इस शोध के लिए जग्गी वासुदेव को पारितोषिक ही देना चाहिए !
नई देहली : ‘स्वयं को सद्गुरु कहलानेवाले जग्गी वासुदेव ने एनडीटीवी इस वृत्तवाहिनी पर बरखा दत्त इस हिन्दूद्रोही सूत्रसंचालिका से भेंटवार्ता करते हुए एक ‘ऐसा’ बेतुका शोध लगाया है कि, ‘हिन्दू’ यह धर्म नहीं, अपितु वह केवल एक भौगोलिक संज्ञा है !’
जग्गी वासुदेव हिन्दू धर्म के संदर्भ में धर्मग्रंथ में दिए गए सूत्रों को तोड़मरोड़ कर स्वयं के मत प्रस्तुत करने में (कु)प्रसिद्ध हैं ! इसी कारण से हिन्दू एवं हिन्दू धर्म के विरोध में द्वेष करनेवाली वृत्तवाहिनियों पर उनकी मांग बढ रही है !
१. जग्गी वासुदेव ने अपने वक्तव्य के समर्थन में अनेक सूत्र उपस्थित किए हैं। उन्होंने कहा कि, जो लोग हिमालय एवं सहस्रों वर्षों से सिंधू नदी के मध्यभाग में निवास करते थे, उन्हें ‘हिन्दू’ कहते थे। यह एक भौगोलिक संज्ञा है। इसका धर्म से कोई लेनादेना नहीं है। भारत पर प्राचीन समय से अनेक बार आक्रमण हुए। फिर भी उन्हें भारत पर संपूर्ण राज्य करना संभव नहीं हुआ। (आक्रामकों को भारत पर पूरी तरह राज्य करना क्यों असंभव हुआ, यह भी जग्गी वासुदेव ने बताना चाहिए ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात) इन आक्रामकों ने हिमालय एवं सिंधू नदी के मध्यभाग में रहनेवाले लोगों को ‘हिन्दू’ नाम दिया। (यदि जग्गी का कहना सत्य है, तो क्या वे इसका उत्तर देंगे कि प्राचीन समय में सीधे अफगानिस्तान (उस समय का गांधार प्रांत) से लेकर ब्रह्मदेश (वर्तमान का म्यानमार), इंडोनेशिया, मलेशिया, कंबोडिया (उस समय का कम्बोज), सिंगापुर (उस समय का सिंहपुर) एवं बिलकुल विएतनाम तक फैले प्रदेश के लोग स्वयं को ‘हिन्दू’ क्यों कहलवाते थे ? – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)
२. जग्गी कहते हैं कि, हिन्दू धर्म, धर्म की प्रचलित व्याख्या में नहीं बैठता। अन्य धर्मों को संस्थापक, एक धर्मग्रंथ, धर्मपालन के निश्चित नियम होते हैं। उसे ही ‘धर्म’ कहते हैं। हिन्दू धर्म के संदर्भ में ऐसा नहीं है ! (हिन्दू धर्म जग्गी के ‘धर्म’ अर्थात ‘रिलीजन’ इस व्याख्या में नहीं बैठता, यह सत्य है, परंतु सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि यह एक जीवनपद्धति है। हिन्दू धर्म को संस्थापक नहीं है; वह अनादि एवं स्वयंभू है। उसे अंत नहीं। इसीलिए अन्य धर्म एवं संस्कृतियां कालबाह्य हो गर्इं। हिन्दू धर्म के संदर्भ में ऐसा नहीं हुआ एवं होगा भी नहीं ! हिन्दू धर्म मानता है कि प्रत्येक जीव का ध्येय मोक्षप्राप्ति है। इसके लिए ‘जितने व्यक्ति उतनी प्रकृतियां एवं उतने साधना मार्ग’ यह सिद्धांत उसे अभिप्रेत है। इसीलिए हिन्दू धर्म में एक धर्मग्रंथ एवं धर्मपालन के निश्चित नियम नहीं हैं; परंतु सभी मार्ग धर्माचरण में हो, ऐसा आग्रह किया गया है ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)
३. जग्गी आगे कहते हैं कि, भारत में प्राचीन समय से केवल संप्रदाय ही अस्तित्व में थे। अलग अलग देवी-देवताओं की पूजाअर्चना करते थे एवं उनके अलग अलग पूजास्थल थे। मंदिर में उच्चवर्णीयों के अतिरिक्त अन्य लोगों के लिए प्रवेश की अनुमति नहीं होती थी। इसलिए हिन्दू धर्म में ‘घरवापसी’ की अवधारणा नहीं है। (‘घरवापसी’ यह अवधारणा जिन हिन्दुओं को बलपूर्वक कलंकित कर उनका धर्मपरिवर्तन किया गया एवं जो हिन्दू पुनः हिन्दू धर्म में आना चाहते हैं, उनके लिए शुद्धिकरण कर पुनः हिन्दू धर्म में प्रवेश देने की छत्रपति शिवाजी महाराजद्वारा आरंभ की गई प्रक्रिया है। इससे सिद्ध होता है कि, हिन्दू धर्म बदलते समय के अनुसार कुछ परिवर्तन स्वीकारता है ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)
४. हिन्दू धर्म ही मुक्ति देता है एवं हिन्दुओं का अर्थशास्त्र, गणित, खगोलशास्त्र आदि वैज्ञानिक क्षेत्रों का ज्ञान अत्यंत विकसित था। यह बात जग्गी वासुदेव ने इस भेंटवार्ता में बरखा दत्त की अप्रसन्नता होते हुए भी स्वीकार की ! (इसे हिन्दुओं का बड़ा सौभाग्य ही कहना होगा ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात