श्री क्षेत्र तुळजापुर (जिला धाराशिव, महाराष्ट्र) के श्री तुळजाभवानी मंदिर का सरकारीकरण किया गया है। कुछ देवीभक्तोंद्वारा मंदिर सरकारीकरण के पश्चात मंदिर की हुई दुःस्थिति का लिया गया लेखाजोखा यहां प्रस्तुत कर रहे हैं . . .
मंदिर में इस प्रकार के दुष्कृत्य करनेवालों पर क्या कभी देवी मां की कृपा हो सकती है ?
१. मंदिर का कार्य किसी सरकारी कार्यालय की भांति चलाए जाने से नित्य पूजाविधि में आयी हुई समस्याएं !
१ अ. प्रशासन की सरकारी पद्धतियों के कारण देवस्थान के निर्णय प्रलंबित : श्री तुळजाभवानी मंदिर का सरकारीकरण किए जाने से वहां का सभी कार्य जिलाधिकारी देखते हैं। जिलाधिकारी किसी जिले में २ – ३ वर्षों के लिए होते हैं। उनका स्थानांतरण होने के पश्चात वो अन्यत्र चले जाते हैं। वो उनके २-३ वर्षों के कार्यकाल में मंदिर से संबंधित निर्णय नहीं लेते; उससे मंदिर की दैनंदिन कार्यपद्धति में बहुत समस्याएं उत्पन्न होती हैं !
१ आ. अपने पद का व्यक्तिगत लाभ हेतु उपयोग करनेवाले भ्रष्ट प्रशासनिक अधिकारी : श्री भवानीदेवी को देवस्थान की ओर से कभी एक सामान्य मिठाई का भोग भी नहीं चढाया जाता ! यहां प्रशासनिक अधिकारी स्थानांतरित हो कर आते हैं, भ्रष्टाचार करते हैं और मंदिर को अपकीर्त कर चले जाते हैं। इन अधिकारियों को उस देवता के प्रति किसी प्रकार की आस्था नहीं होती। वो केवल अपने पद एवं अधिकार का अपने व्यक्तिगत लाभ हेतु किस प्रकार से उपयोग होगा, केवल यही विचार कर अपने अधिकारों का दुरूपयोग करते हैं। इन अधिकारियों में अपने अधिकारों का उपयोग मंदिरों में सुधार एवं सुविधाएं उपलब्ध कराने हेतु करने की कुछ भी इच्छाशक्ति ही नहीं होती !
२. देवी के आभूषणों के संदर्भ में निष्क्रिय प्रशासन
२ अ. आभूषणों में सुधार करने के मांग की उपेक्षा ! : देवी के प्राचीन आभूषण जिलाधिकारी के अधिकार में होने के कारण उनकेद्वारा इन आभूषणों की ओर ध्यान देना और समय-समयपर निर्णय करना उनमें सुधार करना आवश्यक होता है; किंतु वैसा नहीं होता। मंदिर में सेवा करनेवालोंद्वारा पारदर्शिता के साथ सभी के सामने इन आभूषणों में सुधार करने का बार-बार अनुरोध करनेपर भी प्रशासन की ओेर से इस मांग की उपेक्षा की जाती है !
२ आ. छबिने का छत्र, पलंग आदि नित्य सेवा में स्थित वस्तुओं के विषय में निष्क्रियता : श्री भवानीदेवी की सेवा में प्रतिदिन उपयोग की जानेवाला छबिने का छत्र और पलंग हर सप्ताह में बदलना आवश्यक होता है; क्योंकि उनके निरंतर उपयोग के कारण नित्य सेवा में स्थित ये वस्तूएं खराब हो जाती हैं; परंतु उनमें सामान्य सुधार भी नहीं किए जाते। छत्र बदलकर नया मांगने से, वो भी नहीं दिया जाता। जिस पलंग पर देवी ५ अथवा ७ दिन विश्राम करती हैं, उस देवी के पलंग की प्रशासन की ओर से सामान्य देखरेख भी नहीं की जाती। यह दायित्व मंदिर प्रशासन का होता है। जिलाधिकारी मंदिर समिति के अध्यक्ष होते हुए भी उनकी अनास्था के कारण देवी की सेवा करनेवालों को इन वस्तुओं का भक्तोंद्वारा निर्माण करवाना पडता है !
२ इ. भक्तद्वारा समर्पित किया गया सुवर्ण मुकुट देवी को न पहनाकर उसे तत्काल अपने अधिकार में लेनेवाला लालची प्रशासन : कुछ दिन पहले एक भक्त ने श्री भवानीदेवी के चरणों में १.२५ किलो सोने का मुकुट समर्पित किया। प्रशासन ने उस मुकुट को देवी को न पहनाकर उसे तत्काल अपने अधिकार में ले लिया। वास्तविक रूप में देवीद्वारा उस भक्त की कुछ इच्छा पूरी की गई थी; इसलिए उसने वह मुकुट देवी के चरणों में समर्पित किया था। उस मुकुट को न्यूनतम एक दिन के लिए तो देवी को पहनाने का सौजन्य भी मंदिर प्रशासन ने नहीं दिखाया !
२ अ. ‘स्ट्राँग रूम की चाबी सेवकों के पास होने के कारण मूल्यवान वस्तुएं एवं आभूषणों का सुरक्षित होना : श्री भवानीदेवी के आभूषणों एवं अन्य मूल्यवान वस्तुओं को एक स्ट्राँग रूम में रखा जाता है। दोनों दरवाजों में से एक दरवाजे की चाबी मंदिर प्रशासन के पास और दूसरे दरवाजे की चाबी सेवकों के पास होती है। श्री भवानीदेवी के आभूषणों की पेटी की चाबियां सेवकों के पास होती हैं। दोनों के पास दोनों दरवाजों की चाबियां होने से इनमें से किसी भी एक पक्ष को उसमें स्थित वस्तुएं निकालना संभव नहीं होता। इन आभूषणों एवं अन्य मूल्यवान वस्तुओं को निकालने हेतु इन दोनों पक्षों को उपस्थित रहना पडता है !
३. तीर्थकुंड की उपेक्षा करने से वहांपर उत्पन्न कचरे का साम्राज्य
मंदिर में रामकुंड, सूर्यकुंड, चंद्रकुंड एवं अंधेरकुंड नामक तीर्थकुंड हैं। हर कुंड का एक अलग वैशिष्ट्यपूर्ण महात्म्य है; किंतु प्रशासन की ‘ऐसी’ कार्यपद्धति के कारण इन सभी कुंडों की स्थिति किसी कूढेदानों जैसी भीषण बन गई हैं ! प्रशासनिक अधिकारियों को इसके प्रति कोई वैषम्य नहीं लगता। उनकी विचारधारा एवं चिंता तो केवल मंदिर में किसी मंत्री के आगमन पर उसका सम्मान किस प्रकार से किया जाए, उससे स्वयं को लाभ कैसे पहुंचे और हम मंत्रियों को किस प्रकार से सहयोग दे सकते हैं, इतने तक ही सीमित रहती है !
४. केवल मंदिर में किए जानेवाले अर्पण पर काकदृष्टि रखनेवाला; किंतु मंदिर में सुविधा उपलब्ध करा देने के प्रति उदासीन, दायित्त्वशून्य प्रशासन !
४ अ. एक भक्तद्वारा श्री भवानीदेवी के मंदिर में सौरऊर्जापर चलनेवाले दीप बिठा दिए हैं। उसके कारण नवरात्रि के समय पूरा मंदिर इन सौरदीपों से प्रकाशमान होता है। इन दीपों की देखभाल का पूरे वर्ष का कुल व्यय ५० लाख रुपए से अधिक है; परंतु करोडों रुपए की अर्पण राशि पास होते हुए भी प्रशासन की उपेक्षा के कारण इन सौरदीपों की देखभाल भी इसी भक्त को ही करना पडती है !
४ आ. पुणे में श्री भवानीदेवी के और एक भक्त हैं। वे प्रतिवर्ष स्वयं अपने पैसों से नवरात्रि के समय ९ दिनों तक पूरे मंदिर को फुलों से सजाते हैं; किंतु प्रशासनिक अधिकारियों की दृष्टि में इसका कोई मूल्य नहीं है !
५. अधर्माचरण करनेवालों को देवीद्वारा दंडित किए जाने के संदर्भ में देवीभक्तों को ज्ञात, एक सत्य घटना !
मंदिर में एक पुलिस अधिकारी थे। वे इतने उद्दंड थे कि वे देवी की परडीयों (बांबू से बने पात्र) को लात मारकर उडा देते थे ! एक बार यह अधिकारी अपनी पत्नीसहित मंदिर के निकट ही एक भोजनगृह में भोजन करने गए थे। वहां से लौटते समय उनकी गाडी दुर्घटनाग्रस्त होकर उसी स्थानपर उन पती-पत्नी की मृत्यु हो गई ! आज उनका लडका अपने पिता की विपुल संपत्ति का उत्तराधिकारी है; किंतु उसे एक आश्रमशाला में रहना पड रहा है !
कुल मिलाकर श्री भवानीदेवी मंदिर के प्रशासन की दुःस्थिति को देखते हुए अब इस मंदिर को शासन के नियंत्रण से मुक्त करने हेतु बडा जनआंदोलन खडा करने की आवश्यकता पड गई है ! इस पर हमने यदि आज ही गंभीरता के साथ विचार नहीं किया, तो ये धर्मद्वेषी प्रशासनिक अधिकारी मुघलों ने हिन्दुओं के मंदिरों की किस प्रकार से स्थिति की, उससे भी भीषण स्थिति कर देंगे, इसमें कोई संदेह नहीं है !
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात