पौष कृ. ३, कलियुग वर्ष ५११४
प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) : ज्योतिषपीठके शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वतीजीने मनकामेश्वरमें पत्रकारोंसे बोलते समय कहा कि देशमें १२१ लोग शंकराचार्य बने बैठे हैं । सभीसे लडाई नहीं लडी जा सकती अथवा सभीको न्यायालयमें भी नहीं घसीटा जा सकता है; इसलिए कि वहां न्याय मिलनेमें अनेक वर्ष लग जाएंगे । ढोंगी शंकराचार्योंसे श्रद्धालुओंको बचानेके लिए शंकर चतुष्पथकी मांग की गई है । (हिंदुओंमें धर्मशिक्षाके अभाववश ही धर्मकी स्थिति इतनी दयनीय हो गई है ! – संपादक) मेरी मांग आज भी वही है । जिस स्थानपर मंडप डाला गया था, वही स्थान हमें चाहिए ।
शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वतीने आगे कहा, ‘‘चार पीठ एवं सात संन्यासी अखाडाका केंद्र शंकराचार्य ही हैं । अत: उनके नामके चतुष्पथ की स्थापनासे पूरे शंकराचार्य परिवारको एक होनेका अवसर उपलब्ध होता । वर्ष १९७७ के कुंभमें चारों शंकराचार्य साथ थे । अखाडोंद्वारा चतुष्पथका विरोध करना आश्चर्य ही है । इसके लिए मेला प्रशासन ही दोषी है । प्रशासन ने मेरे पास आकर चतुष्पथ की मांग स्वीकारी थी । प्रशासनने स्वयंको बचानेके लिए अखाडोंको आगे कर दिया । महंत हरि गिरीने चतुष्पथ मांगका समर्थन किया था एवं वे मुझसे मिलकर भी गए थे । अब एकाएक उनमें यह परिवर्तन हो गया है कि वे इसका विरोध करने लगे हैं । उन्होंने कहा, ‘हरिद्वार कुंभमें शंकराचार्य चतुष्पथकी स्थापना अखाडोंद्वारा ही हुई है । हमारा अखाडोंसे कोई बैर नहीं है, अपितु ढोंगी बहरूपिए शंकराचार्योंसे है, इसलिए कुंभमें उनका प्रवेश न होने दें । हमने मां गंगा, कुंभ पर्व एवं संगमका बहिष्कार नहीं किया है । इतना अवश्य है कि इस मेलेसे अरुचि अवश्य हुई है, इसलिए कि पहले कुंभ पर्वको मेला बनाया गया । अब उसे खेलकूदके मेलेका स्वरूप दिया जा रहा है ।’’ (हिंदुओंके धार्मिक उत्सवका ऐसा उपहास उडानेवाले सत्ताधारी समाजवादी दलके हाथोंमें सत्ता सौंप देना, यह हिंदुओंको मिला दंड योग्य ही है ! – संपादक)
कुंभमेलेके वाद
महिलाओंपर अत्याचारोंपर विहिंप कुंभमेलेमें चर्चा करेगी
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात