पाकिस्तान कि राजनीति में हिन्दू … !! सुनकर मजाक जैसा लगता है ना ? खासकर आज के समय में जब पाकिस्तान में हिन्दुओं कि हालत बद से बदतर होती जा रही है ! ऐसे में अगर कोई ये कहे कि, पाकिस्तान की राजनीति में एक हिन्दू का बहुत बडा योगदान रहा है तो विश्वास ही नहीं होगा ! परंतु ये बात एकदम सही है और ये किस्सा भी कोई पुराना नहीं है ये बात भारत पाकिस्तान के १९७१ के युद्ध के भी बाद की है !
राणा चंद्र सिंह नामक हिन्दू राजपूत अकबर कि जन्मस्थली उमरकोट के जागीरदार थे और साथ ही जुल्फिकार अली भुट्टो और बेनज़ीर भुट्टो के करीबी मित्र भी थे।राणा चंद्र सिंह पाकिस्तान पीपल्स पार्टी कि स्थापना करनेवालों में से एक सदस्य थे।
राणा का पाकिस्तानी राजनीति में अच्छा खासा दखल था और उनका ओहदा भी बहुत ऊँचा था। पाकिस्तान में रहकर और भुट्टो के करीबी होकर भी उन्होंने ना कभी अपना धर्म बदला ना कभी किसी की हिम्मत हुई धर्म के नाम पर उनको कुछ बोलने की।
राणा का जन्म १९३१ में उमरकोट में हुआ था। आजादी के समय बंटवारे के बाद भी राणा का परिवार पाकिस्तान में ही रहा। पाकिस्तान में हिन्दू अल्पसंख्यक है इसलिए राणा की उपलब्धि और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। एक मुस्लिम देश में अल्पसंख्यक हिन्दू होने के बाद भी राणा चंद्र सिंह ने पाकिस्तान में लगातार ५३ साल तक चुनाव जीता।
यही नहीं चंद्र सिंह ने १९७७ से लेकर १९९९ तक उमरकोट से चुनाव जीता। इन सबके अलावा राणा चंद्र सिंह पाकिस्तानी सरकार में केन्द्रीय मंत्री भी रहे।
बाद में उन्होंने पार्टी छोड़कर निर्दलीय चुनाव लडा और जीत हासिल की। राणा चंद्र सिंह को पाकिस्तानी राजनीति का शेर कहा जाता था। उन्हें अपने हिन्दू होने पर गर्व था और वो अपनी बात बेखौफ और बेबाक तरीके से रखते थे।
२००४ में राणा चंद्र सिंह को लकवा मार गया और पांच साल बीमार रहने के बाद २००९ में उनका निधन हो गया। उनके निधन के समय प्रधानमंत्री से लेकर राष्ट्रपति ने उनकी मृत्यु पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि, राणा चंद्र सिंह पाकिस्तान के शेर थे, पाकिस्तान पीपल्स पार्टी और पाकिस्तान के लिए उनका योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता।
आज भी उमरकोट के किले में राणा चन्द्रसिंह का परिवार रहता है ये वही किला है जहाँ मुगल बादशाह अकबर का जन्म हुआ था।
देखा आपने अल्पसंख्यक होने के बाद भी अपनी योग्यता और व्यक्तित्व की वजह से राणा चंद्र सिंह मुस्लिम देश पाकिस्तान के सबसे सम्मानित हिन्दू बने !
स्त्रोत : यंगिस्थान