न्यूयॉर्क : लगभग साढे ४ अरब वर्ष पुरानी इस धरती पर अब तक ऐसा 5 बार हुआ है जब सबसे ज्यादा फैली प्रजातियां पूरी तरह विलुप्त हो गई हों। पांचवीं घटना में डायनॉसॉर तक का सफाया हो गया था और वैज्ञानिकों के अनुसार, अब यह धरती छठे महाविनाश के दौर में प्रवेश कर चुकी है।
नैशनल अकैडमी ऑफ साइंसेज के एक नए शोध में यह खुलासा हुआ है कि, धरती पर चिडिया से लेकर जिराफ तक हजारों जानवरों की प्रजातियों की संख्या कम होती जा रही है। वैज्ञानिकों ने जानवरों की घटती संख्या को ‘वैश्विक महामारी’ करार दिया है और इसे छठे महाविनाश का हिस्सा बताया है। बीते ५ महाविनाश प्राकृतिक घटना माने जाते रहे हैं परंतु वैज्ञानिकों के अनुसार इस महाविनाश की वजह बडी संख्या में जानवरों के भौगोलिक क्षेत्र छिन जाने को बताया है।
मेक्सिको सिटी की यूनिवर्सिटी में रिसर्चर गेरार्दो सेबायोश का कहना है कि, यह शोध फिलहाल अकैडमिक रिसर्च पेपर के लिए लिखा गया है। अभी इसपर कुछ भी कहना ठीक नहीं होगा।
स्टडी के अनुसार, जमीन पर रहने वाले सभी रीढधारी जंतु- स्तनधारी, पक्षी, रेंगनेवाले और उभयचर की प्रजातियों का ३० प्रतिशत हिस्सा विलुप्त हो चुका है। दुनिया के अधिकांश हिस्सों में स्तनधारी जानवर भौगोलिक क्षेत्र छिनने की वजह से अपनी जनसंख्या का ७० प्रतिशत हिस्सा खो चुके हैं। चीता की संख्या घटकर केवल ७ हजार रह गई है तो अफ्रीकी शेरों की संख्या भी वर्ष १९९३ से लेकर अब तक ४३ प्रतिशत घट गई है। वैज्ञानिकों के अनुमान के अनुसार बीते १०० वर्षाें में २०० से ज्यादा प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं।
स्त्रोत : नवभारत टाइम्स