडोंद्वारा शंकर चतुष्पथ संकल्पनाको विरोध !
प्रयागराज : कुंभमेलेमें चारों पीठोंके शंकराचार्य एक ही स्थानपर रहें, इसके लिए प्रस्तुत की गई शंकर चतुष्पथ संकल्पनाको १३ अखाडोंद्वारा विरोध किया गया है । प्रशासनने इस संकल्पनाको मान्यता दी है । ऐसी चेतावनी दी गई है कि यदि प्रशासनने इसे मान्यता दी, तो १३ अखाडे कुंभमेलेके स्नानका बहिष्कार करेंगे । इसके साथ ही अखाडेके पदाधिकारियोंने यह भी कहा कि शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती कुंभमेलेका वातावरण बिगाडनेका प्रयत्न न करें । (हिंदू धर्मपर तथा राष्ट्रपर अनेक संकट होते हुए भी उसके विरोधमें कुछ करनेके स्थानपर अखाडे आपसमें ही वाद-विवाद कर रहे हैं ! उनकी इस वृत्तिके कारण ही उनके विषयमें आदर प्रतीत होनेके स्थानपर टीका-टिप्पणी की जाती है ! – संपादक)
२८ दिसंबरको बाघंबरी गादी आश्रममें हुई बैठकमें शंकर चतुष्पथ संकल्पनाका विरोध करनेका निर्णय लिया गया । पुराने अखाडेके महामंत्री महंत हरि गिरीने यह प्रस्ताव प्रस्तुत किया था, जो सभीकी संमतिसे मान्य किया गया । तदुपरांत दूसरा प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया कि वर्ष २०१० के कुंभमेलेमें वैष्णव अखाडेके स्नानकी शोभायात्रामें शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वतीके अनुयायियोंने घुसनेका प्रयत्न किया था । इसकी पुनरावृत्ति नहीं होनी चाहिए, ऐसी व्यवस्था प्रशासनको करनी चाहिए । इन दोनों प्रस्तावोंपर लिए गए निर्णयकी जानकारी प्रशासनको दी गई ।
इस बैठकमें नरेंद्र गिरी, महंत प्रेम गिरी, महंत दुर्गादास, श्रीपंच राजेंद्र दास, महंत कैलाशानंद, महंत धर्मदास, महंत प्रेमपुरी, महंत रामकिशोर दास तथा सर्व अखाडोंके पदाधिकारी उपस्थित थे ।
कुंभमेलेके नियोजनमें गडबडी !
१. कुंभमेलेके लिए सुविधाएं जुटानेकी अंतिम दिनांक ३१ दिसंबर होते हुए भी अबतक अनेक कार्य अधूरे हैं ।
२. मकरसंक्रांतितक भी सुविधाओंकी पूर्तिका कार्य पूर्ण होनेकी संभावना नहीं है ।
३. जो कार्य पूर्ण हो चूके थे, उनमें भी अनेक गंभीर स्वरूपकी त्रुटियां दिखाई दे रही हैं ।
४. मुख्य सचिवका आदेश होनेके उपरांत भी अबतक कुंभमेलेके अधिकारी एवं कर्मचारियोंकी कामचोरी चालू ही है ।
५. गंगा घाट तथा गंगा नदीके किनारेपर अस्वच्छता एवं दुर्गंधपर कोई भी उपाययोजना नहीं की गई है ।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात