पश्चिम महाराष्ट्र देवस्थान समिति के अंतर्गत आनेवाले पंढरपुर देवस्थान की सैंकड़ो एकड भूमि में भ्रष्ट्राचार हुआ है ! अपितु अन्य देवस्थानों के भूमिओं के लिए भूमि प्रविष्टि की वही पद्धति लागू करना अर्थात क्या उन भूमिओं को भी भ्रष्ट्राचार करने के लिए खुले छोडने के समान नहीं है ? देवस्थानों के भूमिओं का उपयोग उचित प्रकार से होने के लिए देवस्थानें सरकार के अधिकार से मुक्त कर भक्तों के अधिकार में देना आवश्यक है ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात
मुंबई : राज्य में देवस्थानों की भूमिओं का हिसाब रखने के लिए पश्चिम महाराष्ट्र देवस्थान समिति जैसी प्रविष्टि पद्धति लागू की गई है। पश्चिम महाराष्ट्र देवस्थान समिति जिस प्रकार से अपने अधिकार में होनेवाली भूमिओं की प्रविष्टि रखती है, उसी प्रकार अन्य देवस्थानों को भी वैसी ही प्रविष्टि रखने के लिए बताया जाएगा। राज्य के देवस्थानों के संदर्भ में एक ही ‘मॉडेल अॅक्ट’ अर्थात ‘एक ही कानून’ करने के संदर्भ में भी सरकार विचार कर रही है ! (पश्चिम महाराष्ट्र देवस्थान समिति में लक्षावधी रुपएं का भ्रष्टाचार हुआ है। साथ ही अपराध अन्वेषण विभागद्वारा भी इस भ्रष्टाचार की जांच आरंभ है। ऐसे में, उसी समिति की प्रविष्टि पद्धति का अनुकरण करने के लिए बताना अनाकलनीय बात है ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)
राज्य में देवस्थानों के अधिकार में होनेवाली भूमिओं के संदर्भ में राजस्व विभाग के प्रधान समिति की बैठक मंत्रालय में १३ जुलाई को संपन्न हुई। राजस्व विभाग के प्रधान सचिव श्री. मनुकुमार श्रीवास्तव, कोल्हापुर के जिलाधिकारी श्री. अविनाश सुभेदार, पश्चिम महाराष्ट्र देवस्थान समिति के सचिव श्री. विजय पवार आदि बैठक के लिए उपस्थित थे।
पश्चिम महाराष्ट्र देवस्थान समिति के अधिकार में १० सहस्त्र हेक्टर भूमि है। जिस भूमि की जिस पद्धति से प्रविष्टी रखी जाती है, उसी पद्धति का उपयोग राज्य के अन्य देवस्थानों के भूमिओ के लिए भी किया जाएगा। इस संदर्भ में, ऐसे बताया जा रहा है कि, ‘देवस्थानों की भूमि सुरक्षित रहें, साथ ही भूमि का लाभ उसी देवस्थानों को ही प्राप्त हो’ इस सभी के पीछे केवल यह उद्देश्य है !’ (जहां पश्चिम महाराष्ट्र देवस्थान समिति की ही भूमि सुरक्षित नहीं है, वहां अन्य देवस्थानों की भूमि सुरक्षित कैसी रह सकती है ? – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात