अमरनाथ यात्री बस पर आतंकियों का हमला
सूरत : आतंकियों की बंदूक से निकली गोलियों से एक-एक कर बस के यात्री गिर रहे थे। दिल दहला देनेवाले इस मंजर के बीच बस में चार बाहदुर नौजवान ऐसे थे, जो खुद की जान की परवाह किए बगैर बस के यात्रियों की जिंदगी बचाने कूद पड़े। गोलियां उनके शरीर को चीरकर निकलती रहीं, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और ५० जिंदगियां बचा लीं। घायल यात्रियों का कहना है कि, इन बहादुर जवानों ने बस का गेट बंद न किया होता तो कोई जिंदा नहीं बचता !
ऑपरेटर हर्ष और क्लीनर मुकेश : चार गोलियां लगी, लेकिन बस का गेट बंद कर आतंकियों को रोका
मुकेश पटेल और हर्ष देसाई बस के गेट के पास बैठे थे। फायरिंग शुरू होते ही मुकेश के पास बैठे यात्री की मृत्यु हो गई। फायरिंग करते आतंकी दौड़ते हुए बस के गेट की भागे भागे तो मुकेश और हर्ष नीचे झुककर गेट बंद करने भागे। तभी दो गोलियां हर्ष के कंधे और हाथ पर लगीं। एक गोली मुकेश के गाल को चीरते हुए निकल गई। लेकिन दोनों ने रेंगते हुए बस का गेट लॉक कर दिया। इससे आतंकी अंदर नहीं घुस पाए !
संदेह : पंक्चर वाले ने जानबूझकर लेट किया
घायल महाराष्ट्र की योगिता बेन ने बताया कि, हम श्रीनगर से ६.३० बजे रवाना हुए थे। हमारे साथ तीन और बसें थी। रास्ते में बस पंक्चर हो गई। हम पीछे रह गए थे। पंक्चर निकालने के बाद रवाना होने लगे तभी पंक्चरवाले ने कहा कि, एक और पंक्चर है, इससे करीब २ घंटे लेट हो गए।
हम मदद के लिए चिल्लाते रहे, लोग हंस रहे थे
घायल वलसाड के राजेश नवल भाई ने बताया कि, हमलेवाली जगह के पास कई दुकानें थीं। बस में महिलाएं, वृद्ध चिल्ला रहे थे। लेकिन दुकानदार हमें देखकर हंस रहे थे। कोई भी मदद के लिए आगे नहीं आया।
घायलों को सिविल अस्पताल में भर्ती करवाया
घायलों को एयरपोर्ट से सीधे सिविल अस्पताल में भर्ती करवाया। वलसाड निवासी मुकेश वित्तल पटेल, नानी दमन निवासी राजेश नवलभाई प्रजापति, मयूरी, वापी निवासी प्रेम गोपाल, वलसाड निवासी रमेश कन्नू भाई पटेल, महाराष्ट्र के कासागाम दहनू निवासी यशवंत नावूभाई डोंगरे और योगिता को भर्ती कराया।
आतंकी तीन तरफ से बस पर ऑटोमैटिक हथियारों से लगातार गोलियां चला रहे थे। एक आतंकी बस को रोकने के लिए सामने आकर गोलियां चलाने लगा। लोग गिर रहे थे, कांच उछल रहे थे। बस दो किमी दौड़ाने के बाद सुरक्षित स्थान पर पहुंचने के बाद ही बस रोकी। बस रुक जाती तो शायद कोई नहीं बच पाता। कुछ देर में आर्मी आ गई।
महाराष्ट्र के धानु निवासी यशवंत भाई (५५) ने जब लोगों को गोलियां लगकर गिरते देखा तो तुरंत आवाज लगातार महिलाओं को सीट के नीचे छुपने को कहा। पत्नी योगिता और तीन महिलाओं को सीट के नीचे छिपाकर यशवंत उनकी ढाल बन गए। लगातार होती फायरिंग में दो गोलियां उनकी पीठ और जांघ पर लगीं, लेकिन वे हिले नहीं। कुछ देर बाद वे बेहोश हो गए, अस्पताल में होश आया। फर्श से टकराकर एक गोली पत्नी के पैर में भी लगी।
स्त्रोत : दैनिक भास्कर