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शिर्डी के श्री साई संस्थान को ‘ब्रॅण्ड अ‍ॅम्बेसिडर’ की नियुक्ति करने के लिए हिन्दुत्वनिष्ठों द्वारा तीव्र विरोध

श्री साईबाबा स्वयं ही श्रद्धा का दूत (ब्रॅण्ड) होते हुए संस्थान के लिए पृथक ‘ब्रॅण्ड अ‍ॅम्बेसिडर’ की क्या आवश्कयता है ?

मुंबई : साईभक्त देश-विदेश से शिर्डी में दर्शन हेतु आते हैं । दर्शन से पवित्र होकर आध्यात्मिक अनुभूतियां प्राप्त करते हैं तथा भक्तिभाव से अर्पण करते हैं; किंतु ये सभी करने के लिए उन्हें शिर्डी में आने के लिए निमंत्रित करने की आवश्यकता नहीं होती । भक्त ईश्वर का सगुण रूप होनेवाले संतों की ओर उनमें विद्यमान प्रेम, वात्सल्य तथा चैतन्य के प्रभाव से आकर्षित होते हैं । किंतु संस्थान के न्यासी आध्यात्मिक ‘ब्रॅण्ड अ‍ॅम्बेसिडर’ नियुक्त करने की सिद्धता कर रहे हैं । अतः हिन्दु जनजागृति समिति की ओर से यह प्रश्न पूछा गया कि, ‘संत स्वयं की एक उच्च आध्यात्मिक व्यक्तिमत्व तथा श्रद्धा के दूत (ब्रॅण्ड) होते हुए भी उनके मंदिर के लिए पृथक ‘ब्रॅण्ड अ‍ॅम्बेसिडर’ की नियुक्ति करने की क्या आवश्यकता है ?’ हिन्दु जनजागृति समिति के महाराष्ट्र संगठक श्री. सुनील घनवट ने एक प्रसिद्धीपत्रक के माध्यम से अपना मत निर्भिडता से व्यक्त किया है कि, ‘श्री साईबाबा समाधी शताब्दी समारोह के निमित्त संस्थान के अध्यक्ष सुरेश हावरे ने भी श्री साई संस्थान के लिए ‘ब्रॅण्ड अ‍ॅम्बेसिडर’ की नियुक्त करने का जो वक्तव्य किया है, वह निषेधार्थ है ।’

संत एवं मंदिरों के आध्यात्मिक महत्त्व के संदर्भ में अधिक जानकारी प्राप्त करने की अपेक्षा इस प्रकार से ‘ब्रॅण्ड अ‍ॅम्बेसिडर’ की नियुक्त करने का षडयंत्र रचना, यह मंदिर का एक प्रकार का बाजारीकरण करने के समान ही है । मंदिर हिन्दुओं की आधारशीला तथा चैतन्य का अखंड स्त्रोत है, यह जानने की अपेक्षा उसका आध्यात्मिक लाभ श्रद्धालुओं को हो, इसलिए वास्तविक रूप से प्रयास करना आवश्यक है । ऐसे करने की अपेक्षा किसी ‘प्रायवेट लि. कंपनी’ के अनुसार उत्पादन बढाने के लिए (अधिक संख्या मे श्रद्धालु आएं तथा अर्पण अधिक संख्या में हो, इसलिए ) किया जानेवाला यह निंदनीय प्रयास है ।

मंदिरों को ‘ब्रॅण्ड अ‍ॅम्बेसिडर’ की नियुक्ती कर अनुचित परंपरा निर्माण न करें । ऐसे करने से संत तथा देवताओं की अपेक्षा चित्रपट कलाकार तथा क्रीडापट्टुओं को अधिक महत्त्व देने के समान होगा । श्री. घनवट ने यह प्रश्न भी उपस्थित किया कि, ‘आजतक क्या कभी किसी भी मस्जिद अथवा चर्च के लिए ‘ब्रॅण्ड अ‍ॅम्बेसिडर’ नियुक्ति करने का समाचार सुना है ?’, यदि मंदिर के न्यासी साधना करनेवाले तथा भक्त रहेंगे, तो वे श्रद्धालुओं की श्रद्धा एवं भक्ति वृाqद्धंगत करनेवाले अभियान आयोजित करेंगे; किंतु धार्मिकता की अपेक्षा व्यावसायिक मानसिकता के न्यासी रहेंगे, तो क्या होता है, यह इस उदाहरण से ध्यान में आता है । इससे यह बात भी ध्यान में आती है कि, ‘धर्मनिरक्षर’ हिन्दुओं को धर्मशिक्षण प्राप्त होना कितना आवश्यक है ।’

आजतक के विभिन्न शासननियुक्त सदस्यों ने आर्थिक अनुचित व्यवहार कर संस्थान के नाम को कालिख पोछी है । उसे अब ‘ब्रॅण्ड अ‍ॅम्बेसिडर’ का मुलामा
चढाने से कुछ भी नहीं होगा । हिन्दुओं के मंदिरों का सरकारीकरण करने का ही यह दुष्परिणाम है । अतः हिन्दु जनजागृति समिति ने यह चेतावनी दी है कि,
यदि ‘ब्रॅण्ड अ‍ॅम्बेसिडर’ की अनावश्यक कुप्रथा श्रद्धालुओं पर बलपूर्वक थोपी जाएं, तो श्रद्धालुओं को साथ लेकर आंदोलन करेंगे ।’

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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